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जयपुर9 मिनट पहलेलेखक: किरण राजपुरोहित, स्टेट एडिटर (राजस्थान)
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राजस्थान और रेगिस्तान। प्यास और पानी। ये रिश्ता यहां किसी से छिपा नहीं। लोकसभा चुनाव में पिछले एक महीने से सबसे ज्यादा गर्म रेगिस्तानी इलाका बाड़मेर-जैसलमेर ही रहा।
रेगिस्तानी इलाकों में तेज गर्मी में शाम होते-होते तपती- जलती रेत ठंडी हो जाती है, लेकिन यहां देर रात तक सियासी तूफान जारी था।
बाड़मेर-जैसलमेर में भले तापमापी में पारा करीब 39 डिग्री दर्ज किया गया, लेकिन रिकॉर्ड 74.25 प्रतिशत मतदान दर्ज किया गया है।
दोनों चरणों की वोटिंग कई राजनीतिक समीकरणों की तरफ इशारा कर रही है। एक बात साफ है कि भाजपा ने आखिरी दौर में कई कमजोरियों को दूर कर लिया।
हालांकि पिछले दो चुनाव में जिस तरह एकतरफा हवा बह रही थी, वैसा इस बार नहीं दिखा। 5 से 7 सीटों पर मुकाबला कड़ा दिख रहा है।
जातियों ने चुनाव पर असर डाला, वहीं परिणाम तय करेंगी
कहा जा रहा था कि इस बार राजस्थान में जातियां निर्णायक भूमिका में हैं। सबसे हॉट बाड़मेर-जैसलमेर सीट की बात की जाए तो यहां जाट वर्सेज अन्य जातियों के बीच चुनाव शिफ्ट हो गया है।
त्रिकोणीय मुकाबले में फंसी इस सीट पर पिछली बार से 0.95% ज्यादा वोटिंग का फायदा किसे मिलेगा देखना होगा, लेकिन यहां पर भाजपा को ज्यादा फायदा होने के आसार नहीं दिख रहे।
यहां भाटी 67 साल बाद इतिहास रच सकते हैं। इससे पहले 1957 में यहां से निर्दलीय रघुनाथ सिंह जीते थे।
उधर, राजस्थान में राजपूत, जाट, दलित समाज भाजपा के खिलाफ होने की बात कही जा रही थी, लेकिन ऐसा भी पूरी तरह नहीं हुआ है। जोधपुर, पाली, जालोर, बीकानेर, भरतपुर, चित्तौड़गढ़, भीलवाड़ा, राजसमंद और उदयपुर सहित कई सीटों पर भाजपा के पक्ष में इन्होंने मतदान किया। पहले चरण में झुंझुनूं, चूरू, सीकर, नागौर, दौसा की सीटों पर असर दिखा।
अब पढ़िए, किस सीट पर भाजपा-कांग्रेस के लिए क्या समीकरण बन रहे हैं…
बाड़मेर : बीजेपी के कोर वोटर्स में भाटी की सेंध
बाड़मेर-जैसलमेर सीट की बात की जाए तो इस सीट का इतिहास रोचक रहा है। यहां पर 2014 में वरिष्ठ नेता जसवंत सिंह को दरकिनार करके कांग्रेस से आए कर्नल सोनाराम को प्रत्याशी बनाया गया था।
दरकिनार करने पर जसवंत सिंह ने निर्दलीय ताल ठोंक दीं। स्वाभिमान का नारा दिया। ऐसे में चुनाव कांग्रेस और भाजपा के बीच होने के बजाय निर्दलीय और भाजपा में शिफ्ट हो गया। कांग्रेस प्रत्याशी हरिश चौधरी तीसरे नंबर पर रहे।
उस वक्त भी भाजपा और कांग्रेस के दोनों प्रत्याशी जाट थे और निर्दलीय जसवंत राजपूत। जसवंत सिंह इस चुनाव में 87,461 वोटों से हार गए, लेकिन उनके समर्थकों के मन में हमेशा के लिए न मिटने वाली टीस बैठ गई।
अब उनके बेटे मानवेंद्र भाजपा में आ गए, लेकिन समर्थकों के मन में टीस वैसी ही रही और इसे रविन्द्र सिंह भाटी ने हवा दी। इस बार भी ये ही कहा जा रहा है कि चुनाव दो पार्टियों में नहीं बल्कि निर्दलीय और एक पार्टी के बीच रहेगा।
भाजपा के प्रत्याशी रहे कर्नल सोनाराम अब कांग्रेस में है। यहां पर भाजपा प्रत्याशी केंद्रीय मंत्री कैलाश चौधरी की चुनौती बढ़ी हुई है।
निर्दलीय रविंद्र सिंह भाटी ने समाज के साथ मूल ओबीसी के वोटों में सेंधमारी की है, जो बीजेपी को कोर वोटर्स था। शिव विधानसभा में पूर्व विधायक अमीन खान के खुले में रविंद्र सिंह भाटी को समर्थन देने से भाटी को फायदा होने की उम्मीद है।
इससे रविंद्र सिंह भाटी टक्कर में तो है। हालांकि जैसलमेर शहर में और मुस्लिम वोटों में रविन्द्र सिंह ज्यादा सेंधमारी नहीं कर पाए। बीजेपी ने कमबैक करते हुए अपने कोर वोटर के वोट लेने के प्रयास किए और किसी हद तक सफल भी रहे हैं।
दौसा : मंत्री किरोड़ी के लिए साख का सवाल
पिछले दो चुनावों में दौसा, करौली-धोलपुर में जीत का मार्जिन एक लाख से भी कम रहा था। टोंक-सवाई माधोपुर सीट में भी भाजपा का मार्जिन ज्यादा नहीं था।
इस बार भी यहां मतदाता ने चुनाव को लेकर कोई उत्सुकता नहीं दिखाई। मीणा और दलित बाहुल्य करौली-धौलपुर सीट पर दोनों समाजों ने खास रुचि नहीं दिखाई।
दौसा सीट राजस्थान सरकार में कैबिनेट मंत्री किरोड़ी मीणा के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न बना हुआ है। यहां पर कांग्रेस ने दौसा से विधायक मुरारीलाल मीणा को टिकट दिया है।
सचिन पायलट खेमे के नेता होने के कारण गुर्जर वोट बैंक का उन्हें सहारा मिला है। बीजेपी ने बस्सी से पूर्व विधायक कन्हैया लाल मीणा को मैदान में उतारा है।
किरोड़ी मीणा ने अंतिम समय तक अपना दम यहां पर झोंका लेकिन गुर्जर, मीणा, दलित और मुस्लिम वोटर्स के समीकरणों की वजह से ये सीट फंसी हुई है। भितरघात की भी आशंका है।
कोटा : वोटिंग से बिड़ला की चुनौती बढ़ी
कोटा में लोकसभा स्पीकर ओम बिड़ला मैदान में हैं। उनके सामने भाजपा से कांग्रेस में आए प्रहलाद गुंजल हैं। कोटा दक्षिण में कम वोटिंग रही है। दक्षिण बीजेपी का या यूं कहे बिरला का गढ़ रहा है, यहां ब्राह्मण वोट साइलेंट होने से कुछ चुनौती है। हालांकि ओवरऑल वोटिंग प्रतिशत ठीक रहने को भाजपा अच्छा मान रही है।
वहीं कांग्रेस नेताओं का मानना है कि अंडर करंट से वोट कांग्रेस को मिला है। कोटा बूंदी हिंदुत्ववादी सीट या सनातनी सीट रही है। कांग्रेस यहां अपवाद के रूप में ही जीती है, लेकिन इस बार स्थिति कुछ अलग है। एंटी इनकंबेसी और पर्सनल नाराजगी, जातिवाद का कितना असर होगा देखना होगा। हालांकि एक प्वाइंट ये भी है कि बिड़ला पिछले दो बार से दो लाख से अधिक मतों से जीतते आए हैं। ऐसे में ये मार्जिन उन्हें काफी सपोर्ट करने वाला है।
भीलवाड़ा : सीपी जोशी पूर्व विधानसभा अध्यक्ष भीलवाड़ा से कांग्रेस प्रत्याशी हैं। भाजपा ने यहां पिछला चुनाव सबसे ज्यादा 6 लाख 12 हजार वोटों से जीता था। इसके बावजूद इस बार प्रत्याशी बदल कर संघ पृष्ठभूमि को दिया है। यहां मतदान में भी पिछले साल की तुलना में कोई ज्यादा अंतर नहीं दिखा। यहां लड़ाई मार्जिन पर ज्यादा टिकी है।
बांसवाड़ा : सबसे उलझी हुई सीट
वरिष्ठ नेता महेंद्र सिंह मालवीय कांग्रेस से भाजपा में आए, जिस तरह मारवाड़ में रविन्द्र सिंह भाटी की हवा है उसी तरह बांसवाड़ा बीएपी के प्रत्याशी राजकुमार रोत का प्रभाव देखने को मिलता है। यहां पर भी पिछली बार भाजपा 3 लाख से ज्यादा वोटों से जीती थी।
ऐसे में मालवीय को जीत की उम्मीद है। कांग्रेस ने यहां बीएपी से गठबंधन कर दिया था, लेकिन तब तक वह सिंबल दे चुकी थी और कांग्रेस के प्रत्याशियों ने नाम वापस नहीं देकर पार्टी को संकट में डाल दिया था। रोत को लेकर युवाओं में उत्साह है। यहां भी 72.77 प्रतिशत वोटिंग हुई है, ये पिछले बार से 0.13 प्रतिशत कम है।
चूरू : खड़े सिक्के की बात भाजपा के वरिष्ठ नेता राजेंद्र राठौड़ के लिए चूरू सीट प्रतिष्ठा का प्रश्न है। यहां मतदान प्रतिशत भी कम नहीं है। 62.98 प्रतिशत वोटिंग हुई है। वैसे चुनाव भाजपा से कांग्रेस में आए राहुल कस्वां और भाजपा के देवेंद्र झाझड़ियां के बीच है, लेकिन असल मुकाबला कस्वां और राठौड़ के बीच है। जातीय वोटों का ध्रुवीकरण देखने को मिल रहा है। यहां मुस्लिम बाहुल्य इलाकों में वोटिंग कम होने से भाजपा संतुष्ट है तो कांग्रेस 5 विधानसभाओं में बंपर वोटिंग से। सीकर और झुंझुनूं सीट पर भी टक्कर कांटे की है। कहते हैं यहां रिजल्ट खड़ा सिक्का है। किसी तरफ लुढ़क सकता है।
नागौर : तीसरी बार चुनाव लड़ रहीं ज्योति, हनुमान के सामने भी संकट
नागौर सीट पर कांग्रेस का गठबंधन आरएलपी सुप्रीमो हनुमान बेनीवाल के साथ हुआ है। यहां पर मुकाबला भाजपा प्रत्याशी ज्योति मिर्धा के साथ है। ये पिछले दो बार से कांग्रेस से प्रत्याशी थी। दोनों एक ही जाति के प्रत्याशी हैं। ऐसे में यहां भी कांटे का मुकाबला दिख रहा है। कम वोटिंग प्रतिशत बेनीवाल अपने पक्ष में बता रहे है, तो भाजपा का मानना है कि बेनीवाल के पक्ष में ज्यादा वोटिंग नहीं हुई।
अजमेर : कम वोटिंग से उलझे समीकरण
अजमेर लोकसभा सीट से इस बार भाजपा और कांग्रेस दोनों ने जाट उम्मीदवार उतारा है। 12 अन्य कैंडिडेट चुनाव मैदान में हैं। अजमेर में आठ विधानसभा क्षेत्र में से किशनगढ़ को छोड़ सभी जगह बीजेपी के विधायक हैं। दूदू से उपमुख्यमंत्री प्रेमचंद बैरवा आते हैं। अजमेर उत्तर से विधानसभा अध्यक्ष वासुदेव देवनानी विधायक हैं।
सभी विधायक अपने निर्वाचन क्षेत्र में अधिक से अधिक मतदान के लिए सक्रिय नजर आए। इस बार वोटिंग परसेंटेज कम है। एक ही जाति के कैंडिडेट में मुकाबला होने से मतदाताओं में उत्साह नहीं था। 59.73 प्रतिशत मतदान हुआ। पिछले चुनाव में चार लाख का मार्जिन था। इसे देखें तो भाजपा यहां से आश्वस्त है।
जोधपुर : लोग वोट देने नहीं निकले
जोधपुर में केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत प्रत्याशी हैं। यहां पर मुकाबला टक्कर का माना जा रहा था, लेकिन यहां मतदान कम हुआ। लूणी विधानसभा में सबसे अधिक वोटर हैं और पिछले चुनाव में शेखावत को अच्छी लीड मिली थी।
अब तक के मतदान का प्रतिशत देखें तो सबसे कम प्रतिशत लूणी में रहा, लोग घरों से वोट देने ही नहीं निकले। विश्नोई समाज ने कम वोटिंग की। इधर, पोकरण में अच्छी वोटिंग रही। ओवरऑल वोटिंग में हवा का रुख शेखावत के पक्ष में बताया जा रहा है। हालांकि जीत का मार्जिन हर बार की तुलना में कम हो सकता है।
जालोर : टक्कर में फंसे वैभव गहलोत
पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के बेटे वैभव गहलोत जालोर-सिरोही सीट से चुनाव लड़ रहे हैं। यहां पर पिछला जीत का अंतर 2.61 लाख था। इस इलाके में माली प्रभाव के करीब सवा लाख वोटर है।
कुल आठ विधानसभाओं में से चार में कांग्रेस और चार में भाजपा का प्रभाव देखने को मिला। भाजपा का कट्टर वोटबैंक माने जाना वाला राजपूत, माली समाज कुछ हद तक कांग्रेस के साथ जाता दिखा।
आबू- पिंडवाड़ा में आरएसएस की गहरी पैठ है, ऐसे में भाजपा को फायदा होने की उम्मीद है लेकिन बाप पार्टी से समझौता कर गहलोत ने डेमेज कंट्रोल करने का प्रयास किया।
दोनों जिलों के क्षत्रिय राजपूतों के अंदरखाने गहलोत से टाइअप की बात कही जा रही है। यदि मत का प्रतिशत 65 से 70 फीसदी होता तो भाजपा को सीधा फायदा होता।
कहां कौन मुकाबले में
भाजपा को सभी 25 सीट जीतने की उम्मीद है। कांग्रेस का दावा है कि वह 10 से ज्यादा सीट जीतेगी। जानिए कहां कौन मुकाबले में है-
भाजपा मजबूत : श्रीगंगानगर, बीकानेर, जयपुर ग्रामीण, जयपुर, अलवर, भरतपुर, अजमेर, पाली, जोधपुर, उदयपुर, चित्तौड़गढ़, राजसमंद, भीलवाड़ा, कोटा, झालावाड़- बारां, टोंक- सवाई माधोपुर
टक्कर में सीटें : झुंझुनूं, चूरू, सीकर, करौली-धौलपुर, दौसा, नागौर, बाड़मेर-जैसलमेर, जालोर-सिरोही, बांसवाड़ा-डूंगरपुर
राजस्थान में इस बार कांग्रेस का खाता खुलेगा?:मोदी-राम मंदिर चर्चा में, कांटे के मुकाबले में फंसीं 7 सीट; जानें- 25 सीटों के समीकरण
राजस्थान में लू के थपेड़े पड़ते हैं तो रेतीले धोरे झरने की तरह बहने लगते हैं। अभी न तेज गर्मी शुरू हुई है और न लू बह रही है, लेकिन दस साल में पहली बार ऐसा है कि लोकसभा चुनाव में गर्मी सिर चढ़कर बोल रही है। (पढ़ें पूरी खबर)
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