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झारखंड में सियासी संशय को खत्म करते हुए पूर्व सीएम चंपाई सोरेन ने भाजपा में शामिल होने की घोषणा कर दी है। वे दिल्ली में हुई गहमागहमी के बाद बुधवार को रांची लौट आए और देर शाम उन्होंने झामुमो के साथ-साथ मंत्री और विधायक पद से भी इस्तीफा दे दिया। इन सबके बीच बुधवार को राज्य में दो बड़े कार्यक्रमों पर सबकी निगाहें थीं। पहला मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का चंपाई के गढ़ में आयोजित सरकारी कार्यक्रम था, जबकि दूसरा चंपाई का दिल्ली से रांची लौटना। मुख्यमंत्री के कार्यक्रम में क्षेत्र के सभी झामुमो जनप्रतिनिधि साथ थे। कार्यकर्ताओं और क्षेत्र के लोगों की मौजूदगी भी देखी गई। आदिवासी, मूलवासी की संख्या भी ज्यादा रही।
चंपाई के साथ नहीं दिखा बड़ा चेहरा
वहीं चंपाई जब रांची लौटे तो यहां एयरपोर्ट पर झामुमो का कोई बड़ा धड़ा नहीं दिखा। सरायकेला के भी झामुमो नेताओं व कार्यकर्ताओं में से कोई बड़ा चेहरा नजर नहीं आया। हालांकि, देर शाम उनके आवास पर समर्थकों की भीड़ उमड़ी।
कहा जा रहा है कि ऐसा शायद इसलिए भी हुआ कि झामुमो ने संगठन में निचले स्तर तक ध्यान रखा है। शायद यही कारण है कि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का मंईयां सम्मान योजना से संबंधित कार्यक्रम चंपाई के विधानसभा क्षेत्र सरायकेला में रखा गया था। दिल्ली से रांची लौटे चंपाई के साथ भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी मौजूद थे। जिनके बारे में कुछ दिनों पहले यह कयास थे कि उनके विरोध के कारण चंपाई को भाजपा में शामिल नहीं कराया जा रहा है। यहां यह ध्यान देने की बात है कि मरांडी भी एक बड़े संताली नेता हैं। दोनों नेताओं के साथ होने से भाजपा ने एकजुटता का संदेश दिया है।
हिसाब-किताब लगाने में जुटी पार्टी
चंपाई और भाजपा की ओर से की गई घोषणाओं में यह स्पष्ट कर दिया गया है कि चंपाई 30 अगस्त को भाजपा का दामन थामेंगे। वहीं दूसरी ओर झारखंड सरकार की ओर से मुख्यमंत्री का एक बड़ा कार्यक्रम राजधानी रांची में रखा गया है। इससे यह तो स्पष्ट हो जाता है कि जहां एक ओर भाजपा चंपाई के आगमन के लाभ हानि का हिसाब-किताब लगा रही है। वहीं दूसरी ओर झामुमो इस टूट को हल्के में न लेते हुए अपनी रणनीति को और अधिक धारदार बनाने का प्रयास कर रहा है।
चंपाई के पीछे हनी ट्रैप के लिए लड़की भी लगाई गई; भाजपा का बड़ा आरोप
हालांकि राजनीतिक श्रेष्ठता का सही आकलन तो समय के साथ ही किया जाना संभव हो पाएगा। लेकिन साधारण अंकगणित तो यह समझाता है कि कोल्हान के 14 विधानसभाओं में से 13 विधानसभा सीटें इंडिया गठबंधन के पास हैं और एक से निर्दलीय सरयू राय विधायक हैं। इन 14 सीटों पर 2019 के चुनाव में भाजपा पराजित तो हुई, लेकिन दूसरे स्थान पर रही है। राजनीतिक जोड़ घटाव के माध्यम से भाजपा कोल्हान में कुछ ऐसा ही मंच सजाने का प्रयास कर रही है, जैसा लोकसभा चुनावों के पहले उसने संताल में किया था। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि संताल का यह सियासी प्रयोग उतना सफल नहीं हो पाया था, क्योंकि झामुमो से बागी होकर निकले लोबिन हेम्ब्रम और झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन की बड़ी पुत्रवधू सीता सोरेन भाजपा के लिए कमल खिलाने में कारगर नहीं हो सके। अब लगभग उसी प्रकार की बाजी कोल्हान में खेली जा रही है।
चंपाई के लिए क्या चुनौती
चंपाई का निश्चित रूप से झामुमो के एक बड़े आदिवासी नेता के रूप में पहचान है। पर क्या झामुमो के बिना भी उनका प्रभाव बना रहेगा, यह एक महत्वपूर्ण प्रश्न है। और इसी प्रश्न का उत्तर ढूंढ़ने में भाजपा आलाकमान को इतना लंबा समय लगा। झारखंड आंदोलन के समय से ही चंपाई झामुमो के प्रमुख नेताओं में से रहे हैं और जब-जब झामुमो सत्तासीन रही है तब-तब उस सत्ता में शामिल रहे। अपनी पांच दशकों से भी लंबी राजनीति में चंपाई झामुमो की विचारधारा में जिस प्रकार रचे बसे हैं, यह देखना दिलचस्प होगा कि अपने केसरिया अवतार में चंपाई किस प्रकार की राजनीति कर पाते हैं। और कितना प्रभाव छोड़ पाते हैं। अब जबकि चंपाई सोरेन ने झामुमो के सभी पदों से इस्तीफा दे दिया है, ऐसे में उन्हें झामुमो के बिना अपनी प्रतिष्ठा और पहचान बनाए रखने की और झामुमो को भी चंपाई के बिना कोल्हान में अपना किला अभेद्य रखने की चुनौती होगी।
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