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बांग्लादेश के प्रधानमंत्री शेख हसीना ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया. वह बांग्लादेश छोड़कर भारत आईं. वो ढाका से गाजियाबाद के हिंडन एयरपोर्ट पर आई जहां उनसे एनएसए अजीत डोभाल ने मुलाकात की. बीते दो महीने से शेख हसीना की सरकार के खिलाफ आरक्षण विरोधी छात्र संगठन आंदोलन कर रहे थे. आपको बता दें कि 39 साल पहले 15 अगस्त के दिन शेख हसीना के साथ कुछ ऐसा हुआ था जिसकी चर्चा एक बार फिर हो रही है.
बांग्लादेश के पूर्व राष्ट्रपति शेख मुजीब उर रहमान को बांग्लादेश का राष्ट्रपिता कहा जाता है. ईस्ट पाकिस्तान और वेस्ट पाकिस्तान के बीच युद्ध हुआ. ईस्ट पाकिस्तान यानी कि बांग्लादेश की जीत हुई. उस समय मुजीब उर रहमान पाकिस्तान की जेल में बंद थे. उन्हें रिहा किया गया और बांग्लादेश लाया गया. वापस लौट के बाद देश की कमान उनके हाथ में सौंपी गई.
शेख मुजीब उर रहमान के खिलाफ उन्हीं के देश में साजिशें रची जा रही थी. सेना के कुछ अफसरों ने 15 अगस्त 1975 को उनकी और उनके पूरे परिवार की हत्या कर दी. छोटे बच्चों को भी नहीं छोड़ा. उनकी दोनों बेटियां बच गईं क्योंकि वह लोग देश में नहीं थे, जिसमें से एक शेख हसीना थीं, जो बांग्लादेश की प्रधानमंत्री बनीं.
शेख मुजीब उर रहमान ने 7 मार्च 1971 को ढाका में कहा था कि यह मुक्ति की लड़ाई है, यह स्वाधीनता आंदोलन है. उन्होंने कहा था कि हमने अपना खून दिया है और जरूरत पड़ी तो और खून देंगे. दरअसल, ईस्ट पाकिस्तान और वेस्ट पाकिस्तान के बीच कई मुद्दों को लेकर मतभेद चला था.
उसके बाद पाकिस्तान के जनरल टिक्का खान ने मुजीब उर रहमान को अरेस्ट कर लिया. पाकिस्तान सेना ने अवामी लीग के नेताओं के साथ छात्रों, हिंदुओं और बांग्ला मुसलमानों और महिलाओं को निशाने पर ले लिया. शरणार्थी भारत आने लगे. दुनिया से भारत ने अपील की कि इस मामले में दखल दें ,लेकिन किसी ने नहीं सुनी.
इसके बाद भारत ने मुजीब उर रहमान के समर्थकों को ट्रेनिंग देनी शुरू कर दी. उसके बाद दिसंबर 1971 में पाकिस्तान ने भारत पर हमला कर दिया. युद्ध हुआ और तेरह दिन बाद पाकिस्तान हार गया ईस्ट पाकिस्तान बांग्लादेश बन गया. 1972 में बांग्लादेश का संविधान बना और 1973 में आम चुनाव भी हुआ. अवामी लीग को एकतरफा जीत मिली.
मुजीब उर रहमान प्रधानमंत्री बने, लेकिन अब उनके सामने मुसीबतें खड़ी होने लगी. देश में कई प्रकार की समस्याएं पनप रही थी. सेना का एक हिस्सा भी बांग्लादेश सरकार से नाराज चल रहा था. 1975 जनवरी में शेख मुजीब उर रहमान ने संविधान संशोधन कर दिया और खुद को 5 साल के लिए राष्ट्रपति घोषित कर दिया.
मुजीब उर रहमान ने कहा कि विदेशी षड्यंत्र रचा जा रहा है, लेकिन आंतरिक षड्यंत्र को वह देख नहीं पाए. भारतीय खुफिया एजेंसी रॉ ने भी उनको अगाह किया था, लेकिन वह माने नहीं. इसके बाद 15 अगस्त 1975 की सुबह उनके घर पर सब सो रहे थे. इस समय ढाका कैंट में सेना के कुछ अफसर शेख मुजीब उर रहमान को हटाकर इस्लामी सरकार का गठन करने की प्लानिंग कर रहे थे.
सेना के कुछ लोग शेख मुजीब के आवास पर पहुंचे. खतरनाक हथियारों और टैंकों के साथ उनके घर पहुंचे. मुजीब उर रहमान ने पुलिस को फोन किया, लेकिन किसी ने उनका फोन नहीं उठाया. अंत में वह नीचे आए और उन्होंने साफ पूछा कि क्या चाहते हो. उन्हीं में से एक अफसर ने उन्हें गोलियों से भून दिया. बाकी सेना के अफसरों ने उनके बाकी परिवार वालों को ढूंढा और 17 लोगों को मौत के घाट उतार दिया.
हत्या वाले दिन ही दोपहर को नई सरकार का गठन हुआ. खान डाकेर मुश्ताक को राष्ट्रपति बनाया गया. इनके सीआईए के साथ संबंध भी बताए गए. यह भी कहा गया कि मुजीब उर रहमान की हत्या के पीछे सीआईए का हाथ था. इसके बाद अमेरिका ने शेख मुजीब के हत्यारे को शरण दी. पाकिस्तान पर भी शक की सुई गई थी और मुश्ताक सरकार को समर्थन देने वाला देश सबसे पहले पाकिस्तान बना. उनकी सरकार ने हत्यारों को माफ कर दिया. फिर 1996 में आवामी लीग ने चुनाव जीता और उसके बाद 1975 वाले अध्यादेश को रद्द कर दिया गया.
इसके बाद शेख मुजीब उर रहमान के हत्यारे को कटघरे में खड़ा किया गया. 1998 में निचली अदालत में मुजीब उर रहमान के हत्यारों को मौत की सजा सुनाई. उनमें से एक अब्दुल मजीद भी था, जो देश छोड़कर भाग गया था और 23 साल तक छुपा रहा. कई जगह छुपे रहने के बाद जब वह ढाका गया तो उसे मार दिया गया. पांच हत्यारे अभी भी खुले घूम रहे हैं और एक देश से दूसरे देश में सफर करते हैं.
Published at : 06 Aug 2024 08:47 AM (IST)
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