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आरसीए के पूर्व सचिव भवानी शंकर सामोता, संयुक्त सचिव राजेश भड़ाना और कोषाध्यक्ष रामपाल को हाई कोर्ट से राहत नहीं मिल पाई हैं। आज जस्टिस समीर जैन की अदालत ने तीनों की याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए गिरफ्तारी करने पर रोक लगाने से इनकार कर दिया हैं।
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तीनों ने एडहॉक कमेटी की ओर से दर्ज एफआईआर को रद्द कराने के लिए अदालत में याचिका दायर की थी। आज अदालत में एडहॉक कमेटी की ओर से पैरवी करते हुए अधिवक्ता एके जैन ने कहा कि अगर जांच अथवा इनकी गिरफ्तारी पर रोक लगाई जाती है तो मामले की जांच प्रभावित होगी। यह पूरा मामला करीब 150 करोड़ के घोटाले से जुड़ा हैं।
इस पर अदालत ने मामले में किसी भी तरह की रोक लगाने से इनकार कर दिया।
खेल सचिव ने कहा-एमओयू से स्टेडियम आरसीए को दिया दरअसल, जस्टिस समीर जैन की अदालत ने पिछली सुनवाई में खेल सचिव को पेश होकर यह बताने के लिए कहा था कि किस आधार पर एक निज़ी एसोसिएशन (आरसीए) को स्टेडियम सौंप दिया। इस पर आज खेल सचिव नीरज के पवन अदालत में पेश हुए।
अदालत में सरकार की ओर से महाधिवक्ता राजेन्द्र प्रसाद ने कहा कि एमओयू के तहत स्टेडियम आरसीए को सौंपा गया था। वह एमओयू फरवरी-2024 को समाप्त हो गया हैं। वहीं हमने आरसीए को स्टेडियम का कुछ हिस्सा ही दिया था। जिसका किराया आरसीए स्पोर्ट्स काउंसिल को देता था।
अदालत ने सरकार के जवाब को रिकोर्ड पर लेते हुए 10 अक्टूबर को मामले की अगली सुनवाई तय की हैं।
सरकार बदलने के साथ ही आरोप-प्रत्यारोप शुरू दरअसल, आरसीए की एडहॉक कमेटी ने 8 अगस्त को याचिकाकर्ताओं के खिलाफ ज्योति नगर पुलिस थाने में एफआईआर दर्ज करवाई थी। जिसमें आरोप लगाया गया है कि उन्होंने आरसीए में अपने कार्यकाल के दौरान दस्तावेजों में फर्जीवाड़ा और धोखाधड़ी कर करोड़ों रुपए का घोटाला किया है।
पिछली सुनवाई में हाई कोर्ट ने एडहॉक कमेटी की ओर से आरसीए के पूर्व पदाधिकारियों पर लगाए आरोपों के संबंध में कहा था कि जब भी राज्य सरकार बदलती है, तब इस तरह के आरोप-प्रत्यारोप का दौर चलता है। अदालत ने कहा कि यह बहुत ही गंभीर मामला है, साधारण आदमी स्टेडियम में जा नहीं सकता, लेकिन सोसायटी के कुछ लोग उसका उपयोग कर रहे हैं।
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