[ad_1]
दिल्ली हाई कोर्ट ने मंगलवार को राष्ट्रीय राजधानी में आवारा कुत्तों और बंदरों की बढ़ती समस्या पर चिंता व्यक्त की और कहा कि यह समस्या नगर निगम अधिकारियों द्वारा कचरे का निपटारा नहीं किए जाने के कारण हुई है। साथ ही हाई कोर्ट ने राम मनोहर लोहिया अस्पताल को पिछले तीन महीनों के आंकड़े पेश करने का निर्देश दिया कि बंदरों या कुत्तों द्वारा काटे जाने के कारण प्रतिदिन कितने लोग इंजेक्शन लगवाने के लिए अस्पताल पहुंचे।
कार्यवाहक चीफ जस्टिस मनमोहन और जस्टिस तुषार राव गेडेला की पीठ ने कहा, ‘यह एक गंभीर मामला और एक गंभीर समस्या है। यह समस्या शहर में नगर निकायों द्वारा कचरे का निपटान न करने से उपजी है। कचरा न उठाए जाने के कारण, सारा भोजन और कूड़ा इधर-उधर बिखरा पड़ा है। उन्हें इसका अहसास नहीं है। जानवरों को खिलाने का काम वैज्ञानिक तरीके से किया जाना चाहिए।’
पीठ ने कहा, ‘दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) अपना काम ठीक से नहीं कर रहा है। अगर एमसीडी पूरे शहर को कूड़े से भरने दे तो क्या करें? अगर जानवरों को खाना देना बंद कर दें तो वे आना बंद कर देंगे। पूरा शहर कूड़े से भरा हुआ है।’
पीठ ने कहा कि एमसीडी हर जगह फैले कूड़े की समस्या पर ध्यान नहीं दे रही है और यहां तक कि हाई कोर्ट भी बंदरों के आतंक से मुक्त नहीं है। हाई कोर्ट ने यह टिप्पणी एनजीओ ‘न्याय भूमि’ और ‘सोसाइटी फॉर पब्लिक कॉज’ की दो जनहित याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए की, जिसमें आवारा कुत्तों के बढ़ते हमलों का मुद्दा उठाया गया था।
अदालत ने एमसीडी और नई दिल्ली नगर पालिका परिषद (एनडीएमसी) को दो सप्ताह के भीतर वस्तु स्थिति रिपोर्ट दाखिल करने को कहा और मामले की अगली सुनवाई 30 सितंबर के लिए तय की।
[ad_2]
Source link