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Ebrahim Raisi: ईरानी राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी का हेलीकॉप्टर दुर्घटना का शिकार हुआ. उनके साथ हेलीकॉप्टर में विदेश मंत्री समेत कई अन्य शीर्ष अधिकारी सवार थे. घने कोहरे और खराब मौसम के कारण बचाव दलों को उन तक पहुंचने में काफी परेशानी आ रही है. यह घटना ईरान की राजधानी तेहरान से लगभग 600 किलोमीटर उत्तर-पश्चिम में जोल्फा शहर के पास हुई है.
राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी हमेशा काली पगड़ी पहनते हैं जो इस बात का संकेत है कि वो इस्लाम के पैगंबर मोहम्मद के वंशज हैं. एक धार्मिक स्कॉलर से, वकील और फिर ईरान की सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचने वाले रईसी देश के नंबर दो के धार्मिक नेता भी हैं. वहीं, शिया धर्म गुरुओं में अयातोल्लाह के बाद जाने जाते हैं.
कौन हैं इब्राहिम रईसी
इब्राहिम रईसी का जन्म साल 14 दिसंबर 1960 में उत्तर पूर्वी ईरान के मशहद शहर में हुआ था. इसी शहर में शिया मुसलमानों के लिए सबसे पवित्र मानी जाने वाली मस्जिद भी है. वे कम उम्र में ही ऊंचे ओहदे पर पहुंच गए थे. जबकि, रईसी के पिता एक मौलवी थे. वहीं, रईसी जब 5 साल के थे तभी पिता की मौत हो गई थी. इसके बाद उन्होंने 15 साल की उम्र से ही क़ोम शहर में स्थित एक शिया संस्थान में पढ़ाई शुरू कर दी थी.
इब्राहीम रईसी के बारे में कहा जाता है कि वो कट्टरपंथी विचारधारा को मानने वाले हैं. रईसी ईरान के सबसे समृद्ध सामाजिक संस्था और मशहाद शहर में मौजूद आठवें शिया इमाम अली रजा की पवित्र दरगाह आस्तान-ए-क़ुद्स के संरक्षक भी रह चुके हैं.
अयातुल्ला अली खामेनेई के करीबी हैं इब्राहिम रईसी
ईरान के राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी साल 1989 से 1994 के बीच तेहरान के महा-अभियोजक रहे और इसके बाद 2004 से एक दशक तक ज्यूडिशियल अथॉरिटी के डिप्टी चीफ रहे. इसके बाद वे ईरानी सुप्रीम कोर्ट के चीफ रहे. रईसी को ईरान के कट्टरपंथी नेता और देश के सर्वोच्च धार्मिक नेता आयातुल्लाह अली ख़ामेनेई का करीबी माना जाता है. वे जून 2021 में इस्लामिक रिपब्लिक ईरान के राष्ट्रपति चुने गए थे.
क्यों उन्हें खासा कट्टर कहा जाता है?
गौरतलब है कि इब्राहिम रईसी साल 1988 में उन खुफिया ट्रिब्यूनल्स में शामिल हो गए जिन्हें ‘डेथ कमेटी’ के नाम से जाना जाता है. इस कमेटी ने उन कैदियों पर ‘दोबारा मुक़दमा’ चलाया जो अपनी राजनीतिक गतिविधियों के चलते पहले से ही जेल की सजा काट रहे थे. बताया जाता है कि ये कैदी पीपल्स मुजाहिदीन ऑर्गनाइजेशन ऑफ ईरान के सपोर्टर थे. ये लोग ईरान में वामपंथ की वकालत करते थे. इन्हीं लोगों को मौत की सजा दे दी गई.
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