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लोगों को विदेश भेजने के नाम पर ठगी करने वाले तीन लोगों को पुलिस ने काबू किया है।
विदेश भेजने के नाम पर युवाओं से ठगी करने वाले तीन आरोपियों को काबू किया है । उन्होंने बहुत सारे युवाओं से करोड़ों रुपये वसूल कर उनके साथ धोखाधड़ी की है। आरोपियों की पहचान जयकरण जोशी, अरशद खान और महिपाल सिंह के रूप में हुई है। जयकरण युवाओं को अपने जाल
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शिकायतकर्ता आशीष शर्मा ने पिछले सप्ताह पुलिस को बताया था कि उसने सात अन्य लोगों के साथ सेक्टर-9 स्थित मेसर्स गोल्डन ओवरसीज में जयकरण जोशी के माध्यम से वीजा के लिए आवेदन किया था। फर्म संचालकों ने उनसे आठ लाख रुपये लिए फिर न तो उन्हें वीजा दिया गया और न ही रुपये लौटाए। परेशान होकर उन्होंने पुलिस को शिकायत दी। पुलिस ने आरोपियों के खिलाफ केस दर्ज किया था। पुलिस ने आरोपी खरड़ निवासी जयकरण जोशी को गिरफ्तार किया। उससे पूछताछ के आधार पर पुलिस ने राजस्थान के सीकर जिला निवासी अरशद खान और चंडीगढ़ निवासी महिपाल सिंह को गिरफ्तार किया।
शहर में बना रखे थे छह ऑफिस
आरोपियों ने शहर के पांच सेक्टरों में छह आफिसर बनाए हुए थे। इनमें सेक्टर-8 सी में मेसर्स स्मार्ट वीजा प्वाइंट, मेसर्स कैनेडियन वेस्ट कंसल्टेंसी, सेक्टर-9 डी में मेसर्स गोल्डन ओवरसीज, सेक्टर-20 में मेसर्स गुरु टूर एंड ट्रेवल्स, सेक्टर-22 सी में मेसर्स गोल्डन ओवरसीज और सेक्टर-44 में मेसर्स वर्ल्ड इंटरनेशनल टूर एंड ट्रेवल नाम से आफिस खोले हुए थे। जो भी युवा विदेश जाने की चाह रखकर एक बार इनके चंगुल में फंस गया, वो किसी और के माध्यम से आवेदन करने के लायक भी नहीं बचते थे।
आरोपी उनके पासपोर्ट अपने पास रख लेते थे और लौटाते नहीं थे। बिना पासपोर्ट के वे कहीं भी आवेदन नहीं कर सकते। उनके रुपये तो फंस ही जाते थे, साथ ही उनका करियर भी ये बर्बाद हो जाता था।
अनुभवहीन लड़कियां लेती थी ब्लड सैंपल
वीजा के लिए आवेदन करने वालों को सेक्टर-33 डी स्थित हेल्थ केयर डायग्नो लैब में भेजा जाता था। अरशद खान और महिपाल इस फर्जी लैब का संचालन कर रहे थे। उन्होंने बताया कि उन्होंने ब्लड सैंपल लेने के लिए दो लड़कियों को नौकरी पर रखा हुआ था। उनके पास न तो संबंधित डिग्री थी और न ही उन्हें इस काम का कोई अनुभव था। पुलिस ने उस फर्जी लैब से ब्लड सैंपल भरे जाने वाली कांच की शीशियां और 1600 प्री-मेडिकल जांच रिपोर्ट व अन्य दस्तावेज भी बरामद हुए हैं। मेडिकल के नाम पर आवेदकों से 6000 से 6500 रुपये वसूले जाते थे।
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