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मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले में भगवान श्रीराम का एक ऐसा अनोखा अजानभुज मंदिर है जो शायद पूरे विश्व में दूसरा कहीं नहीं है। यहां भगवान श्रीराम अकेले विराजमान हैं। उनके साथ न तो उनकी पत्नी माता सीता और न ही उनके भाई लक्ष्मण मौजूद हैं। यहां तक कि उनके परम भक्त हनुमान जी भी यहां मौजूद नहीं हैं। इस मंदिर में गद्दी पर सिर्फ भगवन श्रीराम हाथों में धनुष बाण लिए विराजमान हैं।
वर्तमान में मंदिर के महंत भगवान दास बताते हैं कि यह मंदिर 600 वर्ष पहले अस्तित्व में आया था। इस समय मंदिर के महंत हरदास देव थे। अजानभुज मंदिर का इतिहास रामायण काल का है। इस मंदिर का जिक्र रामायण में भी आता है। कहते हैं कि जब भगवान श्रीराम वनवास में थे, उस समय उन्होंने बुंदेलखंड में लंबा समय बिताया। उस समय भगवान श्रीराम माता सीता के साथ छतरपुर एवं पन्ना जिले में भी रहे।
क्यों है इस मंदिर में भगवान श्रीराम अकेले
अजानभुज का अर्थ होता है भुजाओं का घुटने तक होना या भुजाओं बड़ा होना। रामायण की एक चौपाई में भी इस मंदिर का जिक्र आता है। “अजानभुज सरचाप धर संग्राम चित खदूषणम”। कहते हैं एक बार राक्षसों का आतंक बहुत बढ़ गया था। भगवान श्रीराम माता सीता के साथ इसी तरफ वनवास काट रहे थे। इस बीच भगवान श्रीराम को कुछ साधु संत मिले और उन्होंने बताया कि राक्षसों से हम सब बहुत परेशान हैं। खर और दूषण नाम के दो राक्षक्ष साधु संतों को मार रहे हैं। इसके बाद भगवान श्रीराम ने प्रण किया किया कि वह धरती को राक्षसों से मुक्त कर देंगे। उन्होंने खर और दूषण का वध करने की ठान ली।
महंत भगवान दास बताते हैं कि जब खर और दूषण अपनी राक्षसों की सेना लेकर आ रहे थे तब भगवान श्रीराम ने अपने भाई लक्ष्मण से कहा कि हे लक्ष्मण तुम सीता को एक गुफा में लेकर चले जाओ क्योंकि राक्षसों का इतना बड़ा समूह देखकर वह डर जाएंगी। भगवान श्रीराम की आज्ञा मानकर लक्ष्मण सीता माता को गुफा के अंदर ले गए। उस वक्त भगवान श्रीराम अकेले रहे और उन्होंने खर और दूषण नाम के दोनों राक्षसों का वध कर दिया।
इसी घटना का जिक्र इस मंदिर में मिलता है। कहते हैं कि जो भी इस मंदिर में सच्चे मन से भगवान श्रीराम का दर्शन करता है, उसकी मनोकामना जरूर पूरी होती है।
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