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शुक्रवार की भोर में काशी के घाट, कुंड और सरोवरों का नजारा पूरी तरह से बदल चुका था। कहीं छठी मइया का विदाई गीत हमनी के छोड़ के नगरिया नू हो, कहवां जइबू ए माई, कईसे करी हम विदाई…विछोह का भाव जगा रही थी तो वहीं भगवान सूर्य की प्रतीक्षा में कातर नजरें पूरब की ओर निहार रही थीं। चार बजने के बाद तो घाट की ओर जाने वाली गलियों में श्रद्धालुओं का रेला उमड़ पड़ा।
ढोल नगाड़े, बैंड बाजे के साथ नाचते गाते हुए भक्त गंगा तट पर पहुंचे। परिवार के पुरुष सदस्य प्रसाद की टोकरी सिर पर रखकर तो महिलाएं दंडवत करते हुए पहुंच रही थीं। गन्ने का मंडप बनाकर और अखंड दीप के साथ पूजन आरंभ हो गया।
पांच बजने के बाद भी घाटों पर हल्का कोहरा और अंधेरे की चादर तनी हुई थी। श्रद्धालुओं की नजरें भगवान भास्कर के आगमन की प्रतीक्षा में बार-बार पूरब की तरफ ही उठ रही थीं। महिलाएं पूजा करने के बाद अपने-अपने सूप लेकर पानी में खड़े होकर भगवान सूर्य का इंतजार करने लगीं।
श्रद्धालुओं को काफी देर तक इंतजार करना पड़ा और जैसे ही भगवान भास्कर लालिमा के साथ पूरब में नजर आए तो अस्सी से राजघाट तक हर-हर महादेव का जयघोष गुंजायमान हो उठा।
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