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बच्चों में गैर संचारी रोग नियंत्रण के लिए यूनिसेफ ने भारत की मदद की योजना बनाई यूनीसेफ के विशेषज्ञ बोले, बच्चों के स्वास्थ्य के लिए एक कारक बनता जा रहा वातावरण
नई दिल्ली, एजेंसी। यूनिसेफ ने बच्चों में गैर-संचारी रोगों (एनसीडी) को लेकर बढ़ती चिंता को दूर करने के लिए सरकार से सहयोग करने की योजना बनाई है। भारत में यूनीसेफ के स्वास्थ्य विशेषज्ञ डॉ. विवेक वीरेंद्र सिंह ने यह जानकारी दी।
संयुक्त राष्ट्र का संगठन यूनिसेफ वैश्विक स्तर पर बच्चों के लिए काम करता है। डॉ. विवेक सिंह ने एक साक्षात्कार में पर्यावरण क्षरण, जलवायु परिवर्तन और बच्चों में गैर-संचारी रोगों के बीच अंतर्सबंध के मुद्दे को तत्काल देखने की आवश्यकता पर भी जोर दिया।
यूनिसेफ के स्वास्थ्य विशेषज्ञ ने कहा कि सरकार विशेष रूप से बच्चों में गैर-संचारी रोगों को लक्षित करते हुए अतिरिक्त दिशा-निर्देश तैयार कर रही है। उन्होंने कहा कि यूनिसेफ इन दिशा-निर्देशों को भारत के सभी राज्यों में प्रभावी रूप से प्रसारित करने के लिए सरकार को सहयोग देने की योजना बनाई है।
उन्होंने कहा कि इन दिशानिर्देशों से बच्चों में एनसीडी की रोकथाम और प्रबंधन के लिए जिला स्तर पर 800 से अधिक एनसीडी क्लीनिक और उप-जिला स्तर पर 2,000 से अधिक एनसीडी क्लीनिक के भारत के व्यापक नेटवर्क का लाभ उठाने में मदद मिलेगी।
डॉ. विवेक सिंह ने कहा कि यह दिशानिर्देश विभिन्न कार्यक्रमों और क्षेत्रों में एकीकरण का अवसर भी प्रदान करेगा। उदाहरण के लिए, स्वास्थ्य और कल्याण केंद्रों के माध्यम से व्यापक प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल, स्कूल स्वास्थ्य कार्यक्रम और महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के आईसीडीएस (एकीकृत बाल विकास सेवा) कार्यक्रम।
उन्होंने कहा कि सरकार की यह पहल भारत की स्वास्थ्य रणनीति में एक महत्वपूर्ण बदलाव को दर्शाती है। क्योंकि पिछले साल गैर-संचारी रोगों के लिए संशोधित राष्ट्रीय कार्यक्रम में बाल चिकित्सा देखभाल को शामिल करने पर अपना ध्यान केंद्रित किया। कहा कि 2023 में, भारत ने गैर-संचारी रोगों के लिए राष्ट्रीय कार्यक्रम के लिए अपने परिचालन दिशानिर्देशों को अद्यतन किया और एनसीडी को शामिल करने के लिए दायरे को व्यापक बनाया जो शुरू में कैंसर, मधुमेह और उच्च रक्तचाप पर केंद्रित था।
डॉ. विवेक ने बचपन में होने वाले टाइप-एक मधुमेह जैसी गैर-संचारी बीमारियों से पीड़ित बच्चों के लिए गुणवत्तापूर्ण और सार्वभौमिक देखभाल सुनिश्चित करने की बढ़ती आवश्यकता पर भी चर्चा की। बच्चों में टाइप-एक मधुमेह एक आनुवंशिक बीमारी है, लेकिन कई अनुसंधानकर्ताओं ने पर्यावरण में भारी धातु विषाक्तता और मधुमेह जैसे अंतःस्रावी विकारों में वृद्धि की आंशकाओं को हालिया साक्ष्यों से उजागर किया है।
पर्यावरण अहम कारक :
डॉ. विवेक ने कहा, ‘जिस वातावरण में बच्चे रहते हैं, वह उनके स्वास्थ्य के लिए एक कारक बनता जा रहा है। पर्यावरणीय क्षरण इन जोखिमों को बढ़ा रहा है विशेषकर सबसे कमजोर महिलाओं और बच्चों में। पर्यावरण क्षरण और जलवायु परिवर्तन किस प्रकार एनसीडी की व्यापकता को प्रभावित कर रहे हैं, इसे पूरी तरह से समझने तथा प्रभावी हस्तक्षेप रणनीतियां विकसित करने के लिए हमें अधिक सुदृढ़ अनुसंधान की आवश्यकता होगी।
वैश्विक सहयोग की जरूरत :
डॉ. विवेक सिंह ने इन चुनौतियों से निपटने के लिए वैश्विक सहयोग की जरूरत पर जोर दिया। उन्होंने कहा, पर्यावरण क्षरण और जलवायु परिवर्तन एक वैश्विक मुद्दा है जिसके लिए सभी क्षेत्रों की ओर से समन्वित प्रतिक्रिया की आवश्यकता है। यूनिसेफ स्वस्थ बच्चों के लिए स्वास्थ्यवर्धक वातावरण को लेकर चुनिंदा राज्यों के साथ काम कर रहा है और स्थानीय प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल प्रणालियों को मजबूत करने की योजना बना रहा है। यूनिसेफ बच्चों को एनसीडी एजेंडे के केंद्र में रखने के लिए राज्यों और भारत सरकार के साथ काम करेगा और वर्ष 2025 में एनसीडी पर केंद्रित चौथी संयुक्त राष्ट्र उच्च स्तरीय बैठक में इस मुद्दे को उठाएगा।
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