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इटली और स्विट्जरलैंड ने जलवायु परिवर्तन के कारण पिघलते ग्लेशियरों के चलते अपनी सीमा का पुनर्निर्धारण करने पर सहमति जताई है। मैटरहॉर्न पीक पर सीमा में बदलाव के लिए स्विस सरकार ने पिछले हफ्ते मंजूरी दी।…
इटली और स्विट्जरलैंड अपनी सीमा का एक हिस्सा फिर से निर्धारित करने पर सहमत हुए हैं। इसकी वजह सीमा को लेकर विवाद नहीं बल्कि जलवायु परिवर्तन के कारण पिघलते ग्लेशियर हैं। आल्पस पर्वत श्रृंखला पर दोनों देशों के बीच अंतरराष्ट्रीय सीमा को चिह्नित करने वाले ग्लेशियरों में तेजी से बदलाव हो रहा है। इस वजह से सीमा की पहचान करना मुश्किल होता जा रहा है। यह इस बात का एक और संकेत है कि मनुष्य पृथ्वी को गर्म करने वाले जीवाश्म ईंधनों को जलाकर दुनिया को कितना बदल रहे हैं। मैटरहॉर्न पीक पर होंगे सीमाई बदलाव
दोनों यूरोपीय देश आल्पस के सबसे ऊंचे शिखरों में से एक मैटरहॉर्न पीक पर मौजूद अपनी सीमा में बदलाव को राजी हुए हैं। इसी शिखर के स्विट्जरलैंड वाले हिस्से की तलहटी पर मशहूर स्कीइंग ट्रैक जर्मेट भी मौजूद है। दोनों देशों की सीमा का एक बड़ा हिस्सा ग्लेशियर और बर्फ के मैदानों के आधार पर तय किया गया है। स्विस सरकार का कहना है कि बर्फ इसी तरह पिघलती रही तो भविष्य में यह एक बड़ा ‘सीमा निर्धारण संकट पैदा कर सकता है।
पिछले वर्ष बन गई थी सहमति
सीमा में बदलाव पर 2023 में सहमति बन गई थी पर स्विट्जरलैंड ने पिछले हफ्ते ही आधिकारिक तौर पर इसको मंजूरी दी है। वहीं, इटली में मंजूरी की प्रक्रिया चल रही है। स्विस सरकार के अनुसार, इटली की आधिकारिक मंजूरी के बाद नई सीमा के विवरण वाला यह समझौता सार्वजनिक कर दिया जाएगा।
तेजी से गर्म हो रहा यूरोप
यूरोप दुनिया का सबसे तेजी से गर्म होने वाला महाद्वीप है। इसके ग्लेशियरों पर इसका गंभीर प्रभाव पड़ा है। इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि पिछले साल स्विट्जरलैंड के ग्लेशियरों ने अपनी चार फीसदी बर्फ पिघलने की वजह से खो दी। वर्ष 2022 में ग्लेशियरों ने अपना छह फीसदी हिस्सा गंवा दिया था। एक अनुमान के अनुसार महत्वाकांक्षी जलवायु कार्रवाई के बावजूद वर्ष 2100 तक दुनिया के आधे ग्लेशियर खत्म हो सकते हैं।
बर्फ में गिरावट की प्रवृत्ति समाप्त होने का कोई संकेत नहीं देती। इस साल भारी बर्फबारी के बावजूद ग्लेशियरों से बर्फ तेजी से पिघलती रही। कुछ ग्लेशियर टूट रहे हैं, छोटे ग्लेशियर गायब हो रहे हैं। – मैथियास हस, ग्लेशियोलॉजिस्ट, स्विस यूनिवर्सिटी ईटीएच ज्यूरिख
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