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इंदौर की एक मल्टीनेशनल कंपनी में काम करने वाले अनिमेश दुबे (25) की नींद में साइलेंट अटैक आने के बाद मौत हो गई। वे 15 मिनट में दो बार अस्पताल गए। एक बार अकेले, दूसरी बार परिजन और दोस्त उन्हें अस्पताल ले गए। मामला शनिवार दोपहर का है। अनिमेश उज्जैन
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अनिमेश के पिता शैलेश दुबे संस्कृत महाविद्यालय के ऑफिस में पदस्थ हैं। उनके परिवार में माता-पिता और एक बड़े भाई हैं। अनिमेश पूरी तरह स्वस्थ थे। पहले से किसी तरह की कोई बीमारी भी नहीं थी।
वे क्रिकेट खेला करते थे। हेल्थ कॉन्शियस इतने थे कि ऑफिस ले जाने के लिए मां अगर लंच में पराठे बनातीं तो मना कर देते थे। कहते थे कि सब्जी – रोटी बांध दो। पिता का कहना है कि वे सिगरेट, तम्बाकू, पान – गुटखा तक नहीं खाते थे। सात्विक जीवन जीते थे।
ऑफिस के लिए सुबह 7.30 बजे उठते। नानाखेड़ा से कार हायर कर रखी थी। यहां से अपने कलीग्स के साथ इंदौर से अप-डाउन किया करते थे। शनिवार को छुट्टी होने पर अनिमेश घर पर थे।
अनिमेश ने इंदौर से एमबीए किया था, इसके बाद वहीं एक मल्टीनेशनल कंपनी में 3 साल से जॉब कर रहे थे।
मेरा मन नहीं माना, उससे दूसरी बार कहा- डॉक्टर को दिखा आना…
अनिमेश छोटा बेटा था। इंदौर से एमबीए की पढ़ाई की। वहां 3 साल से नौकरी कर रहा था। रोज सुबह इंदौर के लिए 8.30 बजे निकलकर रात को 9.30 बजे तक घर आता था। उसे कोई बीमारी नहीं थी। निधन से एक दिन पहले ही कंपनी के किसी साथी की फेयरवेल पार्टी अटैंड की थी।
शनिवार के दिन छुट्टी रहती है, इसलिए हमने उसे जल्दी नहीं जगाया। वह 10 बजे उठा, दो गिलास पानी पीया, चाय पी, फ्रेश होने गया, फिर नीचे आकर चाय पी, इसे बाद नहाने चला गया। उसकी मां खाना बना रही थीं। उन्होंने उससे कहा कि बेटा आज तुम पूजा कर लो, फिर अपन एक साथ खाना खाएंगे। दोपहर 1 बजे का समय होगा। मैं ऑफिस के लिए निकल रहा था। उसने मां को कहा कि मेरे पेट में गैस हो रही है। मैंने उससे कहा कि फैमिली डॉक्टर को जरूर दिखा आना। मेरा मन नहीं माना, मैंने उसे दूसरी बार फिर बोला कि डॉक्टर के पास चले जाना। बोला- पापा, मैं चला जाऊंगा, आप जाओ…।
वह अकेले गाड़ी चलाकर हमारे फैमिली डॉक्टर के पास गया। डॉक्टर ने सारी जांच की, पल्स, बीपी… सब नॉर्मल था। वह एसीलॉक इंजेक्शन लगवाकर घर आ गया। घर आकर उसने सबसे बातें की और फिर जाकर सो गया, तभी अचानक उसे अटैक आ गया। घरवाले उसे 15 मिनट में दो बार अस्पताल लेकर गए, लेकिन बचा नहीं पाए। मुझे जब घटना की सूचना मिली, तब अस्पताल पहुंचा। मेरे साथियों ने उसे सीपीआर दिया, पर वह हमें छोड़कर जा चुका था।
बेटा बड़ा सेवाभावी था। अपने दादा की उसने खूब सेवा की थी। उन्हें नहलाने से लेकर वॉशरूम तक ले जाता था। पंडिताई का भी शौक था। कभी – कभी तो विवाह कराने भी चला जाया करता था।
(जैसा अनिमेश के पिता शैलेश दुबे ने बताया)
अनिमेश के परिवार में उनके माता – पिता और बड़े भाई हैं।
एसिडिटी और अटैक के दर्द के बीच अंतर समझना जरूरी
हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ. विजय गर्ग ने बताया कि आजकल दिल के दौरे के 30 प्रतिशत मामले 35 साल से कम उम्र के लोगों के आ रहे हैं। इनमें 5 प्रतिशत लोगों की अचानक मौत हो रही है। इसका सबसे बड़ा कारण बिगड़ती दिनचर्या है। तला खाना, फास्ट फूड का चलन है और साथ ही तंबाकू, सिगरेट आदि नशीले पदार्थ हैं।
अटैक आता अचानक है, लेकिन इसकी शुरुआत बहुत पहले से होने लगती है। एक दिन अचानक ब्लॉकेज होने से धड़कन बंद हो जाती है। मरीज एसिडिटी और हार्ट अटैक के दर्द में अंतर नहीं कर पाते। पूरी छाती में दर्द हो, मुंह में खट्टापन लगे, दांया-बांया किसी भी हाथ तक दर्द पहुंच जाए या छाती में दिल के दौरे वाला दर्द होता है। ऐसे लक्षण दिखने पर सबसे पहले आधी डिस्प्रिन की गोली पानी में घोल कर पी लें और तुरंत डॉक्टर के पास जाकर थक्का घोलने वाला इंजेक्शन लगवाएं। ऐसे लक्षण दिखने पर ध्यान रखें कि अगर एक ईसीजी में कुछ नहीं आया तो स्पष्ट परिणाम के लिए 6 घंटे में एक और ईसीजी जांच जरूर करवाएं।
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नौजवानों को साइलेंट अटैक क्यों?
नेशनल हेल्थ मिशन की रिपोर्ट के मुताबिक मध्यप्रदेश में 2023 में 36 हजार से ज्यादा हार्ट अटैक के मामले सामने आए हैं। इनमें 13 हजार पेशेंट्स की उम्र 40 साल से कम है। एक्सपर्ट का कहना है कि पारंपरिक जोखिमों के साथ कुछ नए जोखिम भी सामने आए हैं। दैनिक भास्कर ने राजधानी के 5 हार्ट स्पेशलिस्ट से जाना कि 18 से 30 साल के युवाओं में हार्ट अटैक के मामले क्यों बढ़ रहे हैं? इसकी वजह क्या है और इससे कैसे बचा जा सकता है? पढ़िए, आपके दिल की सेहत दुरुस्त रखने के हर सवाल का जवाब…
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