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कूटरचित दस्तावेजों के मामलों की जांच में पुलिस की बड़ी लापरवाही सामने आई है। दो प्रकरणों में पुलिस ने एफएसएल की जांच कराए बिना ही कोर्ट में एफआर पेश कर दी। अब परिवादी न्याय के लिए भटक रहे हैं। कूटरचित दस्तावेजों के मुकदमों में पुलिस कैसे जांच करती है
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हैरत की बात ये है कि फर्जी चेक के एक प्रकरण में दो बार जांच हो गई और दोनों ही बार एसपी ने भी पत्रावली की विवेचना किए बिना एफआर के आदेश कर दिए। बाद में एसपी के कोर्ट से पत्रावली लेकर चेक की एफएसएल जांच के लिए लिखा, लेकिन आईओ अब तक कोर्ट में हाजिर नहीं हुई। इसी प्रकार एक अन्य मामला यूआईटी से जुड़ा हुआ है, जिसमें डीटीपी के फर्जी साइन से बेशकीमती जमीन हथियाने का आरोप है।
परिवादी निष्पक्ष जांच के लिए पुलिस अधिकारियों के कई महीने से चक्कर लगा रहा है, पर उसकी सुनवाई नहीं हो रही। भास्कर ने दोनों प्रकरणों के दस्तावेजों की पड़ताल की तो पुलिस की खराब जांच का पता चला। गौरतलब है कि पुलिस की खराब तफ्तीश के कारण एक आरोपी बुजुर्ग को 43 दिन जेल में रहना पड़ा था। चार साल केस चला। मामला 50-50 लाख के दो फर्जी चेक का था, जिसकी एफएसएल जांच कराए बिना ही पुलिस ने चालान पेश कर दिया। इसे लेकर क्रॉस केस दर्ज हुए थे।
फर्जी चेक के मुकदमे में पुलिस के रवैये पर कोर्ट ने जताई नाराजगी
देशनोक थाने में 27 अप्रैल 23 को अंबिका सोनी ने मुकदमा दर्ज कराया कि गजेंद्र कुमार ने चेक चुराकर उसके फर्जी साइन से 2.80 लाख रुपए अंकित किए और कोर्ट में चेक बाउंस का मुकदमा कर दिया। उसे फोन पर एक और मुकदमा करने की धमकी दी। महिला ने उसका ऑडियो भी पुलिस को सौंप दिया। मामले की जांच रामस्वरूप एएसआई को सौंपी गई, लेकिन पांच महीने तक जांच ही नहीं करने पर नोखा सीओ संजय बोथरा ने कारण बताओ नोटिस जारी कर दिया।
आईओ ने जांच कर 26 दिसंबर को मुकदमे में एफआर अदम बकू(सिविल नेचर) लगा दी, जबकि कोर्ट से ना तो चेक लिया और ना ही उसकी एफएसएल से जांच कराई। ऑडियो मैसेज तक का अनुसंधान नहीं किया। परिवादिया के धमकी के आरोपों ही मिथ्या बता दिया। इसका पता चलने पर अंबिका ने आईजी को परिवाद दिया। इस पर एएसपी ग्रामीण प्यारेलाल शिवराण ने दुबारा जांच करने के आदेश देशनोक एसएचओ को दिए कि चेक की एफएसएल जांच कराने के बाद ही नतीजा कोर्ट में पेश करें। लेकिन एसएचओ सुमन शेखावत ने इस आदेश की अनेदखी की। चेक की एफएसएल जांच कराए बिना ही 9 अप्रैल 24 को कोर्ट में एफआर पेश कर दी।
अंबिका फिर एसपी के पास पहुंची। तब एसपी के आदेश पर एसएचओ ने पत्रावली लेने के लिए कोर्ट में आवेदन किया। खुद जाने के बजाय पैरोकार को भेज दिया, लेकिन पत्रावली अब तक नहीं ली। पुलिस के इस रवैये पर कोर्ट ने नाराजगी जताई है।
रिसोर्ट में फंसी जमीन पाने के लिए भटक रहा परिवादी
रानी बाजार बागीनाड़ा क्षेत्र के मोहम्मद सुहेल पड़िहार ने 24 मार्च 23 को बीछवाल थाने में जोधपुर बाईपास स्थित एक रिसोर्ट के मालिकों के खिलाफ फर्जी तरीके से उसकी जमीन हड़पने का मुकदमा दर्ज कराया था। परिवादी की 1/5 हिस्सा करीब दो बीघा जमीन छीन गई। आरोप है कि यूआईटी के तत्कालीन डीटीपी समुद्र सिंह के हस्ताक्षर से 2018 में दो नक्शे तैयार किए, जिनमें से एक पर फर्जी साइन कर पट्टे को पंजीबद्ध करवा लिया।
तत्कालीन आईओ एसएचओ महेंद्र दत्त की जांच पता चला कि नैनों के बास का मूल नक्शा राजस्व रिकॉर्ड लंबे समय से गायब है। 2010 में यूआईटी के तत्कालीन तहसीलदार ने एक नया नक्शा तैयार किया, उसे आधार मानते हुए रिसोर्ट को पट्टा जारी किया गया था। डीटीपी के फर्जी साइन से नक्शा जारी होने का आरोप था, लेकिन समुद्र सिंह के ना तो बयान लिए और ना ही उसके साइन की एफएसएल से जांच कराई। मुकदमा झूठा मानते हुए 31 जुलाई 23 को एफआर पेश कर दी।
सुहेल ने प्राइवेट लैब से नक्शे की जांच कराई तो समुद्र सिंह के साइन फर्जी पाए गए। दस्तावेजों से पता चला कि यूआईटी की रिपोर्ट में रिसोर्ट की बाउंड्री सरकारी जमीन पर बताई गई है। 2019 में तत्कालीन कलेक्टर ने रिसोर्ट को सीज करने के आदेश दिए थे, जबकि पुलिस ने इस दिशा में अनुसंधान ही नहीं किया। सुहेल ने बताया कि जांच बदलवाने के लिए कई बार आईजी और एसपी से मिले, लेकिन आश्वासन के सिवाय कुछ नहीं मिला। परिवादी ने कोर्ट में प्रोटेस्ट पिटीशन दायर की है।
एफएसएल की जांच को लेकर हाईकोर्ट भी सख्त रिटायरमेंट के बाद वार्षिक पेंशन वृद्धि को लेकर अप्रैल 24 में जोधपुर हाईकोर्ट में 101 व्यक्तियों की ओर से याचिका दायर की गई थी, जिसमें 85 याचिकाकर्ताओं के साइन फर्जी पाए गए। हाईकोर्ट के आदेश पर जोधपुर के कुड़ी भगतासनी थाने में मुकदमा दर्ज किया गया है। हाईकोर्ट ने इन याचिकाओं पर हुए साइन की एफएसएल जांच के आदेश भी दिए हैं।
“अनुसंधान अधिकारी अपने विवेक से केस की विवेचना करता है। ऐसे मामलों में कई बिंदू होते हैं। आईओ को दोनों तरफ सोचना पड़ता है। कूटरचित मामलों की तह तक जाने के लिए एफएसएल की जांच ही सबसे निष्पक्ष तरीका है। क्योंकि परिवादी भी झूठ बोल सकता है। एफएसएल की जांच के लिए तीन तरह के दस्तावेज भेजे जाते हैं। एक विवादित, दूसरा अविवादित और तीसरा नमूना हस्तलेख।” -प्रताप सिंह डूडी, रिटायर्ड आरपीएस
“कूटरचना के मामलों की जांच में अक्सर लापरवाही बरती जाती है, जिसकी वजह से पीड़ित को न्याय नहीं मिलता। मुकदमा लंबे समय तक चलता रहता है। इस सिस्टम में सुधार होना जरूरी है। पुलिस अधिकारियों को चाहिए कि वे ऐसे मामलों में लापरवाही बरतने वाले अनुसंधान अधिकारियों के विरुद्ध कड़ी कार्यवाही करें।” -अनिल सोनी, अधिवक्ता
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