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नई दिल्ली। विशेष संवाददाता सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को केंद्र सरकार को यह बताने के लिए कहा है कि ‘क्या अपराध प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की जगह ले चुकी भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस) की धारा 479 देशभर के जेलों में बंद विचाराधीन कैदियों पर पूर्वव्यापी प्रभाव से लागू होगी। बीएनएसएस की धारा 479, अब खत्म हो चुकी सीआरपीसी की धारा 436ए के समान है। नये कानून का यह प्रावधान विचाराधीन कैदी के हिरासत अवधि को सीमित करता है।
जस्टिस हिमा कोहली और संदीप मेहता पीठ ने केंद्र से यह स्पष्टीकरण देशभर की जेलों में क्षमता से अधिक कैदियों को रखने और मूलभूत सुविधाओं की कमी से जुड़ी जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान मांगा है। मामले में नियुक्त न्याय मित्र व वरिष्ठ अधिवक्ता गौरव अग्रवाल ने पीठ को बताया कि ‘विचाराधीन समीक्षा समिति का आदेश है कि यदि एक विचाराधीन कैदी ने संबंधित अपराध में तय सजा की कुल अवधि का आधा समय जेल में बिता चुका है तो उसे रिहा कर दिया जाए। उन्होंने कहा कि पहली बार अपराध करने वाले कैदी (जिन्हें पहले कभी किसी अपराध के लिए दोषी नहीं ठहराया गया है) के लिए छूट है और यह छूट उन मामलों में नहीं मिलता है जिसमें आजीवन कारावास या मौत की सजा का प्रावधान है। पीठ को बताया कि जबकि बीएनएसएस की धारा 479 में यह प्रावधान है कि संबंधित अपराध के लिए निर्धारित अधिकतम अवधि के एक तिहाई तक की अवधि यदि कैदी जेल में बिताया है तो उसे रिहा कर दिया जाएगा। न्याय मित्र अग्रवाल ने पीठ से कहा कि यदि इस प्रावधान को प्रभावी तरीके से लागू किया जाए तो जेलों में भीड़भाड़ अपने आप कम हो जाएगा। इसके बाद जस्टिस कोहली ने केंद्र सरकार की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी अपना रूख बताने को कहा। उन्होंने पीठ से इस बारे में समुचित जवाब देने के लिए कुछ समय देने की मांग की।
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