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नियम हैं कि एक साल में अधिकतम पांच लाख के कार्य कोटेशन के माध्यन से कराए जा सकते हैं। निगम प्रशासन ने 2022-23 और 2023-24 में 1 करोड़ 80 लाख 65 हजार 892 रुपये के कार्य करा लिए। हर वार्ड में छोटे कार्यों की जरूरत होती है। इन्हीं कार्यों को कराने के लिए
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दो वर्षों में अधिकतम 10 लाख के काम कराए जा सकते हैं। निगम के अधिकारियों ने पौने दो करोड़ से अधिक के काम करा लिए। अब यह मामला आडिट की जांच में पकड़ में आ गया है। इसकी जानकारी नगर निगम आयुक्त को दी गई है।
स्थानीय निधि अंकेक्षण विभाग दल संख्या 6 के पास दस्तावेज आडिट के लिए पहुंचे। उन्हाेंने दाे साल के दस्तावेज खंगाले ताे कामाें की संख्या 205 और राशि एक कराेड़ 80 लाख 65 हजार 892 रुपए पहुंच गई। नियमानुसार यह गलत था। टीम ने 12 सितंबर काे निगम कमिश्नर काे इस संबंध में पत्र लिखा और कहा कि समान कार्य पद्धति के काम काेटेशन से कराए गए। एक लाख से कम खर्चे के काम थे। इनकी राशि पाैने दाे कराेड़ से ऊपर हाे गई।
अंकेक्षण दल ने अब 5 तरह के दस्तावेज मांगे हैं। इसमें कार्याें की प्रशासनिक, वित्तीय और तकनीकी स्वीकृति, कार्यादेश पत्रावली, कार्याें की मांप पुस्तिकाएं और कार्य पूरा हाेने का प्रमाण-पत्र, कामाें के लिए अपनाई गई उपायन पद्धति से संबंधित पत्रावली और निर्माण कार्याें के पूर्व व पश्चिम विधानसभा क्षेत्र के फाेटाेग्राफ। क्याेंकि निगम में नियमाें की परवाह कोई करता नहीं।
सब ये जानते हैं कि काेटेशन कार्य की ज्यादातर छानबीन नहीं हाेती लेकिन अब ऑडिट ने जब ये रिकार्ड मांगा ताे हलचल मच गई। क्याेंकि चर्चा है कि काेटेशन कार्य सिर्फ खानापूर्ति के लिए हाेते हैं। निगम के सामने 1.80 कराेड़ के कामाें के पूर्ण हाेने के प्रमाण-पत्र कलेक्ट करना असंभव जैसा कार्य है। अब निगम आयुक्त की नजर भी इस पर है।
नियमतः दो साल में करा सकते थे 10 लाख के काम
कोटेशन से दो साल में अधिकतम दस लाख के अलग अलग काम कराए जा सकते हैं। अगर 20 जगह सीवर लाइन का काम एक समान है। नालियाें काे ठीक करने के अगर 20 लाख के काम हैं या जाे भी समान कार्य पूरे शहर में है निगम समान कार्याें का एक सामूहिक टेंडर करके एक साथ काम करा सकता था। पर उसके लिए नियत ठीक हाेनी जरूरी थी। क्याेंकि टेंडर हाेते ताे उसमें स्थानीय पार्षद का हस्तक्षेप खत्म हाे जाता। उसका मतलब सिर्फ काम पूरा हाेने तक हाेता। लेकिन काेटेशन हमेशा एक लाख से कम के कामाें का हाेता है। उसका ना ताे टेंडर हाेता ना काेई और पूछताछ हाेती है। इसलिए इसमें खुलेआम मनमर्जी हाेती है। अगर इसकी जांच हाे ताे बडी राशि ऐसी सामने आएगी जिससे काम ही नही हुआ। दूसरा ये पार्षदाें काे काे साधने का भी तरीका है।
“अब एक भी काेटेशन मंजूर नहीं हाेगा। कमिश्नर कोटेशन से काम कराने पर पूरी तरह राेक लगा दी है। चाहे कितना ही छाेटा काम हाे उसके लिए अब टेंडर ही हाेगा। नियम एक साल में अधिकतम 5 लाख तक के काम काेटेशन से करा सकते हैं। मेरे सामने भी मामला आया है। ऑडिट ने इस इश्यू काे गंभीरता से लिया है।” -यशपाल आहूजा, उपायुक्त नगर निगम
205 कामाें में एक ही फर्म ने किए 41 काम : पार्षद काेई हाे। वार्ड काेई हाे पर हर वार्ड में काेटेशन का काम करने की फर्में गिनी-चुनी हैं। एक फर्म ऐसी है जिसने काेटेशन के 205 कामाें में अकेले 41 काम किए। ये ठेकेदाराें काे भी राजी करने का तरीका देखा जा रहा है। हैरानी की बात है कि करीब एक चाैथाई काम एक ही फर्म के पास चला गया। ये भी भारी-भरकम राशि का। 205 कामाें के लिए एक दर्जन फर्माें ने पूरा काम निबटा दिया। ये वाे गठबंधन है जाे अदृशय है।
यूआईटी में भी काेटेशन का बड़ा खेल, विधानसभा में लगा सवाल काेटेशन का मामला अकेले नगर निगम में नही है। खबर है कि यूआईटी में भी काेटेशन का जबरदस्त खेल चला है। विधानसभा में काेलायत विधायक अंशुमान सिंह भाटी ने नगर निगम और नगर विकास न्यास में हुए काेटेशन के काम, उसके नियम और उसके पूर्ण हाेने के प्रमाण-पत्राें के साथ पूरी जानकारी मांगी है। जब भी विधानसभा सत्र शुरू हाेगा सरकार काे विधानसभा में इसका जवाब देना हाेगा। तब उजागर हाेगा कि बीकानेर के नगर निगम और यूआईटी में काेटेशन से कितना बड़ा खेल हुआ। जिम्मेवार भूल गए कि एक साल में कितने के काेटेशन देने चाहिए और कितने जारी कर दिए।
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