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जिलों में प्रभारी मंत्रियों की नियुक्ति के बाद अब मध्यप्रदेश सरकार जल्द ही निगम-मंडल के खाली पड़े पदों पर नियुक्तियां करने जा रही है। ये राजनीतिक नियुक्तियां होंगी इसलिए नेता अपने-अपने तरीके से पद हासिल करने की जुगाड़ में हैं। हालांकि, सरकार और संगठन
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इसके तहत ऐसे नेताओं को मौका दिया जा सकता है, जो विधानसभा और लोकसभा चुनाव के दौरान दूसरी पार्टियों से बीजेपी में आए हैं। इनमें दीपक सक्सेना जैसे कई बड़े नाम भी शामिल हैं। वहीं ऐसे नेता, जिन्हें मजबूत दावेदारी के बावजूद विधानसभा और लोकसभा में टिकट नहीं मिला, भी एजडस्ट किए जाएंगे। ऐसे में गुना से पूर्व सांसद केपी यादव को भी किसी निगम-मंडल की कमान सौंपी जा सकती है।
ऐसे सीनियर विधायक जिन्हें मंत्रिमंडल में शामिल नहीं किया गया है, उन्हें भी एडजस्ट किया जा सकता है। निगम-मंडल में नियुक्तियों को लेकर सरकार और संगठन स्तर पर विचार किया जा रहा है। 15 अक्टूबर तक पार्टी का सदस्यता अभियान चलेगा, इसके बाद ही ये नियुक्तियां की जाएंगी।
सूत्रों का कहना है कि पहले ऐसे निगम-मंडल में नियुक्तियां की जा सकती हैं, जिनकी प्रशासनिक तौर पर अहमियत है। पढ़िए रिपोर्ट…
अब जानिए क्या हैं, नियुक्ति के 5 क्राइटेरिया…
1. विधानसभा और लोकसभा चुनाव के दौरान दूसरी पार्टियों से आए नेता इस क्राइटेरिया में नेताओं की लिस्ट लंबी है। विधानसभा और लोकसभा चुनाव में दूसरे दलों के नेताओं को बीजेपी में शामिल करने के लिए न्यू जॉइनिंग टोली बनाई गई थी। विधानसभा चुनाव खत्म होने के बाद जनवरी से लेकर अप्रैल तक न्यू जॉइनिंग टोली ने दूसरे दलों के खास तौर पर कांग्रेस के कई नेताओं को शामिल करवाया था।
मार्च के महीने तक पूर्व केंद्रीय मंत्री सुरेश पचौरी सहित 6 पूर्व विधायक, 1 महापौर, 205 पार्षद-सरपंच और 500 पूर्व जनप्रतिनिधियों सहित 17 हजार कांग्रेसी बीजेपी जॉइन कर चुके थे। अप्रैल में टोली के संयोजक डॉ. नरोत्तम मिश्रा ने दावा किया था कि एक ही दिन में 1 लाख लोगों ने पार्टी जॉइन की। इनमें 90 फीसदी नेता कांग्रेस पार्टी से आए।
इनमें से कुछ नेताओं को संगठन के पदों पर ए़डजस्ट किया गया तो अब कुछ नेताओं को निगम-मंडल की कमान सौंपी जा सकती है। इनमें दीपक सक्सेना, पूर्व सांसद गजेंद्र राजूखेड़ी, शिवदयाल बागरी, दिनेश अहिरवार और शशांक भार्गव जैसे नेताओं को मौका मिल सकता है।
2. मजबूत दावेदार होते हुए भी विधानसभा-लोकसभा चुनाव का टिकट नहीं मिला
विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने 230 में से 32 मौजूदा विधायकों के टिकट काटे थे। साथ ही कई सीटें ऐसी थीं, जहां दमदार प्रत्याशी मौजूद थे लेकिन जातिगत और क्षेत्रीय समीकरण को देखते हुए उन्हें टिकट नहीं दिया गया था। ऐसे में पन्ना के संजय नगाइच और जबलपुर के धीरज पटैरिया को मौका मिल सकता है।
दूसरी तरफ, पार्टी ने लोकसभा की 29 सीटों में से 8 मौजूदा सांसदों के टिकट काटे थे। इनमें से भी कई लोगों को निगम-मंडल में जगह मिल सकती है। इनमें गुना से सांसद रहे केपी यादव की प्रबल दावेदारी है। चुनाव के दौरान अमित शाह ने उन्हें पद देने का भरोसा भी दिया था।
3. सीनियर विधायक, जिन्हें मंत्रिमंडल में शामिल नहीं किया गया
मोहन यादव सरकार के पहले मंत्रिमंडल विस्तार में 28 विधायकों को मंत्री पद की शपथ दिलाई गई थी। इनमें 18 विधायकों को कैबिनेट और 10 विधायकों को राज्यमंत्री के रूप में शपथ दिलाई गई। पहली बार जीतकर आए 7 विधायक प्रहलाद सिंह पटेल, राकेश सिंह, संपतिया उइके, नरेंद्र पटेल, प्रतिमा बागरी, राधा सिंह और दिलीप अहिरवार को भी मंत्री बनाया गया।
साथ ही सिंधिया समर्थक तुलसी सिलावट, गोविंद सिंह राजपूत और प्रद्युम्न सिंह तोमर को कैबिनेट मंत्री बनाया गया। शिवराज सरकार के 19 मंत्री इस बार चुनाव जीतकर आए थे। पुरानी सरकार के केवल 6 मंत्रियों को ही मोहन कैबिनेट में जगह मिली।
4. पूर्व संगठन मंत्रियों को भी मिल सकता है मौका
शिवराज सरकार के कार्यकाल के दौरान भाजपा ने दिसंबर 2021 में संगठनात्मक बदलाव करते हुए संभागीय संगठन मंत्रियों को निगम-मंडलों में पदस्थ कर मंत्री का दर्जा दिया था। पिछले साल विधानसभा चुनाव के बाद इन नेताओं को हटा दिया गया था।
इन नेताओं को एक बार फिर निगम-मंडलों में नियुक्त किया जा सकता है। पार्टी सूत्रों की मानें तो शैलेंद्र बरुआ और जितेंद्र लिटोरिया को एक बार फिर राजनीतिक पद दिए जाने की संभावना है। भाजपा नेताओं में डॉ. हितेश बाजपेयी, नरेंद्र बिरथरे, गौरव रणदिवे, यशपाल सिंह सिसोदिया, विनोद गोटिया और लोकेंद्र पाराशर की प्रबल दावेदारी मानी जा रही है।
5. लंबे समय से उपेक्षित नेताओं को एडजस्ट करने की तैयारी
पार्टी सूत्रों का कहना है कि निगम-मंडलों में अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के पदों पर लंबे समय से उपेक्षित नेताओं को एडजस्ट किया जाएगा। केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया समर्थक विधायकों को उप चुनाव हारने के बाद निगम-मंडलों की कमान सौंपकर मंत्री दर्जा बरकरार रखा था।
विधानसभा चुनाव में इनमें से कई नेताओं के टिकट भी काट दिए गए थे। उन्हें फिर सरकार में राजनीतिक पद मिल सकता है।
क्राइटेरिया के अलावा सदस्यता अभियान परफॉर्मेंस पर भी नजर
इन क्राइटेरिया के अलावा ऐसे नेताओं को भी निगम-मंडल या प्राधिकरण में उपकृत किया जा सकता है, जो सदस्यता अभियान में बेहतर प्रदर्शन करेंगे। दरअसल, बीजेपी ने 1 सितंबर से सदस्यता अभियान शुरू किया है। इसकी तैयारियों के लिए 24 अगस्त को जब बीजेपी दफ्तर में बैठक रखी गई थी, तब मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने कहा था कि सदस्यता अभियान में काम करके दिखाने वालों को भी पद मिलेंगे।
सीएम ने कहा था कि कई समितियों का गठन होने वाला है। आपके पास मौका है, ज्यादा से ज्यादा सदस्य बनाओ और पद पाओ।
संगठन में भी होने वाले हैं चुनाव
भाजपा का सदस्यता अभियान 15 अक्टूबर तक चलेगा। इस अभियान के पहले चरण में 25 सितंबर तक प्रदेश में 1 करोड़ 14 हजार 429 सदस्य बनाए जाने का दावा किया गया है। मध्यप्रदेश में भाजपा अपने टारगेट की 70 फीसदी सदस्यता पूरी कर चुकी है। यह गुजरात के बराबर है।
इसके साथ ही सबसे ज्यादा सदस्य बनाने वाली देश की 20 विधानसभा सीटों में मध्यप्रदेश की 6 सीटें इंदौर-1, इंदौर-2, आगर, छिंदवाड़ा, ग्वालियर और भोपाल (मध्य) भी शामिल हैं। पूरे प्रदेश में 1 लाख 95 हजार नेता सदस्यता अभियान में जुटे हैं।
इसके बाद परफॉर्मेंस के आधार पर नेताओं को संगठन की सिफारिश पर सरकार में राजनीतिक पद दिए जाएंगे। साथ ही चरणबद्ध तरीके से जिला और मंडल इकाइयों के चुनाव कार्यक्रम घोषित हो जाएंगे। उसके बाद प्रदेश इकाई के चुनाव होंगे। पार्टी नेता कहते हैं कि संगठन के चुनाव और सरकार में राजनीतिक नियुक्तियों का काम साथ-साथ किया जा सकता है।
शिवराज सरकार ने 60 नेताओं को दिए थे पद
शिवराज सरकार ने निगम-मंडलों के राजनीतिक पदों पर दो साल पहले 25 नियुक्तियां की थीं। इसके बाद चुनाव से ठीक सात महीने पहले 35 और राजनीतिक नियुक्तियां की गई थीं। चुनाव नतीजे के बाद दो राज्य राजस्थान और छत्तीसगढ़ में सरकार बदल गई। वहां निगम, मंडल, प्राधिकरण के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष की नियुक्तियों को निरस्त कर दिया था।
इन दोनों राज्यों में चुनाव से पहले कांग्रेस की सरकारें थीं लेकिन मध्य प्रदेश में पहले भी भाजपा की ही सरकार थी। ऐसा पहली बार हुआ है, जब भाजपा ने अपनी ही सरकार के सत्ता में लौटने के बाद निगम-मंडलों के अध्यक्ष-उपाध्यक्षों को हटाया।
कई मंडल अध्यक्षों को न बंगले मिले थे, न ही वाहन
मंत्रालय सूत्रों के मुताबिक, शिवराज सरकार की चौथी पारी में जिन नेताओं को निगम-मंडलों में अध्यक्ष-उपाध्यक्ष बनाकर मंत्री का दर्जा दिया था, उनमें से कई को न तो बंगला आवंटित किया गया और न ही उन्हें वाहन दिया गया।
इनमें से 11 नेताओं ने दिसंबर 2022 में सरकार से बंगला-गाड़ी की डिमांड करते हुए पत्र भी लिखा था। कुछ अध्यक्ष और उपाध्यक्ष ने मंडल की पुरानी गाड़ी के बदले नई गाड़ी की डिमांड की थी। सरकार की तरफ से आर्थिक स्थिति का हवाला दिया गया। कई नेताओं की डिमांड भी पूरी नहीं हो पाई।
निगम, मंडल और प्राधिकरणों के अध्यक्ष-उपाध्यक्ष पद से इनकी नियुक्तियां निरस्त की गई थीं।
इन नेताओं को भी निगम, मंडल और प्राधिकरणों के अध्यक्ष-उपाध्यक्ष पद से हटाया गया था।
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