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नई दिल्ली/बेंगलुरु, एजेंसियां। कर्नाटक की कांग्रेस सरकार निजी क्षेत्र में कन्नड़ भाषियों को आरक्षण देने के अपने फैसले पर विरोध के बाद बुधवार देर शाम पीछे हट गई। इससे पहले मुख्यमंत्री सिद्धरमैया ने राज्य में निजी क्षेत्र की नौकरियों में कन्नड़ भाषियों को शत-प्रतिशत आरक्षण देने को लेकर एक्स पर पोस्ट किया था। इस पर उद्योग जगत की आपत्तियों के बाद इस पोस्ट को हटा लिया गया और फिर 50-75 फीसदी आरक्षण वाला पोस्ट किया गया।
सिद्धरमैया के समर्थन में उतरे मंत्री
मुख्यमंत्री ने मंगलवार को ‘एक्स पर जारी पोस्ट में कहा था, मंत्रिमंडल की कल (सोमवार) हुई बैठक में राज्य के सभी निजी उद्योगों में सी और डी श्रेणी की नौकरियों को शत प्रतिशत कन्नड़ भाषियों के लिए आरक्षित करने वाले विधेयक को मंजूरी दी गई है। सिद्धरमैया के करीबी सूत्रों ने बताया, संभवत: उन्होंने अपने संदेश में सुधार किया है। प्रस्तावित विधेयक में कभी शत-प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान नहीं था। इसलिए, उन्होंने पूर्व के संदेश को हटा दिया और नए संदेश में गलती सुधारी। इस बीच प्रस्तावित विधेयक का स्वागत करते हुए उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार ने कहा, कांग्रेस कर्नाटक की सत्ता में कन्नड़ भाषियों के सम्मान को कायम करने के लिए आई है। इसलिए चाहे वह निजी प्रतिष्ठानों के सूचना बोर्ड हो, कन्नड़ झंडा, कन्नड़ भाषा, संस्कृति, दस्तावेज या कन्नड़ भाषियों के लिए आरक्षण का प्रतिशत तय करना हो।
राज्य के अवसंरचना, मध्य एवं भारी उद्योग मंत्री एमबी पाटिल ने भी विधेयक का समर्थन करते हुए कहा कि इसमें कोई शंका नहीं है, कर्नाटक में कन्नड़ भाषियों को नौकरी मिलनी चाहिए। हालांकि, उन्होंने जोर दिया दिया कि उद्योगों के हितों की भी रक्षा की जाएगी।
उद्योग जगत ने जताई कड़ी प्रतिक्रिया
चर्चित उद्यमी एवं इंफोसिस के पूर्व मुख्य वित्त अधिकारी टीवी मोहनदास पाई ने विधेयक को फासीवादी करार दिया है। उन्होंने सोशल मीडिया पर जारी पोस्ट में कहा, इस विधेयक को रद्द कर देना चाहिए। यह पक्षपातपूर्ण, प्रतिगामी और संविधान के विरुद्ध है। अविश्वसनीय है कि कांग्रेस इस तरह का विधेयक लेकर आई है। एक सरकारी अधिकारी निजी क्षेत्र की भर्ती समितियों में बैठेगा? लोगों को भाषा की परीक्षा देनी होगी?
फार्मा कंपनी बायोकॉन की प्रबंध निदेशक किरण मजूमदार शॉ ने कहा, एक प्रौद्योगिकी केंद्र के रूप में हमें कुशल प्रतिभा की आवश्यकता है और हमारा उद्देश्य स्थानीय लोगों को रोजगार प्रदान करना है। हमें इस कदम से प्रौद्योगिकी में अपनी अग्रणी स्थिति को प्रभावित नहीं करना चाहिए। एसोचैम की कर्नाटक इकाई के सह अध्यक्ष आरके. मिश्रा ने ‘एक्स पर जारी पोस्ट में तंज कसते हुए कहा, कर्नाटक सरकार का एक और प्रतिभावान कदम। स्थानीय स्तर पर आरक्षण और हर कंपनी की निगरानी के लिए सरकारी अधिकारियों की नियुक्ति को अनिवार्य बनाना। इससे भारतीय आईटी और जीसीसी भयभीत होंगे। अदूरदर्शी। सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) कंपनियों के शीर्ष निकाय नैसकॉम ने विधेयक वापस लेने का आग्रह किया था।
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हरियाणा के फैसले को हाईकोर्ट ने रद्द किया था
कर्नाटक का यह कदम हरियाणा सरकार द्वारा पेश किए गए विधेयक जैसा ही है, जिसमें राज्य के निवासियों के लिए निजी क्षेत्र की नौकरियों में 75 प्रतिशत आरक्षण अनिवार्य किया गया था। हालांकि, पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने 17 नवंबर 2023 को हरियाणा सरकार के फैसले को रद्द कर दिया था।
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