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छत्तीसगढ़ के बीजापुर जिले में माओवादियों के पार्टी विलय दिवस के पहले दिन शनिवार को हिंसा छोड़कर आठ सक्रिय माओवादियों ने पुलिस के समक्ष आत्मसमर्पण किया। इनमें आठ लाख रुपए के इनामी प्लाटून नंबर 12 का कमांडर, दो लाख की इनामी प्लाटून नंबर 2 की पार्टी सदस्या, एक लाख के इनामी जनताना सरकार अध्यक्ष कुल 11 लाख रुपए के तीन ईनामी माओवादी सहित कुल 8 माओवादियों ने आत्मसमर्पण किया।
आत्मसमर्पित नक्सली साल 1994 से कई बड़ी घटनाओं आगजनी, मुठभेड़, हत्या, लूटपाट, आईडी ब्लास्ट, अपहरण और हत्या जैसे बड़ी घटनाओं में शामिल थे। कुछ नक्सलियों पर वारंट भी लंबित थे। वर्ष 2024 में अब तक 178 माओवादियों ने किया पुलिस के समक्ष आत्मसमर्पण, वही विभिन्न माओवादी घटनाओं में शामिल 378 माओवादियों को गिरफ्तार किया गया।
छत्तीसगढ़ शासन की पुनर्वास एवं आत्मसमर्पण नीति तथा छत्तीसगढ़ शासन द्वारा चलाये जा रहे ‘नियद नेल्ला नार’ योजना से प्रभावित होकर गंगालूर एरिया कमेटी, नेशनल पार्क एरिया कमेटी एवं उसूर-पामेड़ एरिया कमेटी के प्लाटून कमांडर(पीपीसीएम), पार्टी सदस्य एवं जनताना सरकार अध्यक्ष सहित आठ माओवादियों ने आत्मसमर्पण किया। आत्मसमर्पण करने पर इन्हें उत्साहवर्धन हेतु शासन की आत्मसमर्पण एवं पुनर्वास नीति के तहत 25000-25000 रूपए की नगद प्रोत्साहन राशि प्रदान की गई।
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राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से शनिवार को राष्ट्रपति भवन में छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावितों ने मुलाकात के दौरान पीड़ितों ने बताया कि कैसे माओवादी हमलों ने उनके जीवन को तबाह कर दिया है। इस भेंट का यह भी मतलब था कि नक्सली हिंसा से प्रभावित लोगों की समस्याओं को देश की सर्वोच्च शक्ति के सामने रखना और बस्तर को माओवाद के आतंक से मुक्त कराने की अपील करना।
छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित बस्तर क्षेत्र से आए 70 लोगों का एक प्रतिनिधिमंडल, मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय की संवेदनशील पहल के तहत, अपनी पीड़ा को लेकर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु से मिलने पहुंचा। प्रतिनिधिमंडल ने राष्ट्रपति को अवगत कराया कि पिछले चार दशकों से बस्तरवासी माओवादी आतंक का दंश झेल रहे हैं। माओवादी हमलों में हजारों लोग अपनी जान गंवा चुके हैं और सैकड़ों लोग अपंग हो चुके हैं। बारूदी सुरंगों और बम विस्फोटों ने उनके जीवन को तहस-नहस कर दिया है। विस्फोटों से न केवल शरीर को नुकसान पहुंचा है, बल्कि मानसिक रूप से भी वे पूरी तरह टूट चुके हैं।
प्रतिनिधियों ने बताया कि माओवादियों ने उनके घर, जमीन और संस्कृति को भी बर्बाद कर दिया है। बस्तर में 8,000 से अधिक लोग पिछले ढाई दशकों में माओवादी हिंसा के शिकार हुए हैं। आज भी कई लोग नक्सलियों के डर के साये में जीने को मजबूर हैं। जहां देश के अन्य हिस्सों में लोग स्वतंत्रता का आनंद ले रहे हैं, वहीं बस्तर के लोग अपनी जमीन और अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं।
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