[ad_1]
इस होटल को कोलोसस ऑफ प्रोरा के नाम से जाना जाता है.नाजी वास्तुविद ने 1930 में इस होटल का डिजाइन तैयार किया था.1939 में दूसरा विश्व युद्ध शुरू हो गया और होटल का काम रुक गया.
तब दूसरे विश्व युद्ध की शुरुआत तो नहीं हुई थी, लेकिन दुनिया में नाजियों का खौफ बढ़ने लगा था. इसी दौरान एडोल्फ हिटलर (Adolf Hitler) ने सैनिकों के लिए एक हॉलीडे कैंप बनवाने की योजना बनाई. जर्मनी (Germany) के बाल्टिक सागर के रुगेन (Rügen) द्वीप पर हिटलर के आदेश पर बने इस होटल को कोलोसस ऑफ प्रोरा (Colossus of Prora) के नाम से जाना जाता है. हिटलर के कहने पर नाजी वास्तुविद Clemens Klotz ने साल 1930 में इस होटल का डिजाइन तैयार किया था. इस होटल में 20,000 कमरे बनने थे. लगभग नौ हजार मजदूरों ने लगातार काम करते हुए इमारत तैयार की, तभी दूसरा विश्वयुद्ध (Second World War) छिड़ गया.
हिटलर का पसंदीदा प्रोजेक्ट
लगभग पांच किमी के दायरे में फैले इस आइलैंड को तैयार करवाने का जिम्मा नाजी संस्था Kraft durch Freude ने लिया, जिसका मतलब है खुशी के जरिये मजबूती पाना. इस होटल को तैयार करवाने के पीछे हिटलर का मकसद था कि जर्मन लोग खासकर सैनिक काम के बाद मौज-मस्ती करते हुए वक्त बिता सकें. होटल को प्रोरा नाम दिया गया, जिसका अर्थ है बंजर जमीन. ये नाम इसलिए मिला क्योंकि होटल को समुद्र के बीच रेतीली जगह पर बनाया गया था. होटल बनाने का काम बड़े पैमाने पर शुरू हुआ.
करोड़ों की लागत
होटल के निर्माण में लगभग नौ हजार मजदूरों को लगाया जिन्होंने दिन-रात काम किया. इसे बनाने के लिए साल 1936 से 1939 तक लगातार काम चलता रहा. इस प्रोजेक्ट में उस समय 237.5 मिलियन जर्मन करेंसी लगी. आज के समय में यह लागत हुई लगभग 899 मिलियन यूएस डॉलर. इसके आठ हाउसिंग ब्लॉक, थिएटर और सिनेमा हॉल बनकर तैयार हो गए. स्विमिंग पूल और फेस्टिवल हॉल का काम शुरू ही होने वाला था कि तभी दूसरा विश्व युद्ध शुरू हो गया और 1939 में काम रुक गया. सभी मजदूरों को सेना में भेज दिया गया.
ये भी पढ़ें- गगनयान मिशन के लिए चुने गये चारों पायलटों के नाम क्या हैं और वे कौन हैं, कैसे चुने गए
सबसे बड़ा होटल बनाने की थी योजना
हिटलर प्रोरा को दुनिया का सबसे बड़ा होटल बनाना चाहता था. वह चाहता था कि ऐसा विशालकाय रिजॉर्ट बनाया जाए जो दुनिया का अब तक का सबसे बड़ा रिजॉर्ट हो. उसकी योजना 20,000 बेडरूम वाला होटल बनाने की थी. हर कमरे का रुख समुद्र की ओर रखने का प्लान था. हर रूम का आकार 5 गुणा 2.5 मीटर होना था, जिसमें दो बेड हों, एक वार्डरोब और एक सिंक हो. काम्पलेक्स के बीच में एक विशालकाय भवन बनाने की भी योजना थी, जिसे जरूरत पड़ने पर युद्ध के समय में सैन्य अस्पताल में बदला जा सके.
सैनिकों ने किया इस्तेमाल
इसके बाद होटल का काम फिर कभी शुरू नहीं हो सका. होटल की अधबनी इमारतों का इस्तेमाल सैनिकों ने बैरक की तरह किया. पहले सोवियत ऑर्मी के सैनिक यहां छिपे. जिनके बाद नेशनल पीपल्स ऑर्मी और उनके बाद युनिफाइड आर्म्ड फोर्स ऑफ जर्मनी के सैनिक यहां रहे. बमबारी के समय सैनिकों के अलावा आम लोग भी यहां छिपने के लिए आया करते थे. इसी दौरान ये चममचाती इमारत बुरी तरह से टूट फूटकर खंडहर में बदलने लगी.
ये भी पढ़ें- दिल्ली के वो बड़े सेठ अंग्रेजों ने जिन्हें कुत्तों से नुचवाया फिर फांसी पर चढ़ाया
सैन्य चौकी भी बनी
युद्ध के बाद प्रोरा का इस्तेमाल पूर्वी जर्मनी की सेना के लिए सैन्य चौकी के तौर पर किया गया. 1990 में जर्मनी के एकीकरण के बाद इसके कुछ हिस्से का इस्तेमाल मिलिट्री टेक्निकल स्कूल के तौर पर किया गया. फिर बाद में बाल्कन के शरणार्थी यहां आकर ठहरे. इसके कुछ ब्लॉक खंडहर हो गए हैं. उनको छोड़कर होटल का बाकी हिस्सा अब भी सुंदर लगता है.
बेचने की कोशिश भी हुई
हिटलर के सपनों के होटल को कई बार बेचने की कोशिश की गई. लेकिन ये कोशिश कभी भी परवान नहीं चढ़ सकी. हर बार डील किसी न किसी वजह से टूट जाती थी. लोगों का मानना था कि लड़ाई के समय यहां बहुत सी जानें गई होंगी इसलिए ये जगह भुतहा भी हो सकती है. साल 2004 के बाद इस होटल के अलग-अलग हिस्सों को बेचने में सफलता मिलने लगी. हर हिस्से के खरीदार ने अपनी खरीदी जगह का इस्तेमाल अपनी तरह से किया है. अब यह 20 हजार लोगों के ठहरने के लिए होटल तो नहीं बचा है, लेकिन एक हिस्से में दुनिया का सबसे बड़ा हॉस्टल बना हुआ है, जिसे ब्लॉक फोर के नाम से जाना जाता है.
.
Tags: Germany, Hotel, World WAR 2
FIRST PUBLISHED : February 29, 2024, 12:59 IST
[ad_2]
Source link