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बांसवाड़ा| श्री श्रेयांसनाथ दिगंबर जैन मंदिर खांदू कालोनी में आर्यिका विज्ञानमति माताजी ने सुबह धार्मिक कक्षा में कहा कि हमें मंदिर में अनुशासन पूर्वक हर एक कार्य करना चाहिए भगवान का अभिषेक करते समय ध्यान रखना चाहिए कि किसी को धक्का मुक्की के बिना भक्
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यदि हमारे किए हुए कर्मों से किसी की पूजा अभिषेक में विघ्न पड़ता है, तो इससे हमारे अंतराय कर्म का आस्रव होता है। अतः हमें पूजा अभिषेक के समय अनुशासन रखना चाहिए। प्रश्नोत्तर रत्न मालिका में प्रश्न किया की शल्य क्या है? क्या जीवन भर कांटे की तरह छुपता रहता है? उत्तर देते हुए माताजी ने कहा कि आचार्य महाराज कहते हैं, जो पाप कार्य संसार से छुपाकर किया जाता है, वह जीवन पर्यंत कांटे की तरह चुभता रहता है। क्योंकि ऐसे पाप रूप अनर्थ कार्य करने से जो सबसे छुपकर किया जाता है तो हमें यह लगता है कहीं यह कार्य सबके सामने प्रकट हो गया, तो मेरी बदनामी होगी। उसे जीवन भर यही शल्य रहती है कहीं मेरा यह कार्य दूसरों को पता लग गया तो। वह व्यक्ति इसी चिंता में जिंदगी निकाल देता है,यही सबसे बड़ी शल्य है। आर्यिका विज्ञानमती माताजी ने कहा कि व्यवस्थापक कभी भी कोई कार्य का आनंद नहीं ले पाता है।
वह तो सिर्फ कार्य अच्छे से संपन्न हो इसी व्यवस्था में लगा रहता है। कोई व्यक्ति संलेखना को धारण करता है और सभी पदार्थों को त्याग करते हुए, उपवासों के साथ ॐ बोलते हुए भी मरण को प्राप्त हो जाए। लेकिन यदि ऐसा करते हुए अंतिम समय में अपने किए हुए पापों का आलोचना नहीं करता तो,आगम में उसकी समाधि नहीं मानी गई है। हमें रोज अपने पापों की आलोचना करनी चाहिए। यह जानकारी श्री दशा नरसिंहपुरा दिगंबर जैन समाज खांदू कॉलोनी के सेठ अमृतलाल जैन और प्रवक्ता अर्पित घुघरावत ने दी।
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