[ad_1]
एनजीटी ने प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों में खाली पदों को भरने का आदेश दिया है। रिपोर्ट के अनुसार, देश में लगभग 50 फीसदी पद वर्षों से खाली हैं। प्रदूषण नियंत्रण की कमी से चिंतित एनजीटी ने सभी राज्यों को 30…
एक माह से लेकर 35 सालों से हैं कुछ पद खाली। एनजीटी ने 30 अप्रैल, 2025 तक खाली पदों को भरने का दिया आदेश
नई दिल्ली। प्रभात कुमार
देश के महानगरों से लेकर छोटे शहरों में प्रदूषण का स्तर तेजी से बढ़ रहा है, लेकिन इसे नियंत्रण करने वाले राज्यों के बोर्ड और समिति में अधिकारियों और कर्मचारियों की भारी कमी है। देश के सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों और समितियों में वर्षों से लगभग आधे पद खाली हैं। इतना ही नहीं, खाली पदों को भरने में धन की कमी और कुछ पदों को भरने के लिए राज्यों को योग्य व्यक्ति ही नहीं मिल रहा है। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) द्वारा पेश एक रिपोर्ट में इसका खुलासा किया गया है।
जस्टिस प्रमुख जस्टिस प्रकाश श्रीवास्तव, न्यायिक सदस्य जस्टिस सुधीर अग्रवाल और विशेषज्ञ सदस्य डॉ. ए. सेंथिल वेल की पीठ के समक्ष सीपीसीबी ने यह रिपोर्ट पेश किया है। सीपीसीबी ने एनजीटी को बताया है कि बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड, उत्तराखंड, दिल्ली सहित देश के 36 राज्यों/ केंद्र शासित प्रदेशों के प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड/ समितियों में कुल 11 हजार 562 स्वीकृत पद है और इनमें से 5 हजार 671 पद यानी लगभग 50 फीसदी खाली है। रिपोर्ट में कहा गया है कि ये पद 1 लेकर 423 माह यानी 35 साल से भी अधिक समय से खाली है। सीपीसीबी ने एनजीटी को बताया है कि राज्यों ने इन पदों को 6 माह से लेकर 60 माह यानी अगले पांच सालों में भरने की योजना बनाई है।
एनजीटी ने बढ़ते प्रदूषण के बीच राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों में अधिकारियों और कर्मचारियों की कभी पर कड़ी नारजगी जाहिर की। पीठ ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने इस मसले पर संज्ञान लिया है, ऐसे में सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार सभी राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों को 30 अप्रैल, 2025 तक सभी खाली पदों को भरने का आदेश दिया है। एनजीटी ने इस मामले की सुनवाई जनवरी में तय करते हुए सभी राज्यों को प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों और समितियों में खाली पदों को भरने के उठाए गए कदमों की प्रगति के बारे में रिपोर्ट पेश करने को कहा है।
कहां कितने पद खाली
उत्तर प्रदेश: राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड में कुल स्वीकृत क्षमता 732 में से 339 पद 6 माह से लेकर 348 माह यानी (29) सालों से खाली है।
बिहार: राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड में कुल स्वीकृत क्षमता 127 में से 30 पद 2 माह से लेकर 227 माह से खाली है।
झारखंड: राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड में कुल स्वीकृत क्षमता 271 में से 198 पद खाली।
दिल्ली: प्रदूषण नियंत्रण समिति में कुल स्वीकृत क्षमता 344 में से 152 पद एक माह से लेकर 108 माह से खाली है।
उत्तराखंड: राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड में कुल स्वीकृत क्षमता 130 में से 79 पद खाली। कितने समय से खाली नहीं बताया।
हरियाणा: राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड में कुल स्वीकृत क्षमता 450 में से 272 पद 2 माह से लेकर 243 माह से खाली है।
पंजाब: राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड में कुल स्वीकृत क्षमता 652 में से 309 पद 1 माह से लेकर 423 माह यानी 35 सालों से खाली है।
पद नहीं भरे जाने के प्रमुख कारण
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा पेश रिपोर्ट में राज्यों के प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने खाली पदों को नहीं भरे जाने के लिए कुछ प्रमुख कारण बताए हैं। इनमें से प्रमुख कारण ये हैं।
-पदोन्नति के जरिए खाली पदों के लिए फीडर कैडर में कोई योग्य उम्मीदवार नहीं मिल रहा है।
– सरकार से समय पर मंजूरी का नहीं मिलना।
– स्टाफिंग पैटर्न,
– आरक्षण रोस्टर और पदों का उन्नयन
-भर्ती नीति में बदलाव के अलावा अदालतों में नियुक्ति को लेकर लंबित विवाद के साथ ही प्रशासनिक विभाग द्वारा कोई इसके लिए पर्याप्त धन का आवंटन नहीं मिलना।
बिहार का सहरसा था सबसे प्रदूषित शहरों की सूची में शामिल
दुनिया भर में प्रदूषण और स्वास्थ्य प्रभावों पर शोध करने वाली गैर सरकारी संस्था सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर (सीआरईए) की रिपोर्ट के मुताबिक जनवरी 2024 में, भारत के सिर्फ 32 शहरों में स्वच्छ हवा थी और दिल्ली सबसे प्रदूषित थी। इस रिपोर्ट में कहा गया था कि जनवरी 2024 में देश के सिर्फ 32 शहरों ने ही राष्ट्रीय परिवेशी वायु गुणवत्ता मानकों (एनएएक्यूएस) को पूरा किया। इस रिपोर्ट के मुताबिक बिहार का भागलपुर वायु प्रदूषण के मामले में दिल्ली के ठीक पीछे रहा, जहां मासिक औसत पीएम 2.5 सांद्रता 206 दर्ज की गई। जबकि बिहार के सहरसा, दिल्ली से सटे ग्रेटर नोएडा, नोएडा, फरीदाबाद शीर्ष 10 सबसे प्रदूषित शहरों की सूची में शामिल थे।
[ad_2]
Source link