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णमो अरिहंताणं, णमो सिद्धाणं, णमो आयरियाणं, णमो उवज्झायाणं, णमो लोए सव्व साहूणं । एसोपंचणमोक्कारो, सव्वपावप्पणासणो । मंगला णं च सव्वेसिं, पडमम हवई मंगलं । आज जैन समाज के 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर का जन्मोत्सव है। दैनिक भास्कर ऐप इस विशेष अवसर पर आपके लिए लेकर आया है प्रदेश के बड़े जैन मंदिरों का वर्चुअल दर्शन। ऐसा मंदिर जो घी से बनाया। एक मंदिर जिसमें बैलगाड़ी से प्रतिमा स्थापना की जगह तय की गई। एक मंदिर जो केवल खंभों पर खड़ा है और एक ऐसी प्रतिमा जिसे 50 लोग मिलकर भी नहीं उठा पाए थे। पढ़िए पूरी रिपोर्ट… घी से बना नवलखा मंदिर घी से बना ये मंदिर पाली में है, जो नवलखा मंदिर के नाम से जाना जाता है। यह मंदिर 1100 साल पुराना है। इसके निर्माण में 9 लाख रुपए खर्च हुए थे, इसलिए नाम रखा नवलखा। मान्यता है कि आचार्य यशोभद्र सूरीश्वर ने मंत्र की शक्ति से पाली में घी मंगवाया था। इसके बाद सांडेराव के व्यापारियों ने इस घी का भुगतान करने की बात कही। उन्होंने रुपए लेने से इनकार करते हुए इस घी को शुभ कार्य में लगा देने की बात कही। इस मंदिर में भगवान महावीर की 2 फीट की संगमरमर की प्रतिमा है। इसके साथ ही भगवान पार्श्वनाथ की प्रतिमा भी यहां स्थापित है। इस मंदिर की नींव में पानी नहीं घी बीकानेर का भांडाशाह जैन मंदिर रोचक इतिहास समेटे है। मान्यता के अनुसार, इस मंदिर की नींव को पानी से नहीं बल्कि घी से भरा गया था। यह तीन मंजिला मंदिर लाल और पीले पत्थरों से बना है। मंदिर में मथेरण और उस्ता कला से चित्रकारी भी की गई है। इसका निर्माण भांडाशाह नाम के व्यापारी ने 1468 में शुरू करवाया। 1541 में उनकी बेटी ने इसे पूरा कराया था। चूंकि मंदिर का निर्माण भांडाशाह जैन ने करवाया था, इसलिए इसका नाम ‘भांडाशाह’ पड़ गया। भक्त की लाज रखने के लिए भगवान महावीर ने दिए मूंछों में दर्शन पाली जिले के घाणेराव के निकट स्थित मुछाला महावीर जैन तीर्थ है। इस चमत्कारी मंदिर को लेकर मान्यता है कि भक्त की लाज रखने के लिए भगवान महावीर की मूर्ति पर मूंछ निकल आई थी। तभी से इस स्थान को मुछाला महावीर के नाम से जाना जाता है। मंदिर के 5 तल जमीन में समाए हैं- सांगानेर, संघी मंदिर जयपुर में सांगानेर में स्थित संघी जी का जैन मंदिर कुल 7 मंजिला है। लेकिन, इसके 5 तल जमीन में समाए हैं। मान्यता है कि यहां स्वयं यक्षों का वास है। मंदिर के निचले भाग में यक्ष रहते हैं। मंदिर के नीचे स्थित 5 तलों में ब्रह्मचर्य का पालन करने वाले दिगंबर जैन साधु ही जा सकते हैं। माना जाता है कि इसके अंतिम तल तक आज तक कोई नहीं पहुंच पाया है। गाय के दूध ने बताया यहां छिपी है भगवान महावीर की प्रतिमा करौली जिले के हिंडौन में गंभीर नदी के पश्चिमी तट पर चांदन गांव में भगवान महावीर का मंदिर है। इस वजह से इस क्षेत्र को श्री महावीरजी के नाम से जाना जाता है। मान्यता है कि लगभग 400 साल पहले चांदन गांव में एक गाय का दूध गंभीर नदी के पास एक टीले पर गिर जाता था। गाय जब कई दिनों तक बिना दूध के घर पहुंचती तो इसका कारण जानने के लिए गाय का पीछा किया गया। जब गोपालक ने यह चमत्कार देखा तो उसने टीले की खुदाई की। जिस जगह गाय अपने आप दूध देती थी, ठीक उसके नीचे से भगवान महावीर की प्रतिमा प्रकट हुई। बसवा निवासी अमरचंद बिलाला ने यहां एक मंदिर निर्माण करवाया, जिसे आज श्री महावीरजी के नाम से जाना जाता है। खास बात यह है कि यहां चढ़ाने वाली सामग्री और राशि आज भी उसी गोपालक के वंशजों को दी जाती है, जिन्हें भगवान महावीर की मूर्ति प्राप्त हुई थी। जयपुर का 250 साल पुराना जैन मंदिर जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी का मंदिर जयपुर स्थित गोपाल जी का रास्ता में मौजूद है। यह मंदिर तकरीबन 250 साल पुराना है। जैन समाज में मान्यता है कि आमेर के किसी पुराने मंदिर में मूर्तियां मिली थीं। इन्हें ले जाने के मामले में जैन समाज में मतभेद हो गया था। तब यह निर्णय लिया गया कि दोनों मूर्तियों को अलग-अलग बिना सारथी के दो बैलगाड़ी में विराजमान कर रवाना कर दिया जाए। ये जहां रुकेगी वहां पर मूर्ति को विराजमान कर दिया जाएगा और ऐसा ही किया गया। भगवान नेमीनाथ की पद्मासन मूर्ति वाली बैलगाड़ी बाहरली आमेर के चंद्रपुर भगवान के मंदिर पर जाकर रुकी तो भगवान नेमिनाथ की मूर्ति को इस मंदिर में विराजमान कर दिया गया। दूसरी बैलगाड़ी में भगवान महावीर स्वामी की खडगासन मूर्ति विराजमान थी। दूसरी बैलगाड़ी बिना सारथी के चलते हुए गोपाल जी का रास्ता स्थित श्री दिगंबर जैन मंदिर के बाहर आकर रुक गई थी। यहीं पर वेदी बनाकर भगवान की मूर्ति को विराजमान कर दिया गया था। 1400 स्तंभ पर खड़ा है रणकपुर जैन मंदिर पाली जिले में अरावली की पहाड़ियों के बीच स्थित रणकपुर का जैन मंदिर बड़ा जैन तीर्थ स्थल है। मंदिर के गर्भगृह में तीर्थंकर भगवान आदिनाथ की 4 विशाल मूर्तियां हैं। मंदिर का निर्माण 15वीं सदी में मेवाड़ के शासक राणा कुंभा ने करवाया था। मंदिर की विशालता और भव्यता का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि इसमें 1400 से अधिक स्तंभ हैं, जिन पर पूरा मंदिर टिका है। खास बात ये है कि अंदर आप कहीं भी खड़े हो जाएं, आपको मुख्य गर्भगृह के दर्शन होंगे। ण्मोकार मंत्र के बाद निकली भगवान पार्श्वनाथ की प्रतिमा भीलवाड़ा का चंवलेश्वर मंदिर 1000 साल पुराना है। मान्यता है एक गोपालक दिगंबर जैन सेठ नथमल शाह की गाय को पहाड़ी पर चराने के लिए ले जाता था। गाय चरकर वापस आने के बाद दूध नहीं देती थी। गाय के मालिक ने इसका कारण पूछा तब गाय के रखवाले ने पीछा करते हुए रहस्य का पता लगाया। देखा कि गाय पहाड़ी पर एक विशेष स्थान पर अपना सारा दूध छोड़ रही है। अगली सुबह उसी स्थान पर णमोकार महामंत्र का जाप करने के बाद सावधानी से खुदाई करने का आदेश दिया। खुदाई करने पर वहां भगवान पार्श्वनाथ की 2 फीट ऊंची बलुआ पत्थर की भूरे रंग की पद्मासन प्रतिमा प्राप्त हुई। सेठ नथमल शाह ने वैशाख शुक्ल 10 वि.सं. 1272 को ‘पंचकल्याणक प्रतिष्ठा’ का आयोजन कर भव्य ऊंचे शिखर वाले मंदिर का निर्माण करवाया। मंदिर जिसे बनाने में लगे 14 साल माउंट आबू के दिलवाड़ा जैन मंदिर को बनवाने में लगभग 14 वर्ष लगे थे। इसमें 1500 शिल्पकार और 1200 श्रमिकों ने मेहनत की थी। बताया जाता है मंदिर को बनाने में करीब 18 करोड़ रुपए खर्च हुए थे। मंदिर के स्तंभ में विभिन्न नृत्य मुद्राओं में महिलाओं की सुंदर आकृतियां हैं। दीवारों और छत पर बारीक नक्काशी बेहद सफाई से बनाई हुई हैं। इन बारीक कारीगरी के कारण मूर्तियों पर भाव दिखने में एकदम सजीव लगता है। ये मंदिर पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है। इनपुट: निधि उमठ (माउंट आबू) जहाज वाला मंदिर, 50 लोग भी प्रतिमा को उठा नहीं पाए भीलवाड़ा में श्री 1008 मुनिसुव्रतनाथ भगवान का जहाज की आकृति का मंदिर है। मान्यता के अनुसार 2013 में मंदिर से 4 किलोमीटर दूर महावीर जयंती पर एक मुस्लिम समाज के व्यक्ति के घर से श्री 1008 मुनिसुव्रतनाथ भगवान की प्रतिमा निकली। प्रशासन ने जेसीबी मंगवाकर प्रतिमा को अपने कब्जे में लेने के लिए निकालने का प्रयास किया। इसके बाद जैन समाज के लोगों ने मिलकर प्रतिमा को उठाकर एक ठेले पर रख दिया। प्रतिमा को लेकर मंदिर के तहखाने में स्थायी रूप से विराजमान कर दिया। इसके बाद 50 लोगों ने मिलकर जोर लगाया, लेकिन प्रतिमा को नहीं हिला सके। डेढ़ महीने का इंतजार करने के बाद सरकार ने प्रतिमा को जैन समाज को देने का निर्णय लिया। अब तक प्रतिमा 4 बार रंग अपने आप बदल चुकी है। एक बार जब मंदिर में आरती हो रही थी, तब अचानक ही प्रतिमा की आंख से रोशनी निकलती हुई दिखाई दी। प्रतिमा की नाभि कभी अंदर कभी बाहर होते हुए वहां मौजूद सभी लोगों ने देखा। 11 फीट जमीन के अंदर स्थित है मंदिर नागौर जिले के लाडनूं स्थित दिगंबर जैन बड़ा मंदिर जैन धर्मावलंबियों की आस्था का मुख्य केंद्र है। यह मंदिर करीब 1500 साल पुराना है। मंदिर के मूलनायक भगवान शांतिनाथ हैं। इनके पास में भगवान श्री अजीत नाथ और भगवान श्री चंद्र प्रभ की मूर्तियां विराजमान हैं। बताया जाता है कि कई साल पहले यहां एक खंडहर की खुदाई करते समय मंदिर के अवशेष प्राप्त हुए। सावधानीपूर्वक खुदाई की गई तो भव्य जिनालय मिला। इसकी प्राचीनता नष्ट ना हो, इसके लिए गर्भगृह से निकले मंदिर में किसी प्रकार का कोई परिवर्तन नहीं किया गया। आज भी यह मंदिर करीब 11 फीट जमीन के अंदर है। श्री नाकोड़ा तीर्थ में जहां आरती के लिए लगती है बोली बालोतरा जिले के नाकोड़ा स्थित श्री नाकोड़ा तीर्थ जी का मंदिर जैन धर्म की तीर्थ स्थलों में से एक महत्वपूर्ण स्थल है। वैसे तो यह मंदिर भगवान पार्श्वनाथ का है, लेकिन यहां भैरव देव ही अधिष्ठायक हैं। मंदिर को श्री नाकोड़ा भैरव जी के नाम से ही जाना जाता है। नाकोडा ट्रस्टी हुलास बाफना ने बताया कि मंदिर ट्रस्ट की ओर से प्रतिदिन बोली लगती है। जो श्रद्धालु जितने मण की बोली लेते हैं उसे 5 रुपए के हिसाब से उन मणों की गिनती गिनते हैं। 90 किलो सोने से बना मंदिर पाली जिले में स्थित फालना वैसे तो छोटा सा कस्बा है, लेकिन इसी कस्बे में स्थित है देश का पहला जैन स्वर्ण मंदिर। मंदिर श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ भगवान का है। खास बात ये है कि मंदिर को सोने से बनाने के लिए करीब 90 किलो सोना लगा। जो फालना के ही लोगों ने दान किया। सोने से मंदिर में विराजमान मूर्ति की भी सजावट की गई है। कांच मंदिर में भगवान पार्श्वनाथ की प्रतिमा विराजमान है। इनके साथ ही जैन संत वल्लभ सूरी की प्रतिमा स्थापित है। भूतकाल, भविष्य और वर्तमान बताती 72 प्रतिमाएं आधुनिक युग में निर्मित एक ऐसा जैन मंदिर है, जिसकी बेजोड़ स्थापत्य कला देखते ही बनती है। जालोर जिले के भीनमाल कस्बे में स्थित इस मंदिर में जैन धर्म के भूतकाल, वर्तमान काल और भविष्य काल के 72 तीर्थंकरों की प्रतिमाएं विराजमान हैं। इसलिए इसे 72 जिनालय कहा जाता है। करीब सौ बीघा में फैले इस मंदिर में गणधर मंदिर, गुरु मंदिर, कुलदेवी मंदिर, नाकोड़ा भेरूजी और मणिभद्र सहित अन्य मंदिर हैं। नारेली तीर्थ क्षेत्र 150 मीटर ऊंची पहाड़ी की तलहटी में बना यह तीर्थ क्षेत्र साढे़ पांच सौ बीघा जमीन पर फैला है। ज्ञानसागर महाराज की समाधि नसीराबाद (अजमेर) में है। संत शिरोमणी पूज्य आचार्य 108 विद्यासागरजी की दीक्षा स्थली भी अजमेर ही है। दोनों महान आदर्श संतों की यशोगाथा को चिर स्थायी बनाने के लिए ‘ज्ञानोदय तीर्थ’ बनाया गया। मंदिर में मौजूद है सोने की अयोध्या 130 साल पहले अजमेर के सेठ मूलचंद नेमीचंद सोनी ने सोनी जी की नसियां का निर्माण शुरू कराया। बेटे सेठ भागचंद सोनी ने इसका निर्माण पूरा करवाया। 1895 में सोने की अयोध्या का निर्माण शुरू किया गया। इसे बनने में 25 साल लगे थे। इसका निर्माण जयपुर में किया गया था। 1953 में सोनी जी की नसियां में मान स्तंभ का निर्माण किया गया। ये भी हैं राजस्थान के प्रमुख मंदिर उदयपुर में भगवान ऋषभदेव (केसरियाजी) का 1200 साल पुराना मंदिर है। इस प्रतिमा का पूजन आज भी केसर से ही होता है। जयपुर में रामबाग के पास दिगम्बर जैन नसियों भट्टारकजी विश्व-विख्यात स्थल है। वहीं श्री महावीर दिगम्बर जैन मंदिर मुरलीपुरा जयपुर की स्थापना वर्ष 1990 में 6 जैन परिवारों ने मिलकर की थी। मंदिर में देवाधिदेव मूलनायक 1008 श्री महावीर भगवान की सफेद संगमरमर की प्रतिमा वेदी में प्रतिष्ठित हैं। साथ ही जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ एवं 23वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ जी की श्यामवर्ण पाषाण प्रतिमा वेदी में विराजमान हैं। इसी तरह सिरोही में भगवान महावीर का चौमुखा पावापुरी जल मंदिर बना है। जिस तरह बिहार में मूल पावापुरी तीर्थ है उसी की तर्ज पर व उसी नक्शे पर यहां यह मंदिर बनाया गया है। इनपुट फोटो, वीडियो और कंटेंट: ओम टेलर (पाली), सुनील जैन (अजमेर), अनुराग हर्ष (बीकानेर), मंगलाराम जांगिड़ (भीनमाल), सुजाराम चौधरी (फालना), उर्वशी संध्या वर्मा (जयपुर), मयंक अवस्थी (बालोतरा), भरत मूलचंदानी (अजमेर) दीपक बोहरा (लाडनूं) मनीष जैन (भीलवाड़ा), खेताराम जाट (रणकपुर), महेंद्र सैनी (जयपुर), विशाल चतुर्वेदी (हिंडौन) और मुकेश हिंगड़ (उदयपुर)
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