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दिल्ली हाईकोर्ट ने मंगलवार को कहा कि विवादित वक्फ संपत्तियों पर जोर-शोर से अवैध निर्माण हो रहे हैं और कोई भी इस ओर ध्यान नहीं दे रहा है। अदालत ने इस मामले में उचित निगरानी की जरूरत पर बल दिया। हाईकोर्ट ने 123 संपत्तियों के विवाद से संबंधित मुद्दे पर गौर किया और कहा कि उनमें से कुछ दिल्ली में बहुत ही आकर्षक संपत्तियां हैं और शहर के केंद्र में स्थित हैं। दिल्ली वक्फ बोर्ड इन संपत्तियों पर अपना दावा करता है, जबकि केंद्र ने उन्हें बोर्ड की सूची से बाहर कर दिया है।
एक्टिंग चीफ जस्टिस मनमोहन और जस्टिस मनमीत पीएस अरोड़ा की बेंच ने अपने द्वारा निपटाए गए मामलों में से एक का उल्लेख किया। जिसमें निजामुद्दीन में वक्फ संपत्ति के रूप में दर्शायी गई संपत्ति को कई बार बेचा गया था, जिसके बाद बिना किसी अनुमति के उस पर एक होटल का निर्माण किया गया था।
बेंच ने कहा, ‘‘जब हमने अधिकारियों से पूछा कि वे क्या कर रहे हैं और यह कैसे हुआ? हमें बताया गया कि वक्फ बोर्ड और डीडीए के बीच विवाद चल रहा है कि संपत्ति किसकी है। इस विवाद में कोई भी संपत्तियों की देखभाल नहीं कर रहा है और उन पर अतिक्रमण किया गया है या इन दोनों विभागों में से कोई व्यक्ति कई खरीद की सुविधा दे रहा है और अनधिकृत निर्माण चल रहा है। हमें नहीं पता कि वक्फ इसमें शामिल है या नहीं।”
हाईकोर्ट ने कहा कि कोई भी संपत्तियों की देखभाल नहीं कर रहा है और किसी को इसकी निगरानी करनी होगी।
अदालत की मौखिक टिप्पणियां उस याचिका पर सुनवाई करते हुए आईं, जिसमें दिल्ली सरकार के प्रधान सचिव (गृह) अश्विनी कुमार को दिल्ली वक्फ बोर्ड के प्रशासक के पद से हटाने का अनुरोध किया गया था। उन पर वक्फ संपत्तियों के हित के खिलाफ काम करने का आरोप लगाया गया था।
हाईकोर्ट को बताया गया कि दिल्ली वक्फ बोर्ड के प्रशासक की नियुक्ति को चुनौती देने वाली समान अनुरोध वाली एक याचिका एकल न्यायाधीश के समक्ष लंबित थी, जिन्होंने अपना आदेश सुरक्षित रख लिया था, इस पर डिवीजन बेंच ने प्रशासन के वकील से इस मुद्दे पर निर्देश लेने को कहा। बेंच इस मामले की अगली सुनवाई 8 मई को करेगी।
याचिका में कहा गया है कि वक्फ बोर्ड का प्रशासक उस धार्मिक समिति का अध्यक्ष भी है जिसने कई वक्फ संपत्तियों को ”हटाने और ध्वस्त करने” की सिफारिश की है। किसी संगठन में प्रशासक की नियुक्ति संगठन के कल्याण और बेहतरी के लिए की जाती है और ऐसे व्यक्ति को उस संगठन के हितों की रक्षा करनी होती है।
सेक्युलर फ्रंट ऑफ लॉयर्स द्वारा दायर याचिका में आरोप लगाया गया है कि वर्तमान मामले में, दिल्ली वक्फ बोर्ड के प्रशासक पूरी तरह से वक्फ संपत्तियों के खिलाफ काम कर रहे हैं। उनकी रक्षा करने के बजाय, वह वक्फ संपत्तियों को नष्ट करने पर तुले हैं।
याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकील सलमान खुर्शीद और वकील इमरान अहमद और रोहित शर्मा ने कहा कि पिछले एक साल में, धार्मिक समिति ने दरगाह मामू भांजा, सुनेहरी बाग मस्जिद, मस्जिद मदरसा कंगाल शाह और अखूंदजी मस्जिद सहित कई वक्फ संपत्तियों को हटाने या ध्वस्त करने की सिफारिश की है।
याचिका में कहा गया है कि धार्मिक समिति की ‘गलत सिफारिश’ पर दरगाह मामू भांजा के एक बड़े हिस्से को ध्वस्त कर दिया गया है और 600 साल से अधिक पुरानी अखूंदजी मस्जिद को पूरी तरह से ध्वस्त कर दिया गया है। इसमें कहा गया कि दिल्ली वक्फ बोर्ड को 26 अगस्त, 2023 को भंग कर दिया गया था, क्योंकि इसका पांच साल का वैधानिक कार्यकाल समाप्त हो गया था। अश्विनी कुमार को 10 जनवरी, 2024 को बोर्ड के प्रशासक के रूप में नियुक्त किया गया था।
धार्मिक समिति के अध्यक्ष/प्रमुख के रूप में वह वक्फ संपत्तियों को हटाने या ध्वस्त करने के आदेश जारी कर रहे हैं जो उनके अधिकार क्षेत्र से बाहर हैं।
याचिका में दावा किया गया कि वक्फ संपत्तियां धार्मिक समिति के पूर्वावलोकन से बाहर हैं क्योंकि इसका डोमेन सार्वजनिक भूमि पर केवल अनधिकृत और अवैध धार्मिक संरचनाओं को हटाने की सिफारिश करना है। याचिका में दिल्ली सरकार, राजस्व मंत्री आतिशी, अश्विनी कुमार, दिल्ली वक्फ बोर्ड और दिल्ली वक्फ परिषद को प्रतिवादी बनाया गया है।
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