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झारखंड के चुनावी समर में इस बार सूबे के मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन के साथ ही आधा दर्जन पूर्व मुख्यमंत्रियों की प्रतिष्ठा दांव पर है। केन्द्रीय मंत्री और पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा खूंटी से ताल ठोक रहे हैं, जबकि मधु कोड़ा की पत्नी गीता कोड़ा भाजपा के टिकट पर सिंहभूम से चुनावी मैदान में हैं। जेल में बंद हेमंत सोरेन के लिए यह चुनाव परिणाम ‘जनता जमानत’ की संजीवनी जैसा होगा, जिसका असर आने वाले विधानसभा चुनाव पर भी दिखेगा। पूर्व मुख्यमंत्री और राज्यसभा सदस्य शिबू सोरेन के लिए भी यह चुनाव साख बचाने के लिए महत्वपूर्ण होगा। यहीं नहीं, चुनाव परिणाम प्रदेश भाजपा की कमान संभाल रहे बाबूलाल मरांडी का भी कद तय करेगा।
सोरेन परिवार के लिए अग्नि परीक्षा है यह चुनाव
शिबू सोरेन तीन बार और उनके पुत्र हेमंत सोरेन दो बार झारखंड के मुख्यमंत्री की कुर्सी संभाल चुके हैं। अस्वस्थ होने के कारण शिबू सोरेन सक्रिय राजनीति में भले ही कम दिखते हों, मगर पार्टी के सभी महत्वपूर्ण निर्णय पर अंतिम मुहर उनकी ही लगती है। हेमंत सोरेन के जेल जाने के बाद उनकी भूमिका और जिम्मेदारी और बढ़ी है। सोरेन परिवार के लिए यह चुनाव कई मायनों में महत्वपूर्ण है। पिछले लोकसभा चुनाव में भी पार्टी का प्रदर्शन बहुत बेहतर नहीं रहा था। केवल राजमहल से विजय हांसदा ने झामुमो को जीत दिलाई थी। इस बार अगर प्रदर्शन बेहतर रहा तो विधानसभा चुनाव में कांग्रेस, वामदल और राजद के साथ गठबंधन में बड़े भाई की भूमिका में रह सकते हैं। ऐसा नहीं हुआ तो सीटों को लेकर मामला फंस सकता है।
जेल में रहकर लोकप्रियता दिखाने का अवसर
जेल में बंद हेमंत सोरेन के लिए भी यह चुनाव महत्वपूर्ण है। अगर बेहतर परिणाम रहा तो जनता के सहारे केन्द्र सरकार को घेरने का मौका मिल जाएगा। हेमंत की पत्नी कल्पना सोरेन और भाई बसंत सोरेन के साथ झामुमो के कई नेता कहते दिख रहे हैं कि जनता की अदालत में हेमंत बरी हो जाएंगे। वहीं, अगर परिणाम उल्टा हुआ तो भाजपा और हमलावर होगी। बतौर मुख्यमंत्री पिता-पुत्र की पकड़ पूरे प्रदेश में है। मगर संथाल और कोल्हान में इनका खासा प्रभाव है। पिछले विधानसभा चुनाव में यह स्पष्ट दिखा भी था।
अर्जुन मुंडा का कद तय करेगा परिणाम
छह पूर्व मुख्यमंत्रियों में बतौर प्रत्याशी केवल अर्जुन मुंडा ही इस बार मैदान में हैं। वे भाजपा के टिकट पर खूंटी से चुनाव लड़ रहे हैं। उनके सामने हैं कांग्रेस के कालीचरण मुंडा। पिछले चुनाव में भी यही दोनों नेता आमने-सामने थे। अर्जुन मुंडा ने महज 1445 वोट से जीत दर्ज की थी। इस सीट पर भाजपा की मजबूत पकड़ मानी जाती है। 1989 से 2019 तक हुए लोकसभा के नौ चुनावों में आठ बार भाजपा ने जीत दर्ज की है। वर्ष 2004 में कांग्रेस की सुशीला केरकेट्टा ने भाजपा से यह सीट छीन ली थी, मगर अगले चुनाव में फिर यह सीट भाजपा के खाते में चली गई। कड़िया मुंडा भाजपा के टिकट पर यहां से सात बार संसद पहुंचे हैं।
बाबूलाल की प्रतिष्ठा भी दांव पर
सूबे के पहले सीएम बाबूलाल मरांडी फिलहाल प्रदेश भाजपा की कमान संभाल रहे हैं। चुनाव के कुछ दिन पहले उन्हें प्रदेश का जिम्मा दिया गया। विस चुनाव में अगर जीत हुई तो उन्हें बड़ी जिम्मेदारी सौंपी जा सकती है। पार्टी के संकेत यहीं हैं। पिछले चंद महीनों में उन्होंने तूफानी दौरे से सूबे की नब्ज टटोली है। पार्टी को उनके इस ‘एक्स-रे’ रिपोर्ट का इंतजार है। कहा जा रहा है इसी रिपोर्ट के आधार पर उनका राजनीतिक भविष्य भी तय होगा।
मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन का भी तय होगा ग्राफ
झामुमो के थिंक टैंक माने जाने वाले चंपाई सोरेन इस बार ड्राइविंग सीट पर हैं। सीटों की संख्या से विस में उनकी दावेदारी तय हो सकती है। खासकर कोल्हान और उसके आसपास की तीन से चार सीटों पर उनका सीधा प्रभाव माना जाता है।
ये हैं झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री
बाबूलाल मरांडी एक बार
अर्जुन मुंडा तीन बार
शिबू सोरेन तीन बार
मधु कोड़ा एक बार
हेमंत सोरेन दो बार
रघुवर दास एक बार
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