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मध्य प्रदेश के उच्च शिक्षा मंत्री इंदर सिंह परमार का कहना है कि भारत में छात्रों को इतिहास के बारे में बहुत से गलत तथ्य पढ़ाए जाते हैं। उन्होंने कहा कि ना तो वास्कोडिगामा ने भारत की खोज की थी, और ना ही उसने भारत का समुद्री मार्ग खोजा था। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि अमेरिका की खोज भी कोलंबस ने नहीं की थी, बल्कि हमारे पूर्वजों ने की थी, जो सदियों पहले से वहां जाकर व्यापार कर रहे थे। ये बातें उन्होंने मंगलवार को भोपाल में बरकतउल्ला विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह के दौरान कही। इस दौरान सभागार में प्रदेश के राज्यपाल मंगुभाई पटेल और मुख्यमंत्री मोहन यादव भी बैठे हुए थे।
समारोह में परमार ने कहा, ‘भारत के इतिहास के बारे में गलत बातें पढ़ाई गईं। हमें बताया गया कि वास्कोडिगामा ने भारत की खोज की। उन्होंने भारत के समुद्री मार्ग की खोज की। जबकि ऐसा नहीं है, 1498 में जब वो भारत आए तो हमारे देश के एक गुजराती व्यापारी के पीछे-पीछे आए थे। वास्कोडिगामा ने एक दुभाषिए की मदद से भारतीय व्यापारी से कहा था कि मुझे भारत देखना है। जिसके बाद चंदन नाम के उस व्यापारी ने कहा था कि मैं जाने वाला हूं आप मेरे पीछे-पीछे जहाज डाल देना।’
उन्होंने कहा कि क्रिस्टोफर कोलंबस से पहले भारतीय अमेरिका पहुंच चुके थे, इसलिए मैं लोगों द्वारा लिखी गई बातों का खंडन करता हूं कि कोलंबस ने अमेरिका की खोज की। भारत के रिकॉर्ड से पता चलता है कि यहां के लोग आठवीं शताब्दी में व्यापार के लिए अमेरिका जाते थे। मंत्री ने कहा, ‘कोलंबस 1492 में अमेरिका गए थे, लेकिन हमारे देश के रिकॉर्ड बताते हैं कि हमने आठवीं शताब्दी में ही अमेरिका के साथ व्यापार शुरू कर दिया था।’
‘पाठ्यक्रम से हटाएंगे वास्कोडिगामा वाली बात’
राज्य में पाठ्यक्रम में उक्त तथ्य को संशोधित करने के बारे में पूछे जाने पर, मंत्री परमार ने एएनआई से कहा, ‘यह इतिहास में स्वयंसिद्ध हो चुका है कि वास्कोडिगामा ने भारत की खोज नहीं की थी और हम इसे हटा देंगे। भारत का इतिहास वास्कोडिगामा के देश के निर्माण से पहले भी अस्तित्व में था, इसलिए भारत की खोज का सवाल ही नहीं उठता।’
‘कोलंबस के बाद पहुंचे लोगों ने अत्याचार किए’
समारोह के दौरान उच्च शिक्षा मंत्री ने कहा, ‘एक और झूठ जिसे पढ़ाने की भारत में जरूरत नहीं थी, कि कोलंबस ने अमेरिका की खोज की। भारत के विद्यार्थियों को इससे कोई लेना-देना नहीं था। अगर पढ़ाना था तो यह भी पढ़ाते कि कोलंबस के पहुंचने के बाद वहां पहुंचे लोगों ने वहां के स्थानीय समाज पर किस प्रकार से अत्याचार किए, और वहां के जनजातीय समाज को नष्ट करने का काम किया, क्योंकि वहां का समाज प्रकृति पूजक था, सूर्य का उपासक था। किस प्रकार से उनकी हत्याएं की गईं, किस प्रकार से उनका मतांतरण किया गया। लेकिन दुर्भाग्य से ये सही तथ्य नहीं पढ़ाए गए और उल्टा भारत के विद्यार्थियों को पढ़ाया गया कि कोलंबस ने अमेरिका की खोज की।’
‘सेनडियागो राज्य में बनाए थे मंदिर’
आगे परमार ने कहा, ‘मैं कहना चाहता हूं कि अगर किसी को लिखना था तो यह लिखना था कि भारत का महानाविक आठवीं शताब्दी में वहां गया था और उसने अमेरिकी राज्य सेनडियागो में कई मंदिरों का निर्माण कराया था। इस बारे में वहां के एक संग्रहालय में आज भी तथ्य लिखे हुए हैं, वहां की लायब्रेरी में आज भी तथ्य रखे हुए हैं। अगर किसी को पढ़ाना ही था तो सही पढ़ाना था कि अगर किसी ने अमेरिका की खोज की है तो हमारे पूर्वजों ने की है, हमारे पुरखों ने की है, कोलंबस ने अमेरिका की खोज नहीं की और हम गए तो हमने वहां की संस्कृति माया संस्कृति वहां चलती थी, उसके साथ मिलकर उनके विकास में सहयोग किया है, यही भारतीय दर्शन और चिंतन है, जिसे विद्यार्थियों को पढ़ाने की जरूरत थी।’
उन्होंने यह भी दावा किया कि इतिहासकारों ने देश के सकारात्मक पहलुओं पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय भारत की कमजोरियों को उजागर करने का प्रयास किया गया। उन्होंने कहा, ‘अतीत में हमारे देश के गुणों की अक्सर उपेक्षा की जाती थी, जिसमें कमियों को उजागर करने पर जोर दिया जाता था, लेकिन हमने अपनी शिक्षा नीति में सुधार करके एक रचनात्मक कदम उठाया है। हम उत्कृष्टता के लिए प्रयास करना जारी रखेंगे, यह सुनिश्चित करते हुए कि हमारा शैक्षिक ढांचा हमारे देश के समृद्ध इतिहास, सांस्कृतिक विरासत और मूल्यों का एक व्यापक और संतुलित चित्रण प्रस्तुत करता है, जिससे आने वाली पीढ़ियों में गर्व, एकता और उद्देश्य की भावना पैदा हो।’
बता दें कि फिलहाल पढ़ाए जाने वाले इतिहास के अनुसार 1492 में क्रिस्टोफर कोलंबस ने अनजाने में अमेरिका की खोज कर ली थी, जबकि वह वास्तव में भारत के तट पर पहुंचना चाहता था। वहीं 20 मई, 1498 को वास्कोडिगामा कोझिकोड के पास कप्पड़ पहुंचे थे, जो उस समय कालीकट के जमोरिन (समुथिरी राजा) के राज्य का हिस्सा था। ऐसा माना जाता है कि केन्या के एक भारतीय ने डिगामा को उपमहाद्वीप का रास्ता बताने में मदद की थी तथा उन्हें मॉनसून के बारे में भी बताया था।
इससे पहले राज्यपाल श्री मंगुभाई पटेल एवं मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव ने कुशाभाऊ ठाकरे सभागार में आयोजित बरकतउल्ला विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह-2024 का उद्घाटन दीप प्रज्ज्वलित कर किया। कार्यक्रम में मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव ने घोषणा की कि बरकतउल्ला विश्वविद्यालय भविष्य में सभी पात्र छात्र-छात्राओं को निःशुल्क उपाधि प्रदान करेगा।
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