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भोपाल से 30 किलोमीटर दूर बैरसिया में एक युवक ने 10 हजार रुपए महीने की प्राइवेट नौकरी छोड़कर आधुनिक तरीके से जैविक खेती शुरू की। अब 4 से 5 लोगों को रोजगार देने के साथ ही हर महीने एक लाख रुपए कमा रहा है। जिले के 800 किसानों को स्मार्ट खेती की ट्रेनिंग भ
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दैनिक भास्कर की ‘स्मार्ट किसान’ सीरीज में इस बार बात बैरसिया के गोलखेड़ी गांव में रहने वाले किसान श्याम कुशवाह की। श्याम 12 एकड़ में खेती कर रहे हैं। करीब ढाई एकड़ में अमरूद के पेड़, एक एकड़ में पालक और बाकी साढ़े 8 एकड़ में गेहूं समेत दूसरी फसल लगाई है। इससे उन्हें एक साल में करीब 12 लाख रुपए का प्रॉफिट हो जाता है।
श्याम ने कहा, ‘साल 2015 से पहले पिता पारंपरिक खेती करते थे। 12 एकड़ में गेहूं, चना और सोयाबीन की अच्छी क्वालिटी का बीज बोते थे। सालभर हाड़तोड़ मेहनत करते थे। फिर जब फसल काटकर हिसाब लगाते थे, तो सालभर की आय एक से डेढ़ लाख रुपए ही होती थी। इस तरह पिता जी खेती को घाटे का सौदा मान चुके थे।
उस समय मैं बीसीए करके 10 हजार रुपए महीने की जॉब कर रहा था। सैलरी भी ज्यादा नहीं मिलती थी, इसलिए सोचने लगा कि ऐसा क्या किया जाए कि कमाई अच्छी हो जाए। फैमिली को भी सपोर्ट कर पाऊं। फिर कुछ दोस्तों ने आधुनिक तरीके से खेती की सलाह दी।
इसके बाद मैंने चार्टड अकाउंटेट की कम्प्यूटर ऑपरेटर जॉब छोड़कर जैविक तरीके से खेती करने का फैसला किया। ये बात माता- पिता और बड़े भाइयों को बताई, तो उन्होंने मना कर दिया। फिर रिक्वेस्ट करने पर पुश्तैनी जमीन पर खेती करने की अनुमति दे दी।
पहली बार में ही अमरूद की खेती से मुनाफा
श्याम ने बताया, ‘जुलाई 2016 में पहली बार उद्यानिकी विभाग के अफसरों से मिला। उनको जमीन के बारे में बताया। कृषि विभाग के विशेषज्ञों ने अमरूद का बगीचा लगाने की सलाह दी। साथ ही, बगीचे के लिए अमरूद के पौधे नि:शुल्क दिए। इन पौधों को ढाई एकड़ में रोप दिया।
सालभर पौधों की देखभाल करने के साथ ही खाद, पानी दिया। पहली साल पौधों में फल कम लगे। बावजूद इसके 45 हजार रुपए का मुनाफा अमरूद के बगीचे से हुआ। मुनाफा कम हुआ, लेकिन उम्मीद थी पौधे बड़े होंगे तो फल ज्यादा लगेंगे और मुनाफा बढ़ेगा। अगले साल अमरूद की फसल बेचकर ढाई लाख रुपए कमाए, जो पारंपरिक खेती की इनकम से 1 लाख रुपए ज्यादा थी।’
अमरूद की खेती से मुनाफा होने लगा, तो मैंने पपीता, चीकू और आम के 10-10 पौधे लगाए। साथ ही, खाद की लागत कम करने के लिए गोबर से जैविक खाद बनाना शुरू किया। साल दर साल खेती में इनकम बढ़ने लगी। फिर सरकार से सब्सिडी लेकर 33 लाख रुपए की लागत से पॉली हाउस बनवाया। इसमें करीब 19 लाख रुपए खर्च हुए। बाकी 14 लाख रुपए सरकार ने सब्सिडी के रूप में दिया।’
पॉली हाउस में नहीं होता पॉलीराइजेशन
‘साल 2018 में पॉली हाउस में कृषि वैज्ञानिकों की सलाह पर पहली बार 45 हजार रुपए की लागत से शिमला मिर्च लगाई, लेकिन फसल खराब हो गई। खाद-बीज का पैसा डूब गया। 45 हजार रुपए का घाटा हुआ। मां, पिता और भाइयों ने डांटा, लेकिन खेती करना बंद नहीं किया। फिर बैरसिया रोड पर केंद्रीय कृषि अभियांत्रिकी संस्थान में विशेषज्ञों से मिला। तब पता चला कि पॉली हाउस में लगाई शिमला मिर्च को वायरस लग गया था। इसके चलते शिमला मिर्च का आकार छोटा रहा।’
‘मैंने पॉली हाउस में शिमला मिर्च की खेती करने के बाद टमाटर की भी खेती की। इसमें भी घाटा हुआ। एक एकड़ के पॉली हाउस को बनाने में बड़ी रकम खर्च करने के बाद लगातार हो रहे घाटे का कारण उद्यानिकी विभाग के अफसरों से पूछा। तो पता चला – पॉली हाउस में भंवरा, मधुमक्खी के नहीं पहुंचने के कारण परागकणों का पॉलीराइजेशन नहीं हो पाता है। इस कारण पॉलीहाउस में पॉलीराइजेशन वाली फसलों की खेती नहीं की जाती है।’
न फूल, न फल… चुनी पत्ती वाली फसल
‘विशेषज्ञों की सलाह पर पॉली हाउस में फूल और फल वाली फसल की खेती बंद कर दी। साथ ही, पत्ती वाली फसल पान और पालक की खेती शुरू की। जुलाई से सितंबर के बीच पॉली हाउस में लगाई पालक से पहली बार साल 2018 में 5 लाख रुपए का मुनाफा हुआ। तब से लगातार पॉली हाउस में पालक की खेती कर रहा हूं। अब मैं 12 एकड़ जमीन को तीन अलग-अलग सेक्टर में बांटकर मिक्स खेती कर रहा हूं। इससे सालाना 12 लाख रुपए का मुनाफा हो रहा है।’
26 बोर कराए, 4 में निकला पानी
खेती के लिए भरपूर पानी की व्यवस्था करने के लिए खेत में 4 ट्यूबवेल बनवाए हैं। इन चार ट्यूबवेल के लिए खेत में 26 स्थानों पर बोरिंग कराई थी, लेकिन 22 बार ट्यूबवेल के खनन में पानी नहीं निकला था। श्याम सिंह कहते हैं कि वर्तमान में खेत में पानी की मौजूदगी की स्थिति यह है कि एक भी ट्यूबवेल को दो घंटे से ज्यादा समय तक चलाने पर पानी का फ्लो टूट जाता है।
मार्च से शुरू करते हैं पालक की खेती की तैयारी
पालक की खेती के लिए पॉली हाउस के खेत को हर साल फरवरी के आखिरी हफ्ते में खाली कर देते हैं। मार्च से खेत को तैयार करना शुरू कर देते हैं। खेत में सबसे पहले प्लाऊ चलाते हैं। इसके बाद करीब एक हफ्ते तक खेत को खाली छोड़ देते हैं। इसके बाद जैविक खाद खेत में डालते हैं, जो गोबर और वर्मी कंपोस्ट तकनीक से बनी होती है।
खेत में खाद डालने के एक से दो दिन बाद रोटावेयर से क्यारी बनाते हैं। इसके बाद अगले एक महीने तक खेत को खाली छोड़ देते हैं। जून के दूसरे और तीसरे हफ्ते में खेत में पालक का बीज डालते हैं। जुलाई के पहले हफ्ते में पालक की पहली फसल काटते हैं।
क्यारी बनाकर करते हैं पालक के खेत की सिंचाई
पालक के खेत और अमरुद के बगीचे की सिंचाई के लिए अलग से सिंचाई व्यवस्था नहीं बनाई है। पालक के खेत में पानी सामान्य फ्लो से सीमित मात्रा में पहुंचे, इसके लिए मेढ़ को थोड़ा ऊंचा करके पतली नाली बनाई है। जब पालक की एक क्यारी की सिंचाई हो जाती है, तो अगली क्यारी में पानी भरते हैं। इस दौरान पानी का बहाव ज्यादा तेज नहीं करते, ताकि पालक जड़ से उखड़कर पानी में न बहे।
वहीं, अमरुद के बगीचे की सिंचाई के लिए खेत में पाइप लाइन बिछाई है, ताकि प्रत्येक पेड़ के नीचे बिना किसी परेशानी के पानी पहुंच सके।
पालक को वायरस से बचाने 10 पत्ती काढ़े का छिड़काव
पॉली हाउस में खड़ी पालक की फसल को कीट और विभिन्न प्रकार की बीमारियों से बचाने 10 पत्ती काढ़े का छिड़काव करते हैं। यह काढ़ा खेत में ही खुद बनाता हूं। इस काढ़े में आक, नीम, बेशरम सहित ऐसे पौधों की पत्तियां लेते हैं, जिन्हें बकरी नहीं खाती हैं।
यह काढ़ा एक ड्रम में 10 दिन में तैयार होता है। इसके छिड़काव से फसल में रोग नहीं लगता। मैं खेतों में केमिकल खाद का इस्तेमाल नहीं करता हूं। सभी खेतों में जैविक खाद का ही इस्तेमाल करता हूं।
इसकी खेती के लिए सबसे अच्छा महीने दिसंबर होता है। सही वातावरण में पालक की बुवाई साल भर की जा सकती है। पालक की फसल से अच्छा उत्पादन प्राप्त करने के लिए बुवाई जनवरी-फरवरी, जून-जुलाई और सितंबर-अक्टूबर में की जा सकती है, जिससे पालक की अच्छी पैदावार प्राप्त होती है।
पालक की खेती को खरपतवारों से 60% की हानि होती है, इसलिए पालक से अच्छी आमदनी कमाने के लिए इन्हें खरपतवारों से बचाना चाहिए। पालक की बुआई करने के तुरंत बाद पेंडीमेथिलिन का छिड़काव करना चाहिए, लेकिन इस बात का ध्यान रहे कि जब खेत में नमी बनी रहे तब इसका छिड़काव करें।
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