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दिल्ली शिक्षा विभाग ने रक्षा बंधन जैसे त्योहारों को देखते हुए सभी मान्यता प्राप्त स्कूलों के प्रमुखों को छात्रों के खिलाफ शारीरिक दंड या भेदभावपूर्ण प्रथाओं पर रोक सुनिश्चित करने का निर्देश दिया है। शिक्षा विभाग ने यह कदम राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) के एक हालिया पत्र के मद्देनजर उठाया गया है। आयोग के पत्र में कहा गया था कि ऐसे उदाहरण सामने आए हैं, जहां कुछ स्कूल रक्षा बंधन जैसे त्योहारों के दौरान बच्चों को ‘राखी’ या ‘तिलक’ या ‘मेहंदी’ पहनने की अनुमति नहीं देते हैं। ऐसा करने पर कथित तौर पर उन्हें शारीरिक और मानसिक रूप से परेशान किया जाता है।
शिक्षा विभाग ने सोमवार को जारी परिपत्र में इस बात पर प्रकाश डाला कि आरटीई अधिनियम, 2009 की धारा 17 के तहत स्कूलों में शारीरिक दंड निषिद्ध है। शिक्षा निदेशालय द्वारा जारी सर्कुलर में लिखा है, “सहायता प्राप्त और गैर सहायता प्राप्त निजी मान्यता प्राप्त स्कूलों को यह सुनिश्चित करने के लिए निर्देशित किया जाता है कि डीओई के तहत आने वाले स्कूल ऐसी किसी भी प्रथा का पालन न करें जिससे बच्चों को शारीरिक दंड या भेदभाव का सामना करना पड़े।
गुरुवार को एनसीपीसीआर ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के शिक्षा विभागों को पत्र लिखकर त्योहारों के दौरान स्कूलों में छात्रों के खिलाफ कथित शारीरिक दंड और भेदभाव पर चिंता जताई। पत्र में लिखा है, “वर्षों से आयोग ने विभिन्न समाचार रिपोर्टों के माध्यम से देखा है कि त्योहारों के कारण बच्चों को स्कूल के शिक्षकों और अन्य कर्मचारियों द्वारा उत्पीड़न और भेदभाव का शिकार होना पड़ता है। यह देखा गया है कि स्कूल रक्षा बंधन जैसे त्योहारों के दौरान बच्चों को राखी, तिलक या मेहंदी पहनने की अनुमति नहीं देते हैं और उन्हें शारीरिक और मानसिक रूप से परेशान किया जाता है। एनसीपीसीआर के निर्देशों में त्योहारों के दौरान स्कूलों में इस तरह की भेदभावपूर्ण कार्रवाइयों को रोकने के लिए अधिकारियों को आवश्यक निर्देश जारी किया गया है।
वहीं, दिल्ली स्थित शिक्षाविद् और बाल अधिकार अधिवक्ता अशोक अग्रवाल ने बताया कि शारीरिक दंड के तहत शिक्षकों या ऐसे कृत्यों में शामिल किसी भी व्यक्ति के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की जा सकती है। कहा कि शारीरिक दंड और भेदभाव की घटनाएं कम हुई हैं, लेकिन अभी भी पूरी तरह समाप्त नहीं हुई हैं। निराश और असंवेदनशील शिक्षक आमतौर पर ऐसे अमानवीय कृत्यों पर उतर आते हैं।
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