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दिल्ली हाईकोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि वह शहर के निवासियों के स्वास्थ्य को लेकर चिंतित है। मवेशियों को जहरीला कचरा खाने की इजाजत नहीं दी जा सकती, क्योंकि इससे वे स्वस्थ दूध नहीं दे पाएंगे। कोर्ट ने कहा कि हम अगली पीढ़ी के लिए डेयरियों के बुनियादी ढांचे का विकास करने को बाध्य हैं। गायों को जहरीला कचरा खाने की अनुमति नहीं दी जा सकती। हमारा ध्यान किसी भी चीज से ज्यादा नागरिकों के स्वास्थ्य पर है। अदालत ने यह टिप्पणी दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) के हजारों नागरिकों के प्रतिरोध के बीच भलस्वा डेयरी कॉलोनी में तोड़फोड़ को अस्थायी रूप से रोकने पर की।
हाईकोर्ट ने डेयरी क्षेत्र में चल रही एक आवासीय कॉलोनी पर कड़ी आपत्ति जताई। अदालत ने कहा कि डेयरी कॉलोनियों में भारी अतिक्रमण और अवैध निर्माण है। जब गायें जहरीला कचरा खाने लगेंगी, तो वे स्वस्थ दूध नहीं देंगी। अगर कालोनी वासी एमसीडी की कार्रवाई (तोड़फोड़) से व्यथित हैं, तो एमसीडी के लिए अपीलीय न्यायाधिकरण में जाएं। इन लोगों को डेयरियों से कोई सरोकार नहीं है। उन्हें केवल अपनी संपत्तियों से मतलब है।
कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मनमोहन एवं न्यायमूर्ति मनमीत पी एस अरोड़ा की पीठ ने कहा कि हम दिल्ली के नागरिकों के स्वास्थ्य के बारे में चिंतित हैं। उच्च न्यायालय ने भलस्वा में कुछ व्यक्तिगत डेयरी मालिकों को ध्वस्तीकरण से 9 अगस्त को दी गई अंतरिम सुरक्षा को 23 अगस्त तक बढ़ा दिया, जो फिर से बसने के इच्छुक हैं, बशर्ते कि वे अपने भूखंडों पर निर्माण की सीमा, मवेशियों की संख्या आदि के संबंध में हलफनामे में खुलासा करें।
भलस्वा में कथित अवैध निर्माण को गिराने पर रोक लगाने की मांग करने वाले आवेदकों को लेकर एक्टिंग चीफ जस्टिस ने कहा, ‘दूषित दूध बेचा जा रहा है। हम इसे सार्वजनिक स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से देख रहे हैं… यह व्यावहारिक रूप से जहर है। हमें अवैध निर्माण से कोई सरोकार नहीं है… आप इसे भूमि के तौर पर देख रहे हैं। यदि कोई ध्वस्तीकरण आदेश है, तो उसे कानून के अनुसार चुनौती दें। यदि आपका निर्माण वैध है, तो आपकी संपत्ति वैध है… (अन्यथा) एमसीडी नियम अनुसार कार्रवाई करेगी।’
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