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अयोध्या पहुंचे रामसेनही संप्रदाय के संतों ने यहां डेरा डाल दिया है।वे कातिर्क माह की देवोत्थानी एकादशी तक यहां साधना करेंगे।
राम सनेही संप्रदाय के संतों का समूह रामनगरी में चातुर्मास कर रहा है।संतों के इस समूह का नेतृत्व राम सनेही संप्रदाय की प्रमुख शाखा जोधपुर स्थित बड़ा रामद्वारा के आचार्य महंत हरिराम शास्त्री कर रहे हैं। 12 वर्ष तीर्थों में चातुर्मास साधना के क्रम में व
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महंत हरिराम शास्त्री की अगुवाई में संत चर्तुमास करने पहुंचे हैं।
अयोध्या श्रीराम भक्ति की सगुण उपासना की प्रधान नगरी है। 5 सदी बाद रामजन्मभूमि पर भव्य मंदिर निर्माण का संकल्प पूरा होने तथा इसी वर्ष 22 जनवरी को उस मंदिर में रामलला की स्थापना के नगरी की यह पहचान शिखर पर पहुंच गई है। इसके बाद से अयोध्या और रामलला को नमन करने न केवल नित्य एक लाख से अधिक श्रद्धालु आ रहे हैं, बल्कि आस्था के प्रवाह में भगवान राम के साथ निर्गुण-निराकार राम के उपासक भी बंधे हुए चले आ रहे हैं।
रामसेनही संप्रदाय के संतों की दिनचर्या का आरंभ अनुभव वाणी से होती है। अनुभव वाणी निर्गुण राम के उपासकों का आधार है।अनुभव वाणी राम सनेही संप्रदाय के संस्थापक राम चरण स्वामी से निकली वाणी है, जिसे उनके शिष्यों और आचार्यों ने संकलित-संपादित किया है। 18वीं शताब्दी के प्रारंभ में पैदा हुए और युवा वस्था में ही रामानंद संप्रदाय के आचार्य कृपाराम से दीक्षित रामचरण स्वामी को समीक्षक कबीर और दादू जैसे दिग्गज निर्गुण आचार्यों की श्रेणी में माने जाते हैं।
राम सनेही संप्रदाय की धर्मशाला अयोध्या, संप्रदाय के देवता हनुमान जी एवं संप्रदाय के ऋषि के रूप में वशिष्ठ प्रसिद्ध है। संतों की टोली 28 जुलाई से 4 अगस्त तक शिव पुराण की कथा आरंभ करने की तैयारी में है। यह कथा महंत हरि राम शास्त्री ही करेंगे। हरि राम शास्त्री संप्रदाय के प्रतिष्ठित प्रवचन कर्ता हैं और वह निर्गुण राम के साथ सगुण राम की भी पूरे अधिकार से व्याख्या करते हैं। उनका मानना है कि सगुण-निर्गुण परस्पर पूरक हैं।
अयोध्या पहुंचने के बाद साधना में लीन रामसनेही संप्रदाय का एक वृद्ध संत
उन्होंने कहा कि संप्रदाय के संतों के चातुर्मास प्रवास के दौरान भागवत कथा, राधेश्याम रामायण की कथा, अयोध्या महात्म्य की कथा, रामचरित मानस नवाह्न पारायण एवं सुंदर कांड पाठ से भी निर्गुण भक्ति सगुण उपासकों की धारा में डुबकी लगाती दिखेगी। श्रृंगार कुंज के महंत हरिभजन दास कहते हैं, यह नहीं भूलना चाहिए कि रामसनेही संप्रदाय रामानंद संप्रदाय की ही एक शाखा है और इस तथ्य का परिचायक है कि निर्गुण और सगुण एक ही सिक्के के दो पहलू हैं और जिसे जो रुचे, वह उस पथ का आश्रय ले जीते जी मुक्ति का अधिकारी बने।
राम सनेही संप्रदाय के लिए मील का पत्थर है ग्रंथ ‘विश्राम सागर’
महंत हरि राम शास्त्री याद दिलाते हैं कि सगुण उपासना की राजधानी अयोध्या से राम सनेही संप्रदाय का संबंध 18वीं शताब्दी से ही है, जब संप्रदाय से संबंधित रघुनाथ दास अयोध्या आए और उन्होंने जिस स्थल पर धूनी रमाई, वह रघुनाथ दास जी की छावनी के नाम से निर्गुण-सगुण उपासना, सेवा, सत्संग एवं संस्कार का विशिष्ट केंद्र बनकर उभरा। रघुनाथ दास ने ‘विश्राम सागर’ नाम से ऐसा ग्रंथ लिखा, जिसे राम सनेही संप्रदाय के संतों के लिए ग्रंथ प्रदर्शक माना जाता है। इसमें निर्गुण-सगुण भक्ति का प्रामाणिक समन्वय है।
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