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लोकसभा चुनाव
– फोटो : अमर उजाला
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बसपा ने पिछले 20 दिन में तीनों सीटों पर तीसरा प्रत्याशी लेकर आई है। जबकि पिछले सप्ताह बसपा के राष्ट्रीय समन्वयक इन्हीं प्रत्याशियों के पक्ष में वाराणसी, आजमगढ़ में चुनावी रैली भी कर चुके हैं। दरअसल, आजमगढ़ सीट पर जातिगत संतुलन को वजह मानी जा रही है।
यहां बसपा दलित-मुस्लिम गठजोड़ के सहारे चुनाव जीतना चाहती है। वहीं भदोही और वाराणसी में प्रत्याशियों का लोगों से जुड़ाव बहुत अच्छा न मिलना बदलाव का कार माना जा रही है। वाराणसी सीट पर पहले पार्टी ने अतहर जमाल लारी को प्रत्याशी बनाया।
वह पूर्व में विधानसभा, लोकसभा के चुनाव भी लड़ चुके हैं। ऐसे में उन्हें अनुभवी प्रत्याशी माना जा रहा था। मगर कुछ दिन में बसपा ने उनका टिकट काटकर पूर्व पार्षद नियाज अली मंजू को प्रत्याशी बना दिया। इस पर पार्टी के सभी नेता चुप्पी साधे हुए थे, कह रहे थे कि यह बदलाव एक राष्ट्रीय पार्टी के बड़े नेता के निवेदन पर हुआ है।
मगर बसपा ने गुरुवार की शाम फिर एक बार अतहर जमाल लारी पर ही भरोसा जताया। वहीं आजमगढ़ सीट पर बसपा ने 12 अप्रैल को भीम राजभर को प्रत्याशी बनाया। भीम राजभर ने प्रचार प्रसार शुरु कर दिया। करीब 16 दिनों बाद 28 अप्रैल को बसपा ने यहां सबीहा अंसारी के प्रत्याशी होने की घोषणा कर दी और भीम राजभर को सलेमपुर लोकसभा सीट पर प्रत्याशी बना दिया गया।
ठीक तीन दिन बाद ही दो मई को बसपा ने सबीहा अंसारी की जगह उनके पति मशहूद अहमद को प्रत्याशी बना दिया है। दरअसल आजमगढ़ में इस बदलाव की वजह को जातिगत संतुलन माना जा रहा है। इस सीट पर दलित वोट करीब सवा दो लाख और मुस्लिम करीब डेढ़ लाख है।
बसपा इसी गठजोड़ के सहारे सीट पर जीत हासिल करना चाहती है, जबकि राजभर बिरादरी के करीब बीस हजार के ही आसपास है। बसपा नेताओ ने शीर्ष नेतृत्व को संदेश दिया कि भीम राजभर के रहने मुकाबला त्रिकोणीय नहीं बन सकेगा, ऐसे में सबीहा अंसारी को प्रत्याशी बनाया गया। मगर फिर पार्टी नेताओं ने उनके पति को टिकट देने की मांग की और इसी आधार पर उन्हें टिकट दिया गया। हालांकि सबीहा अंसारी का कहना है कि उनका स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता है, ऐसे में उन्होंने खुद ही पति को प्रत्याशी बनाने की अपील पार्टी से की थी।
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