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आकाशी आंखें बंद कर फोटो पर हाथ फेरकर पर्सनैलिटी के बारे में बता देती है।
आपकी आंखें बंद हैं और आपके सामने किसी शख्स या इवेंट की तस्वीर रखकर उसके बारे में पूछा जाए तो आप नहीं बता सकते। मगर, 12वीं की स्टूडेंट आकाशी व्यास ऐसा कर लेती है। टीकमगढ़ की रहने वाली आकाशी बंद आंखों से ये पहचान लेती है कि तस्वीर किसी पुरुष की है या म
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दरअसल, आकाशी ने मिड ब्रेन एक्टिवेशन कोर्स किया है। एक्सपर्ट के मुताबिक मनुष्य के दिमाग के दो हिस्से होते हैं एक दायां और दूसरा बायां। पूरे जीवनकाल में इंसान दोनों में से किसी एक ही हिस्से का ज्यादा इस्तेमाल करता। ब्रेन एक्टिवेशन के जरिए दिमाग के दोनों हिस्सों को बराबर एक्टिव किया जाता है।
इसके एक्टिव होने के बाद आंखें बंद कर रंग, तस्वीर या फिर शब्दों को पहचाना जा सकता है। न्यूरोलॉजिस्ट का भी कहना है कि दिमाग के दोनों हिस्सों को नियंत्रित कर ऐसा करना संभव है। भास्कर ने आकाशी से उसके इस टैलेंट पर बात की साथ ही लाइव टेस्ट भी किया। आकाशी की बंद आंखों के सामने तीन तस्वीरें रखी, जिनके बारे में उसने क्या कुछ बताया पढ़िए रिपोर्ट
पहली तस्वीर : केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान के साथ छोटी बच्ची
आकाशी का जवाब: तस्वीर में दो लोग हैं। छोटी बच्ची के साथ मेल पॉलिटिशियन हैं, जो बच्ची का हौसला बढ़ा रहे हैं। पॉलिटिशियन बीजेपी से हैं। ये लंबे समय से एक बहुत बड़ा अचीवमेंट मैनेज कर रहे थे, पर अब वो अचीवमेंट स्लिप हो गया है। छोटी बच्ची से किसी पब्लिक इवेंट में मिले थे, बच्ची ने वहां परफॉर्म भी किया था।
दूसरी तस्वीर: ओलंपियन नीरज चोपड़ा, (फाइनल में पहुंचने से पहले)
आकाशी का जवाब: यह एक स्पोर्ट्स पर्सनैलिटी है, कुछ वक्त पहले अचानक से एक बहुत बड़ा अचीवमेंट हासिल किया था। अभी भी जल्द एक बहुत बड़ा अचीवमेंट लेने वाले हैं। सिल्वर मेडल जीत सकते हैं। इनका नाम नीरज चोपड़ा है और ये जेवलिन प्लेयर हैं।
तस्वीर 3: अमेरिकी राष्ट्रपति की दौड़ में शामिल भारतवंशी कमला हैरिस
आकाशी ने तस्वीर पर हाथ घुमाकर बताया कि ये कोई फीमेल पर्सनैलिटी हैं, मीडिया में खासी पॉपुलर हैं, कुछ समय बाद एक बहुत बड़ा अचीवमेंट हासिल करने वाली हैं। हालांकि इनके पास एक अचीवमेंट पहले से है। इनकी कंट्री का नाम ए से स्टार्ट होता है। मतलब वे कंट्री रिप्रजेंटेटिव्स के रोल में हैं।
अब आकाशी ये कैसे करती है पढ़िए पूरी बातचीत
सवाल: बंद आंखों से तस्वीर, शब्दों को पहचानना कैसे सीखा
जवाब: कोविड के समय जब स्कूल और क्लासेस बंद थी, तो मेरी दादी जो एक रिटायर्ड सरकारी कर्मचारी हैं उन्होंने ये कोर्स ढूंढा था। मैंने ऑनलाइन कोर्स किया। हफ्ते में एक दिन रविवार को इसकी क्लास होती थी। कोर्स पूरा हुआ तब पापा ने मुझे इसकी प्रैक्टिस करवाई।
सवाल: कोर्स के दौरान क्या करना होता था, क्या ट्रेनिंग दी गई ?
जवाब: कोर्स के दौरान हमें आंखों पर पट्टी बांधकर कलर पहचानना, लिखना- पढ़ना सिखाते हैं। उनका ये मानना था कि अगर आपने उनके कहे मुताबिक ट्रेनिंग ली है तो आप बहुत हद तक कलर पहचानना, पढ़ना सीख जाएंगे।
कोर्स के दौरान बहुत सारे रिस्ट्रिक्शन थे, जो फॉलो करने थे। जैसे- चाय, कॉफी, तला खाना और कई हफ्तों तक सिर्फ लौकी और कद्दू खाने के लिए कहा गया। हर कोई इस डाइट और शेड्यूल को फॉलो नहीं कर पाता। कोर्स की शुरुआत में ही यह बता दिया गया था कि ये हर किसी के बस की बात नहीं है, यह हमारे ब्रेन की कैपेसिटी पर निर्भर करता है कि कौन कितनी जल्दी सीखता है।
आकाशी की आंखों पर दो पट्टी बांधती है। पहले सफेद पट्टी और उसके ऊपर काली पट्टी।
सवाल: पट्टी बांधने और फिर हटाने के बाद क्या महसूस होता है?
जवाब: शुरुआत में आंखों पर पट्टी बांधना अजीब लगता था, इन सबसे इरिटेशन होती थी। पापा फोटो दिखाते थे और मुझे उसके बारे में बताना होता था। तब मुझे ये जानने की उत्सुकता होती थी कि किसकी फोटो दिखाई और उसके बारे में मैंने क्या बोला? लेकिन ये मुझे पता ही नहीं चलता था।
पट्टी बांधने के बाद मैं बदलाव महसूस करती हूं, लेकिन इसे शब्दों में बता नहीं सकी। जो भी महसूस करती हूं, फोटो सामने आने के बाद उसे एक्सप्रेस करती हूं। मैं अपने आप ही बोलती हूं। पट्टी हटाने के बाद मुझे याद नहीं रहता कि मुझसे किसने क्या पूछा और मैंने क्या बताया। ये मेरी मेमोरी में नहीं रहता।
सवाल: क्या इसे खुली आंखों से किया जा सकता है?
जवाब: मैंने कभी खुली आंखों के साथ ट्राय ही नहीं किया है। बंद आंखें होने के बाद मैं सिर्फ बोलती जाती हूं, उसके बाद मेरा खुद पर कंट्रोल ही नहीं रहता और मुझे पता भी नहीं रहता कि मैं क्या बोल रही हूं।
सवाल: क्या इस काम करने का कोई फिक्स टाइम है?
जवाब: नहीं, इसे मैं कहीं भी, कभी भी कर सकती हूं।
सवाल:क्या लोग घर आकर प्रॉब्लम पूछते हैं
जवाब: नहीं, ऐसा नहीं होता कि कोई घर पर आकर पूछ रहा हो। मेरे पेरेंट्स इस मामले में सख्त है। बहुत ज्यादा भीड़ भाड़ पसंद नहीं करते।
पिता बोले- फोटो देखकर पर्सनैलिटी बताना रेयर है
आकाशी के पिता पारितोष व्यास कहते हैं कि कोरोना के दौरान उनकी बेटी ने ऑनलाइन कोर्स किया था। इसमें आंखों पर पट्टी बांधकर पढ़ना, लिखना, रंगों की पहचान करना सिखाया जाता है। कोर्स करने के दौरान हम फोन पर लोगों के कपड़े दिखाकर आकाशी से उसका कलर पूछते थे।
बाद में आकाशी कलर के साथ लोगों को भी पहचानने लगी। उसके बाद वह बंद आंखों से किसी इमारत, मंदिर-मस्जिद की फोटो देखकर उसका सारा इतिहास और भूगोल बता देती है। अगर किसी इंसान की तस्वीर दिखाई जाए तो उसकी सारी प्रॉबलम्स, फ्यूचर, मेडिकल हिस्ट्री हिस्ट्री, नेचर, शादी, करियर सब बताती है।
एक्सपर्ट बोले- तस्वीर देख कर उसका फ्यूचर बताना मेडिकल साइंस में नहीं
न्यूरोलॉजिस्ट पंकज सिंह कहते हैं कि आजकल ब्रेन एक्टिवेशन कोर्स के जरिए बंद आंखों से रंग, शब्द या तस्वीर में पुरुष है या महिला ये पहचाना सिखाया जाता है। मगर, मेडिकल साइंस में ऐसा कोई प्रूफ नहीं है। विज्ञान ऐसी बातों को स्वीकार नहीं करता।
वहीं इस तरह के ब्रेन एक्टीवेशन कोर्स करवाने वाली अंजू चौहान कहती है कि कोई बच्चा गंभीरता के साथ छह महीने तक इस कोर्स को करता है तो उसके ब्रेन सेंस डेवलप हो जाते हैं। ये कोर्स 4 से 15 साल के बच्चों को करवाया जाता है, क्योंकि इस उम्र में ब्रेन डेवलपिंग स्टेज में होता है। ब्रेन को एक्टिव करने के लिए कई तरह की एक्सरसाइज होती है। यह एक तरह से ब्रेन जिम है।
इसमें लेफ्ट ब्रेन और राइट ब्रेन को एक्टिव करने की कोशिश करते हैं। साइंस से इसका कोई लेना-देना नहीं है क्योंकि यह सिंपल एक्सरसाइज सिस्टम है, जिस तरह योग होता है ठीक उसी तरह। जापान में इसे ओल्ड ऐज होम्स में प्रमोट किया जाता है क्योंकि ओल्ड ऐज में मैमोरी लॉस की समस्या होती है।
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