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झारखंड में ‘कोल्हान टाइगर’ के नाम से लोकप्रिय राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री ने अब तक के अपने राजनीतिक सफर में कई उतार-चढ़ाव देखे हैं। कभी झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन के करीबी सहयोगी रहे चंपाई को अब झारखंड के आदिवासी इलाके में पैर जमाने के भाजपा के प्रयासों के लिए महत्वपूर्ण माना जा रहा है। राज्य के आदिवासी इलाके में अनुसूचित जनजाति के लगभग 26 प्रतिशत मतदाता हैं।
झारखंड के सरायकेला-खरसावां जिले के सुदूर जिलिंगगोरा गांव में जन्मे चंपाई सोरेन की प्रसिद्धि आश्चर्यजनक रूप से बढ़ी है। अपने पिता के साथ खेतों में काम करने से लेकर निर्दलीय विधायक और बाद में झारखंड के मुख्यमंत्री बने। दरअसल, हेमंत सोरेन ने मनी लॉन्ड्रिंग मामले में ईडी द्वारा गिरफ्तार किए जाने से ठीक पहले इस्तीफा दे दिया था। उसके बाद 2 फरवरी को चंपाई सोरेन झारखंड के 12वें मुख्यमंत्री बने। उनका कार्यकाल काफी संक्षिप्त रहा।
एक सरकारी स्कूल से मैट्रिक पास करने वाले चंपाई सोरेन ने 1991 में अविभाजित बिहार में सरायकेला सीट से उपचुनाव के माध्यम से एक निर्दलीय विधायक के रूप में चुने जाने के बाद अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत की। चार साल बाद उन्होंने झामुमो के टिकट पर इस सीट से विधानसभा चुनाव लड़ा और भाजपा के पांचू टुडू को हराया। झारखंड का गठन होने के बाद 2000 के पहले विधानसभा चुनाव में वह उसी निर्वाचन क्षेत्र से भाजपा के अनंत राम टुडू से हार गए थे।
उसके बाद 2005 में भाजपा उम्मीदवार को हराकर सीट दोबारा हासिल की और 2009, 2014 और 2019 में चुनाव जीते। उन्होंने सितंबर 2010 और जनवरी 2013 के बीच अर्जुन मुंडा के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार में कैबिनेट मंत्री के रूप में कार्य किया, जब भाजपा ने झामुमो के समर्थन से राज्य में सरकार बनाई थी। 2019 में जब हेमंत सोरेन ने राज्य में अपनी दूसरी सरकार बनाई तो चंपाई सोरेन खाद्य और नागरिक आपूर्ति और परिवहन मंत्री बने। कम उम्र में शादीशुदा चंपाई सोरेन चार बेटों और तीन बेटियों के पिता हैं।
झारखंड के मुख्यमंत्री के रूप में महज पांच महीने बाद चंपाई सोरेन को उस पार्टी से इस्तीफा देने के लिए मजबूर होना पड़ा, जिसे वह कभी प्रिय मानते थे। 28 जून को हेमंत सोरेन की जेल से रिहाई और उसके बाद 4 जुलाई को मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेने के बाद चंपाई सोरेन ने 3 जुलाई को इस्तीफा दे दिया था।
1990 के दशक में एक अलग राज्य के निर्माण में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका के लिए ‘झारखंड का टाइगर’ उपनाम अर्जित करने वाले 67 साल के चंपाई सोरेन ने 18 अगस्त को सोशल मीडिया पर झामुमो से अपना मोहभंग व्यक्त किया। उन्होंने लिखा, “इतने अपमान के बाद, मुझे वैकल्पिक रास्ता तलाशने के लिए मजबूर होना पड़ा… क्या लोकतंत्र में किसी अन्य व्यक्ति द्वारा मुख्यमंत्री का कार्यक्रम रद्द करने से ज्यादा अपमानजनक कुछ हो सकता है? बैठक के दौरान (3 जुलाई को विधायक दल की बैठक) मुझे इस्तीफा देने के लिए कहा गया। मैं अचंभित रह गया। चूंकि मुझे सत्ता की कोई इच्छा नहीं थी, इसलिए मैंने तुरंत इस्तीफा दे दिया। मेरे आत्मसम्मान को गहरी ठेस पहुंची।”
उन्होंने कहा, “लेकिन उनकी (मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का नाम लिए बिना जिक्र करते हुए) केवल कुर्सी में दिलचस्पी थी। मुझे ऐसा लग रहा था कि जिस पार्टी को मैंने अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया है, उसमें मेरा कोई अस्तित्व नहीं है, कोई उपस्थिति नहीं है।” चंपाई सोरेन ने मंगलवार को भाजपा में शामिल होने के अपने फैसले की घोषणा करते हुए कहा कि वह संघर्ष के आदी हैं और अपने राज्य के हित में ऐसा कर रहे हैं।
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