[ad_1]
दिल्ली हाईकोर्ट से एक महिला को बहुत बड़ी राहत मिली है। कोर्ट ने उसे गर्भपात कराने की अनुमति दे दी है। महिला 22 हफ्ते की गर्भवती है। अदालत से इजाजत इस आधार पर मिली है कि गर्भावस्था जारी रखने से उसके मानसिक स्वास्थ्य को खतरा हो सकता है। अपने फैसले में कोर्ट ने कहा कि अस्थायी लिव-इन रिलेशनशिप से हुई गर्भावस्था, सामाजिक कलंक के कारण उसकी परिस्थिति और मुश्किल हो गई है। जस्टिस संजीव नरूला की पीठ ने कहा कि महिला की ऐसी दशा अनचाहे गर्भ की वजह है, जो विशिष्ट रूप से चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों के कारण है, जिससे उसे गंभीर संकट और कठिनाई का सामना करना पड़ा।
अदालत ने शनिवार 16 अगस्त को जारी अपने आदेश में कहा, ‘अदालत की राय है कि अगर याचिकाकर्ता की गर्भावस्था जारी रहती है तो इससे उसके और उसके अजन्मे बच्चे दोनों के लिए सही वातावरण नहीं रहेगा। इस स्थिति को देखते हुए उसके मानसिक स्वास्थ्य के लिए खतरा पैदा हो सकता है।’ याचिकाकर्ता महिला की 2016 में शादी हुई थी। उसने 2017 में एक बेटी को जन्म दिया। बच्ची के जन्म के बाद पति ने उसे और उसकी बेटी को छोड़ दिया। वो कहा हैं महिला को इसकी कोई खबर नहीं है।
पति के छोड़कर जाने के बाद महिला किसी दूसरे व्यक्ति के साथ रहने लगी और अदालत के समक्ष उसकी याचिका में कहा गया कि उसकी नई गर्भावस्था अवांछित है क्योंकि यह लिव-इन रिलेशनशिप के कारण हुई है। महिला ने याचिका में कहा है कि उसे स्वास्थ्य संबंधी दिक्कतों के कारण बहुत देर से गर्भावस्था का एहसास हुआ, जिसकी वजह से उसका मासिक धर्म अनियमित हो गया। जब उसे गर्भावस्था का पता चला, तो वह मेडिकल टर्मिनेशन की मांग करने के लिए विभिन्न डॉक्टरों और क्लीनिकों में गई, लेकिन सभी डॉक्टर्स ने मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (एमटीपी) अधिनियम की सीमाओं के आधार पर ऐसा करने से मना कर दिया।
बता दें कि अधिनियम के तहत, पंजीकृत चिकित्सक की सलाह के अनुसार महिलाएं गर्भावस्था के 20 हफ्ते तक कानूनी रूप से गर्भपात करा सकती हैं, और एमटीपी नियमों के तहत परिभाषित कुछ महिलाओं के लिए 24 हफ्ते तक गर्भपात कराया जा सकता है। महिला ने याचिका में यह भी बताया था कि वह दूसरे बच्चे का पालन-पोषण करने में सक्षम नहीं है। वह पहले से ही आर्थिक कठिनाइयों और परेशानियों को झेलते हुए अपनी सात साल की बेटी का अकेले ही पालन-पोषण कर रही है।
[ad_2]
Source link