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हरदा में मंगलवार को भुजरिया उत्सव हर्षोल्लास से मनाया गया। इस मौके पर शाम को अजनाल नदी के तट पर भुजरिया का विसर्जन किया गया। शहर के अलग-अलग मोहल्लों के श्रद्धालुओं की टोलियां भजन-कीर्तन करते पेड़ी घाट पहुंची। घाट पर पूजन के बाद जवारों का विसर्जन किया।
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लेकिन शाम के समय हुई झमाझम बारिश ने भुजरिया उत्सव को फीका कर दिया। नदी के घाट पर हर साल की तुलना में बहुत कम लोग विसर्जन के लिए पंहुचे। विसर्जन के बाद लोगों ने मंदिरों में भगवान को भुजरिया चढ़ाने के बाद एक दूसरे को भुजरिया देकर बधाई दी। वहीं बड़ों के पैर छूकर आशीर्वाद लिया।
ग्रामीणों को आज भी परंपरा पर भरोसा
देश में भले ही खेती की आधुनिक तकनीक आ गई हो लेकिन ग्रामीण किसान आज भी परम्पराओं पर ही भरोसा करते हैं। इसका उदाहरण भुजरिया पर्व पर बोई जाने वाली भुजरियों के आकार से किसानों द्वारा रबी सीजन में गेहूं की पैदावार का अनुमान लगाना है। लेकिन आज भी जिले के किसान सावन मास की नवमी तिथि को बोई जाने वाली भुजरियों की रंगत से ही गेहूं की पैदावार का अनुमान लगाया जाता है।
पीपल्या घोंघई नदी के तट पर किया भुजरिया विसर्जन
ग्राम पीपल्या, मगरधा, बालागांव, रहटगांव, फुलडी, पानतलाई में भी भुजरिया पर्व हर्षोल्लास और धूमधाम से मनाया गया। ग्रामीणों ने पूर्व जनपद सदस्य रामभरोस पटेल के निवास पर भुजरिया की टोकनियों को एकत्रित कर विधि-विधान से पूजा अर्चना की।
महिलाओं ने सिर पर भुजरियों की टोकनियों को रखकर भजन गाते हुए गांव के मुख्य मार्गों से चल समारोह निकाला गया। पुरुषों ने परंपरा अनुसार ढोलक-मजीरों की थाप पर भजन गाते हुए डंडे लड़ाए गए। घोघई नदी पर भुजरिया की पूजा कर विसर्जन किया गया। ग्रामीणों ने एक दूसरे को गले मिलकर भुजरिया दी गई।
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