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Iran President Election : ईरान के राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी की मौत के बाद राष्ट्रपति की सीट खाली हो गई है. ऐसे में राष्ट्रपति की कमान किसे मिलेगी, कब चुनाव होगा, इन सबको लेकर सवाल उठ रहे हैं. ईरान का संविधान कहता है कि अगर पद पर रहते हुए किसी ईरानी राष्ट्रपति की मौत होती है तो सबसे पहले शासन चलाने के लिए उपराष्ट्रपति को कार्यवाहक राष्ट्रपति के रूप में पद संभालना पड़ता है. हालांकि इसके लिए सर्वोच्च नेता अयातुल्ला अली खामनेई से मंजूरी लेनी पड़ेगी, क्योंकि उनकी मंजूरी के बिना यह संभव नहीं होगा. सुप्रीम लीडर को ईरान में सर्वेसर्वा माना जाता है. ईरान में चुनावी प्रक्रिया पर निगरानी रखने वाली संस्था गार्डियन काउंसिल की कमान भी सुप्रीम लीडर के पास होती है. सुप्रीम लीडर के हस्ताक्षर के बाद ही चुनाव में जीत हासिल करने वाले नेता को राष्ट्रपति नियुक्त किया जाता है.
ईरान में कैसे होता है चुनाव
फ्रांस की तरह ईरान में भी हर 4 साल में चुनाव होता है. पिछला चुनाव 2021 में हुआ था, इसलिए अगला चुनाव 2025 में प्रस्तावित था, लेकिन इब्राहिम रईसी की मौत के बाद जल्द ही चुनाव करवाया जाएगा, क्योंकि उपराष्ट्रपति के पास केवल 50 दिन तक ही सत्ता संभालने का अधिकार रहेगा. इसी 50 दिन के भीतर ईरान के लिए नए राष्ट्रपति का चुनाव कराना होगा.
किसकी होती है जिम्मेदारी
भारत में चुनाव कराने की जिम्मेदारी चुनाव आयोग की होती है, लेकिन ईरान में गार्डियन काउंसिल चुनाव कराती है. यह सुप्रीम लीडर की देखरेख में 6 इस्लामी जजों और 6 वरिष्ठ मौलवियों का एक पैनल होता है. यह पैनल तकनीकी और वैचारिक आधार पर चुनाव लड़ने के इच्छुक उम्मीदवारों की जांच करता है. इसमें शिक्षा का स्तर, इस्लाम के प्रति प्रतिबद्धता, संविधान और इस्लामी गणतंत्र के मूल्य शामिल हैं.
रिपोर्ट बताती हैं कि गार्डियन काउंसिल ने कभी महिलाओं को राष्ट्रपति चुनाव लड़ने की इजाजत नहीं दी. पिछले चुनाव में राष्ट्रपति पद के लिए 592 उम्मीदवारों ने नामांकन किया था, लेकिन गार्डियन काउंसिल ने केवल 7 उम्मीदवारों को ही चुनाव लड़ने की अनुमति दी और बाकी के नामों को खारिज कर दिया. इनमें इब्राहिम रईसी, मोहसिन रेज़ाई, सईद जलीली, सुधारवादी नेता मोहसिन मेहरालिज़ादेह, अब्दुल नासिर हिम्मती, अली रज़ा जकानी और आमिर हुसैन काजीजादे हाशमी शामिल हैं, इनमें से कुछ ने बाद में नाम भी वापस ले लिए थे.
ईरानी संसद में 290 सदस्यों का होता है चुनाव
हर 4 साल में ईरानी संसद के 290 सदस्य चुने जाते हैं. संसद कानून का मसौदा तैयार कर देश के बजट को मंजूरी देती है. हालांकि, संसद पर गार्जियन काउंसिल का नियंत्रण है, जो प्रभावशाली बॉडी है. ये शरिया या इस्लामी कानून की नजर से सभी कानूनों की जांच करता है और कानून रद्द कर सकता है. काउंसिल के आधे सदस्य सुप्रीम लीडर ही नियुक्त करता है. सुप्रीम लीडर ही न्यायपालिका के प्रमुख की नियुक्ति करता है.
18 वर्ष की आयु होते ही कर सकेंगे मतदान
ईरान में 18 वर्ष से अधिक आयु के सभी ईरानी मतदान कर सकते हैं. नियम यह भी है कि अगर पहले चरण में किसी भी उम्मीदवार को 50 प्रतिशत से ज्यादा मत नहीं मिलता है तो एक रन-ऑफ चुनाव कराया जाता है. यानी पहले चरण की वोटिंग में यदि किसी उम्मीदवार को 50 प्रतिशत से अधिक वोट नहीं मिले तो दूसरे चरण में सबसे ज्यादा वोट पाने वाले 2 उम्मीदवारों के लिए वोट डाले जाते हैं. इसके बाद मतपत्रों की मैन्युअल गणना की जाती है. उसके बाद विजेता का नाम घोषित कर दिया जाता है.
सुप्रीम लीडर के बिना पत्ता भी नहीं हिलता
ईरान में जो कुछ भी होता है, वह सुप्रीम लीडर की मर्जी से ही होता है. ईरान में भले ही राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति होते हैं, लेकिन पावर कंट्रोल सुप्रीम लीडर के पास ही है. राष्ट्रपति चुनाव में कैंडिडेट के नामों पर भी सुप्रीम लीडर की ही मुहर लगती है. ईरान में वही शख्स राष्ट्रपति पद के लिए कैंडिडेट बनता है, जिसे काउंसिल ऑफ गार्डियन्स अप्रूव करता है. ईरान में चाहे घरेलू नीति हो या विदेश नीति या फिर जनरल पॉलिसी, हर चीज के लिए सुप्रीम लीडर ही जिम्मेदार है. ईरान की सभी सेनाओं की कमांड सुप्रीम लीडर के पास ही होती है. सुप्रीम लीडर ही वह शख्स है, जो किसी युद्ध का ऐलान कर सकता है या फिर शांति की घोषणा कर सकता है. अगर ईरान में इस समय सबसे ताकतवर व्यक्ति की बात की जाए तो वह सुप्रीम लीडर अयातुल्ला अली खामेनेई हैं, वह 1989 से अब तक देश के सर्वोच्च नेता हैं. सुप्रीम लीडर इस्लामिक रिवॉल्यूशन गार्ड कॉर्प्स को नियंत्रित करता है. न्यायपालिका के प्रमुख को भी वही चुनते हैं. सुप्रीम लीडर के बाद राष्ट्रपति, ईरान के शीर्ष अधिकारी और दूसरे सबसे ताकतवर शख्स हैं.
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