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हि विश्लेषण
– घाटी में कुछ सीट पर लड़ेगी पार्टी, कुछ पर निर्दलीय एवं अन्य को समर्थन
रामनारायण श्रीवास्तव
नई दिल्ली। जम्मू-कश्मीर में बढ़ रही आतंकी गतिविधियों के बीच भाजपा ने विधानसभा चुनावों के लिए अपनी तैयारी शुरू कर दी है। पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा के राज्य के दौरे के बाद इसमें तेजी आएगी। अनुच्छेद 370 की समाप्ति के बाद पहली बार होने वाले विधानसभा चुनाव को काफी अहम माना जा रहा है। हाल के लोकसभा चुनाव में यहां के मतदाताओं ने काफी उत्साह दिखाया था।
भाजपा के लिए जम्मू-कश्मीर के विधानसभा चुनाव न केवल उसकी राजनीतिक प्रतिष्ठा के लिए अहम हैं, बल्कि वे यहां की स्थिरता के लिए भी महत्वपूर्ण हैं। हाल के लोकसभा चुनावों में जिस तरह से मतदाताओं ने उत्साह दिखाया उससे विधानसभा चुनावों को लेकर काफी उम्मीदें हैं। हालांकि हाल के दिनों में बढ़ी आतंकी गतिविधियों को लेकर चिंता जरूर है। चूंकि सुप्रीम कोर्ट ने सितंबर तक चुनाव कराने को कहा है, इसलिए सरकार ने तैयारी पूरी कर ली है। अब चुनाव आयोग को फैसला लेना है।
जम्मू-कश्मीर में नया परिसीमन भी लागू हो गया है और लद्दाख के अलग होने के बाद यहां पर 90 सीटों के लिए चुनाव होगा। परिसीमन के बाद जम्मू क्षेत्र में छह और कश्मीर में एक सीट बढ़ी है। अब जम्मू क्षेत्र में 43 और कश्मीर में 47 सीटें हैं। सूत्रों के अनुसार, भाजपा का जोर जम्मू क्षेत्र पर ज्यादा है और उसकी कोशिश इस क्षेत्र की अधिकांश सीटें जीतकर बहुमत के करीब पहुंचने की होगी। पार्टी घाटी में कुछ ही सीटों पर उम्मीदवार उतारेगी, जबकि कई सीटों पर निर्दलीय एवं अन्य दलों का समर्थन कर सकती है।
चुनाव बाद की स्थिति के लिए विकल्प खुले रखे
सूत्रों का कहना है कि भाजपा ने चुनाव बाद की स्थिति के लिए विकल्प खुले रखे हैं। राष्ट्र की मुख्यधारा से जुड़ने वाले दलों का वह सहयोग ले और दे सकती है। नेशनल कांफ्रेंस को लेकर भी वह समयानुसार फैसला ले सकती है। पिछली बार पीडीपी के साथ सरकार बनाने के बाद पार्टी ने यह साफ कर दिया था कि राजनीति में समयानुसार फैसले लेने के लिए वह तैयार रहेगी। पिछली बार जब चुनाव हुए थे तब जम्मू-कश्मीर का विभाजन नहीं हुआ था और राज्य की 87 सीटों में पीडीपी को 28, भाजपा को 25, नेशनल कांफ्रेंस को 15 एवं कांग्रेस को 12 सीट मिली थी। अन्य के हिस्से में सात सीट रही थीं। बाद में भाजपा ने पीडीपी के साथ मिलकर सरकार भी बनाई थी। हालांकि अब स्थितियां अलग हैं और अनुच्छेद 370 की समाप्ति के बाद राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय दृष्टि से यह चुनाव काफी अहम है।
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