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लखनऊ हाईकोर्ट का फैसला।
– फोटो : अमर उजाला।
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यूपी में हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने पारिवारिक मामले में एक अहम फैसला दिया। इसमें कोर्ट ने कहा कि पत्नी व बच्चों का हर हाल में भरण-पोषण करना पति का पवित्र कर्तव्य है। वैवाहिक कार्यवाहियों में अक्सर पतियों की तुलना में पत्नियां व बच्चे अधिक आर्थिक संकट झेलते हैं। क्योंकि उन्हें परिवार या आय से सीमित मदद मिलती है। उनकी इस हालत में पतियों की ओर से लगातार परेशानी बढ़ाई जाती है। इससे उन्हें ऐसे कार्यवाहियों का सामना करने में मुश्किलें आती हैं।
न्यायमूर्ति विवेक चौधरी और न्यायमूर्ति ओम प्रकाश शुक्ल की खंडपीठ ने इस टिप्पणी के साथ पत्नी को तलाक के मामले में अदालती कार्यवाहियों का खर्च देने के आदेश के खिलाफ दाखिल सैन्य अफसर पति की अपील खारिज कर दी। इसमें लखनऊ की पारिवारिक अदालत के आदेश को चुनौती दी गई थी।
पारिवारिक अदालत ने पत्नी की अर्जी पर सुनवाई की
पति की ओर से दाखिल तलाक के दावे के दौरान पारिवारिक अदालत ने पत्नी की अर्जी पर सुनवाई की थी। इस दौरान सैन्य अफसर को आदेश दिया था कि अदालती कार्यवाही के लिए 50,000 समेत खर्चे के 10,000 रुपये एकमुश्त अदा करें।
प्रत्येक सुनवाई पर 500 रुपये भी पत्नी को देने का आदेश दिया था। बीते सितंबर में दिए गए इस आदेश के खिलाफ सैन्य अफसर ने हाईकोर्ट में अपील दाखिल की थी। उनके वकील का कहना था कि यह आदेश देते समय पारिवारिक अदालत ने इस तथ्य पर गौर नहीं किया कि पत्नी, पति से अलग रह रही है।
पति सेना में कर्नल हैं और पर्याप्त वेतन पा रहे
हाईकोर्ट ने कहा कि पारिवारिक अदालत ने सिर्फ तलाक के दावे के खर्चों के लिए यह आदेश दिया है। शादी होते ही पत्नी के भरण पोषण का दायित्व पति का होता है। बच्चों के पैदा होने पर उनके भरण पोषण का दायित्व भी कानूनी तौर पर लागू हो जाता है। मामले में पति सेना में कर्नल हैं और पर्याप्त वेतन पा रहे हैं।
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