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बीकानेर का मूंग दाल और गोंद का हलवा। पश्चिमी राजस्थान का कुमटिया और पाली का गुलाब हलवा। राजस्थान के इन प्रसिद्ध हलवों के बारे में आपने खूब सुना होगा। स्वाद भी चखा होगा।
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लेकिन आज हम राजस्थान के ऐसे हलवे के स्वाद से आपको रूबरू करवाएंगे जिसकी खोज आज से 600-700 वर्ष पहले हुई थी। राजे-रजवाड़ों की शाही रसोइयों में अरब से आने वाले व्यापारियों के लिए यह हलवा खास तौर से तैयार किया जाता था।
ये है दही का हलवा। इस हलवे को बनाने की रेसिपी कुछ ही लोगों के पास होती थी। यही कारण है कि वक्त के साथ यह लजीज जायका लोगों से दूर होता गया। भास्कर ऐप के पाठकों के लिए हलवे की यूनिक रेसिपी और इसके इतिहास की कहानी लेकर आए हैं, राजस्थानी कुजिन के शेफ प्रेम सिंह राठौड़।
अरब के व्यापारियों के लिए बनता था ये स्पेशल ‘हलवा’
प्रेम सिंह राठौड़ बताते हैं दही का हलवा रॉयल कुजिन की रेसिपी है। अरब देशों के व्यापारी मसालों के लिए सिल्क रूट के जरिए राजस्थान के मारवाड़ और मेवाड़ आते थे। व्यापारी अपने साथ ड्राई फ्रूट्स लाकर बेचते और मसाले खरीदकर ले जाते थे। प्रवास के दौरान व्यापारियों को महलों में ही ठहराया जाता था। तब आसपास क्षेत्रों में दूध-दही-घी की बहुतायत होती थी।
ये है दही से तैयार होने वाला ‘दही का हलवा’
अरब व्यापारियों में मिठाई के तौर पर हलवा ही सबसे लोकप्रिय व्यंजन होता था। ऐसे में तब शाही रसोई के हलवाई अलग-अलग तरह का हलवा उनके लिए ट्राई करते रहते थे। ऐसे ही एक प्रयोग से दही का हलवा बना था। पहली बार इसे किसने बनाया, इस बात के प्रमाण मौजूद नहीं हैं। लेकिन यह रेसिपी कई शताब्दियों पुरानी है। हालांकि इसका चलन बीच में बंद हो गया था।
चलन बंद हुआ तो बन गई ‘लॉस्ट रेसिपी’
प्रेम सिंह बताते हैं, आमतौर पर उन दिनों गेहूं के आटे, गोंद और मूंग दाल का हलवा ही था, जो लोगों की जुबां पर छाया रहता था। शाही घरानों में बनने वाली कई रेसिपी आम लोगों तक नहीं पहुंच पाती थी। क्योंकि उन्हें बनाने में अधिक मेहनत लगती थी। हलवे में डलने वाले ड्राईफ्रूट्स, केसर जैसी सामग्री भी आम लोगों की पहुंच से दूर होती थी।
जहां तक दही के हलवे की बात है, इसे बनाते समय कई सावधानियां बरतनी पड़ती हैं। दही के फटने की भी आशंका रहती है। यही कारण है कि शाही दावतों का हिस्सा रहा ‘दही का हलवा’ आम लोगों में पॉपुलर नहीं हो पाया और बहुत कम चलन में रहा। आज यही हलवा देश-विदेश के पांच सितारा होटलों में परोसा जाता है।
ऐसे तैयार होता है यह यूनिक हलवा
शेफ प्रेम सिंह राठौड़ बताते हैं दही का हलवा स्वाद में बहुत यूनिक होता है। मीठे के साथ इसमें दही के कारण हल्का सा खट्टा टेस्ट भी आता है। गोंद और मूंग दाल के हलवे से हटकर। देसी घी में सिकाई के कारण यह काफी क्रंची होता है। इसे तैयार करने की रेसिपी भी अपने आप में यूनिक है। हलवा बनाने की तैयारी कम से कम 12 घंटे पहले करनी पड़ती है। सबसे जरूरी सामग्री दही है, जिसे रातभर मखमल के कपड़े में लटकाकर हैंगकर्ड तैयार करते हैं।
दही का हलवा बनाने में बड़ी सावधानी के साथ सभी स्टेप्स को फॉलो करना पड़ता है।
- सबसे पहले मोटे बेस की कहाड़ी में घी लेते हैं, इसमें एक कटोरी पिसे हुए बादाम की सिकाई कर इसे बाहर निकाल लेते हैं।
- अब दोबारा घी लेकर उसमें दही डालते हैं, इसे पानी खत्म होने तक सेकते हैं।
- घी में अच्छी तरह सिकने के बाद यह बिलकुल छैना की तरह बन जाता है।
- अब इस में सिके हुए बादाम का तैयार मसाला मिक्स करके पकाते हैं।
- हलवा बनाते समय 2 बातों का ध्यान रखना होता है, दही नीचे नहीं लगना चाहिए और पानी की एक बूंद भी नहीं रहनी चाहिए।
- अब इलायची पाउडर डालते हैं, फिर भिगोकर रखे गए केसर का पानी डालते हैं, इससे हलवे का रंग बहुत ही बेहतरीन बन जाता है।
- अब मीठे के लिए गुड़ डालकर तब तक पकाते हैं, जब तक घी ऊपर नहीं आ जाए।
- तैयार हलवे को बादाम-पिस्ता से गार्निश करके परोसते हैं।
जब हलवा घी छोड़ने लगे तो समझ जाइए आपका लजीज जायका तैयार हो चुका है।
13वीं शताब्दी में मिलता है हलवे का जिक्र
मुहम्मद इब्न अल-हसन इब्न अल-करीम द्वारा व्यंजनों पर लिखी 13वीं शताब्दी की ‘किताब अल-तबीख’ में हलवे की पहली रेसिपी का जिक्र मिलता है। इस किताब में हलवे के आठ अलग-अलग प्रकार और उनके व्यंजनों का उल्लेख है। इसी किताब में खाद्य इतिहासकारों के हवाले से जिक्र किया गया था कि अरब से आया हलवा हिंदुस्तान के शुरुआती शहरों कराची और कोझिकोड तक पहुंचा। बाद में हलवा इन शहरों में खाद्य परंपराओं का एक अभिन्न अंग बना। यही कारण है कि आज केरल के कोझिकोड और पाकिस्तान के कराची का हलवा दुनियाभर में प्रसिद्ध है।
हलवा भारत में आया और लोगों का दिल जीत गया। यह भारतीय खाद्य परंपरा में इस तरह शामिल हुआ कि इसे बनाने वाले को ‘हलवाई’ के नाम से पुकारा जाने लगा। आज भी मिठाई बनाने वाले को हलवाई ही पुकारा जाता है। हलवाइयों ने अपने किचन में हलवे पर कई एक्सपेरिमेंट किए।
आगे बढ़ने से पहले देते चलिए आसान से सवाल का जवाब
हलवे से जुड़ी कुछ रोचक बातें
देशभर में आपको हलवे की भिन्न-भिन्न वैरायटी देखने को मिले जाएंगी। पुणे से ‘हरी मिर्च का हलवा’, पश्चिम बंगाल से ‘चोलर दाल हलवा’, उत्तर प्रदेश और बिहार से ‘अंडा हलवा’, कर्नाटक से ‘काशी हलवा’, केरल से ‘करुठा हलवा’, राजस्थान में मूंगदाल, गोंद और कुमटिया का हलवा, पंजाब में गाजर का गजरेला, केरल में कोझिकोड का हलवा जैसे कुछ प्रकार हैं।
- हलवा शब्द का अरबी में भी पालन किया जा सकता है, जिसका अर्थ है मीठा पकवान या मिठाई।
- इसे यूनान में हलवा, मिस्र में हलावा, हिब्रू में हलवाह, अरबी में हिलवा, तुर्की में हेलवा और संस्कृत में हलावा कहा जाता है।
शेफ का परिचय
प्रेम सिंह राठौड़ राजस्थानी कुजिन के स्पेशलिस्ट हैं। वे मूल रूप से केरिंग जी का खेड़ा (राजसमंद) के रहने वाले हैं। ओबेरॉय जैसे कई फाइस स्टार होटल्स में अपनी सेवाएं दे चुके हैं। सोशल मीडिया पर रावली रसोई (Rawali Rasoi) नाम से राजस्थान की खोई हुई रेसिपी के बारे में बताते हैं।
पिछले राजस्थानी जायका में पूछे गए प्रश्न का सही उत्तर
ये हैं सवाईमाधोपुर के प्रसिद्ध बड़े। रणथंभौर के बाघ देखने रोज सैकड़ों पर्यटक सवाई माधोपुर जंक्शन पहुंचते हैं। जैसे ही ट्रेन रुकती है, प्लेटफॉर्म पर कई ठेलों और स्टॉल पर दाल के बड़े…सवाई माधोपुर के प्रसिद्ध बड़े…गरमा-गरम दाल के बड़े…की आवाजें और महक पर्यटकों को अपनी ओर खींच लेती है।
ट्रेन भले ही 2 मिनट क्यों न रुके, बड़ों की महक पहुंचते ही यात्री ट्रेन से उतर कर इस स्टेशन का जायका लेना नहीं भूलते….(राजस्थानी जायका का यह एपिसोड CLICK कर पूरा पढ़ें और देखें)
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