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प्रदेश कांग्रेस प्रभारी गुलाम अहमद मीर सोमवार को दैनिक भास्कर के न्यूज रूम में थे। उन्होंने दोस्ताना संघर्ष, चुनावी रणनीति, इंडिया गठबंधन के दावों और अन्य महत्वपूर्ण विषयों पर खुलकर चर्चा की। स्पष्ट किया कि सीटें गठबंधन के किसी दल को ज्यादा या कम आएं
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मीर ने कहा कि हरियाणा में हुईं गलतियों को हमने झारखंड में सुधार लिया है। यहां न कोई सूरजेवाला है न ही कोई हुड्डा। न ही सैलजा। इस बार झारखंड में हम पिछली बार से बेहतर परिणाम देने जा रहे हैं।
इंडिया गठबंधन में सीट शेयरिंग के बाद भी कुछ सीटों पर दोस्ताना संघर्ष क्यों हो रहा है -सीट शेयरिंग अच्छी हुई, पर कुछ कन्फ्यूजन रहा। बाद में हमने बैठक कर तय किया था कि कांग्रेस विश्रामपुर में और राजद छतरपुर में अपना प्रत्याशी वापस ले लेगी। परंतु, नामांकन वापस लेने के लिए प्रत्याशी समय पर नहीं पहुंच सके। इसलिए नामांकन वापस नहीं हुआ।
बाद में हमने संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस कर स्थिति स्पष्ट करने की कोशिश की, लेकिन आपाधापी में यह भी नहीं हो सका। अब हमने गठबंधन धर्म का पालन करते हुए विश्रामपुर में राजद प्रत्याशी को समर्थन किया है। कांग्रेस प्रत्याशी के पक्ष में चुनाव प्रचार करने नहीं गए। छतरपुर में राजद का एक स्टार प्रचारक जरूर गया, लेकिन वहां राजद के लोग कांग्रेस प्रत्याशी के लिए काम कर रहे हैं।
उमाशंकर अकेला ने कांग्रेस पर टिकट बेचने का आरोप लगाया, हिमंता ने इसे सही बताया – अकेला जब भाजपा से कांग्रेस में आए, तब उन्हें यह पता नहीं चला। उनका टिकट इसलिए कटा, क्योंकि सर्वेक्षण रिपोर्ट और कार्यकर्ता उनके पक्ष में नहीं थे।
झामुमो पर भ्रष्टाचार के आरोप लग रहे हैं, क्या कांग्रेस इससे अछूती रहेगी -चुनावी मौसम में कोई कुछ भी बोल सकता है। आरोप लगा सकता है। लेकिन, 5 साल में हमारी सरकार ने यहां जो काम किए हैं, उनका असर भाजपा के गढ़ में भी दिख रहा है।
क्या झारखंड पुलिस की छापेमारी केंद्रीय एजेंसियों की कार्रवाई का जवाब है -केंद्रीय एजेंसियां टाइम देखकर टार्गेट करती हैं। लेकिन, झारखंड पुलिस इस तरह की मंशा से कोई कार्रवाई नहीं करती है।
इस बार भाजपा-आजसू एक साथ हैं, इससे कांग्रेस के प्रदर्शन पर क्या असर पड़ेगा -हमें ऐसा नहीं लगता कि कोई असर पड़ेगा। भाजपा में ही कई लोग अपने ही प्रत्याशियों को हराने के लिए काम कर रहे हैं।
कांग्रेस की जीत के दावे का आधार क्या है -पांच साल में जो योजनाएं लाई गईं और काम किए गए, उनका बेहतर असर दिख रहा है। चाहे मंईयां योजना हो, पेंशन स्कीम या किसानों के लिए ऋण माफी व अन्य योजनाएं।
एकजुटता के दावों के बाद भी इंडिया गठबंधन के बड़े नेता संयुक्त प्रचार नहीं कर पाए -ऐसा नहीं है। सब कुछ दिखता नहीं है। महाराष्ट्र के साथ ही झारखंड में भी चुनाव की घोषणा हो जाने से कम समय मिला। हम बेहतर रणनीति नहीं बना पाए। लेकिन, जब-जब राहुल गांधी और खरगे जी का चुनावी कार्यक्रम बना, हेमंत और कल्पना सोरेन का पहले से कार्यक्रम तय था। यह भी ध्यान देना होगा कि कल्पना जी ने हमारे प्रत्याशियों के पक्ष में कहीं अधिक प्रचार किया है।
पीएम मोदी ने कहा है कि कांग्रेस पिछड़ों और आदिवासियों को लड़ा रही हैै -वह खुद पिछड़े वर्ग से आते हैं। लेकिन, पिछड़ों के साथ उन्होंने न्याय नहीं किया। जबकि, अपनी जाति बताने के लिए उन्होंने चाय बेचने तक की बात कही। इसी से वह पॉपुलर भी हुए। लेकिन, आज वे पिछड़ों को भूल कर अडाणी-अंबानी के हो गए।
अगर कांग्रेस की सीटें बढ़ती हैं तो क्या विधायक दल के नेता के नाम पर पुनर्विचार होगा -नहीं। हमने गठबंधन करते समय ही हेमंत सोरेन को नेता मान लिया है। उनके नेतृत्व में चुनाव लड़ रहे हैं। सीएम हेमंत सोरेन ही बनेंगे।
क्या गठबंधन की राजनीति पर आप सुबोधकांत सहाय की बात से सहमत हैं – पहले कांग्रेस की स्थिति जिसकी लाठी-उसकी भैंस वाली थी। जिस पर कांग्रेस हाथ रख देती थी, वह सोना हो जाता था। हमने दो-ढाई साल पहले नेशनल एलायंस बनाया है। रिजल्ट भी दिया है। इसी तरह जब राज्यों में आते हैं, वहां अगर क्षेत्रीय दलों की स्थिति मजबूत है, तो हम अपना धर्म निभाते हैं। बराबरी की बात नहीं करते, क्योंकि हमारा उद्देश्य विपक्ष को हराना है, इसलिए हम गिव एंड टेक पर भी चलते हैं। हम सुबोधकांत जी की बातों से इत्तफाक नहीं रखते।
धारा 370 पर क्या कहेंगे -जम्मू कश्मीर विधानसभा से जो विधेयक पारित हुआ है, उसमें धारा 370 का जिक्र नहीं है। भाजपा प्रवक्ता अमित मालवीय ने भी उस प्रस्ताव की प्रशंसा की है। इसलिए, पहले भाजपा को ही अपना स्टैंड क्लियर करना चाहिए।
हरियाणा में मिली सीख से झारखंड की रणनीति में क्या बदलाव किया -हरियाणा में हार के तीन मुख्य कारण रहे। यहां न कोई हुड्डा है, न सूरजेवाला या सैलजा। हरियाणा में सबके साथ बैठक में निर्णय लिया गया। अंदर की बात लीक हो गई। बूथ मैनेजमेंट ठीक नहीं हुआ। भाजपा ने अपने वोट प्रतिशत को बचाने में पूरा जोर लगाया। तीसरा ईवीएम की बैट्री का लो होना भी एक कारण दिखता है। इससे झारखंड में भी इंकार नहीं किया जा सकता। हमने इन सभी कमियों को झारखंड में दूर कर लिया है।
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