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<p style="text-align: justify;">इजरायल पर हमास के हमले को एक साल का वक्त बीत चुका है. हमास के खिलाफ इजरायल को जंग छेड़े भी एक साल का वक्त बीत चुका है, लेकिन न तो हमास घुटने टेक रहा है और न ही इजरायल हमास का खात्मा कर पा रहा है. सवाल है कि क्यों? आखिर जिस इजरायल ने करीब 57 साल पहले तीसरे अरब युद्ध में मिस्र, सीरिया, जॉर्डन और फिलिस्तीन को महज 144 घंटे में धूल चटा दी थी और उसके अधिकांश हिस्सों पर कब्जा कर लिया था, वही इजरायल क्या अब इतना कमजोर हो गया है कि वो हमास से भी नहीं जीत पा रहा है. या फिर इस लंबी लड़ाई के पीछे है इजरायल का कोई बड़ा गेम प्लान?<br /><br />7 अक्टूबर 2023 वो तारीख थी, जब हमास ने इजरायल पर एक साथ हजारों रॉकेट लॉन्च किए थे. हमास की ओर से इजरायल के खिलाफ लॉन्च किए गए इस ऑपरेशन अल अक्सा फ्लड से इजरायल में तबाही मच गई थी. तभी इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने कसम खाई थी कि इजरायल तब तक हमास के खिलाफ लड़ता रहेगा, जब तक हमास का पूरी तरह से सफाया न हो जाए. इसके लिए इजरायल की ओर से जो ऑपरेशन लॉन्च किया गया, उसे नाम दिया गया ऑपरेशन आयरन स्वॉर्ड. करीब एक साल से चल रहे इस ऑपरेशन में अब तक करीब-करीब 50 हजार लोगों को मौत हो चुकी है, हमास के टॉप कमांडर मारे जा चुके हैं, पूरी गाजा पट्टी खंडहर में तब्दील हो गई है, लाखों लोग विस्थापित हो चुके हैं, लेकिन न तो हमास ने घुटने टेके हैं और न ही इजरायल किसी तरह की शांति के मूड में है.<br /><br />इससे सवाल हमास पर कम और इजरायल पर ज्यादा उठ रहे हैं. आखिर इजरायल को हुआ क्या है. जिस इजरायल ने एक बार नहीं बल्कि बार-बार पूरे अरब देशों के समूहों को जंग में मात दी है. जिसने पूरे मिडिल ईस्ट का नक्शा ही बदल दिया है. जिसने महज 6 दिनों के अंदर ही मिस्र, सीरिया, जॉर्डन और फिलिस्तीन को धूल चटाई है, वो हमास के खिलाफ इतनी ताकत क्यों नहीं बटोर पा रहा है कि एक झटके में हमास को खत्म किया जा सके. कहने वाले कह सकते हैं कि इजरायल एक साथ सात मोर्चे पर जंग लड़ रहा है. कहने वाले कह सकते हैं कि इजरायल को लेबनान से भी लड़ना है, यमन से भी लड़ना है , ईरान से भी लड़ना है, संयुक्त राष्ट्र संघ से भी लड़ना है, अंतरराष्ट्रीय दबाव भी सहने हैं, लिहाजा वो हमास पर एक साथ इतनी ताकत से हमला नहीं कर पा रहा है कि उसे खत्म कर दे.<br /><br />1967 में भी तो इजरायल के साथ यही हाल था. तब तो इजरायल के पास इतने आधुनिक हथियार भी नहीं थे. न तो इतना पैसा था. उसकी सेना भी तब तक तीन-तीन बड़ी जंग लड़ चुकी थी, लेकिन 1967 में खुद इजरायल ने ही जंग शुरू की थी. 5 जून को इजरायल ने पहला हमला मिस्र पर किया था. 10 जून को जब जंग खत्म हुई तो इजरायल ने इजिप्ट के कब्जे वाले गाजा पट्टी और सिनाई प्रायद्वीप, जॉर्डन से वेस्ट बैंक और येरुशलम और सीरिया से गोलान हाईट्स तक जीत लिया. फिर वो हमास से क्यों नहीं जीत पा रहा है.<br /><br />इसका जवाब खुद हमास है. इजरायल ने जितनी भी लड़ाइयां लड़ीं और जिनमें उसने जीत दर्ज की, वो सब देशों के खिलाफ थी, देशों की सेना के खिलाफ थी, लिहाजा उसके टार्गेट तय थे. आमने-सामने की जंग में इजरायल भारी पड़ता रहा, अमेरिका उसका साथ देता रहा, अरब देशों की सेनाएं पीछे हटती रहीं और इजरायल उन देशों में जीती हुई जगहों पर कब्जा करता रहा, लेकिन हमास किसी देश की सेना नहीं है. वो एक हथियारबंद संगठन है, जिसके पास अपने लड़ाके हैं. लिहाजा इजरायल की कभी हमास के साथ आमने-सामने की जंग नहीं हुई है. बाकी हमास को मदद देने के लिए कभी हेजबुल्लाह सामने आ जाता है, तो कभी हूती. और ये भी किसी देश की सेना नहीं हैं, जिनसे इजरायल जंग लड़े. ये भी हमास जैसे लड़ाके ही हैं. तो जिनपर बम गिरा, या जो एयरस्ट्राइक में मारे गए, वही मारे गए. बाकी के लड़ाके चाहे वो हमास के हों या हिजबुल्लाह के या हूती के, जो बचे रहते हैं, वो इजरायल से जंग लड़ते रहते हैं.<br /><br />लिहाजा वो एक महीने का वक्त हो या एक साल का या 10 साल का, हमास पूरी तरह खत्म नहीं होगा क्योंकि कोई न कोई सामने आएगा और कहेगा कि वो हमास है और जंग चलती रहेगी. अगर हमास के मुखिया को मारकर ही हमास का खात्मा होना होता, तो वो इस्माइल हनिया की मौत से ही खत्म हो जाता या फिर मोहम्मद दायेफ के बाद हमास खत्म हो जाता या फिर रावी मुश्तहा की मौत से ही हमास खत्म हो जाता, लेकिन नहीं. इस्माइल हनिया मरा तो उसकी जगह याह्या सिनवार ने ले ली. दायेफ मरा तो उसकी जगह भी कोई और आ गया है. इजरायल हमास के कमांडरों को मारता जा रहा है और नए-नए कमांडर बनते जा रहे हैं. जंग चलती जा रही है. ये कब तक चलेगी, कोई नहीं जानता. लेकिन इतना तय है कि फिलहाल इजरायल के लिए ये जंग कतई आसान नहीं है.</p>
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