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जिलों में पहुंची मशीनें खुली ही नहीं।
प्रदेश के किडनी पेशेंट को राहत देने के लिए 38.57 करोड़ की लागत से 353 डायलिसिस मशीनें खरीदी थीं। इनमें से एक साल बाद भी 20 जिलों में करीब 30 करोड़ की मशीनें कबाड़ हो रही हैं। वजह यह है कि मशीनों को अस्पतालों में तो रख दिया, लेकिन न तो शुरू किया गया और न
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नतीजतन प्रदेश में जहां रोज दो हजार से अधिक मरीजों को डायलिसिस की जरूरत है, उन्हें या तो परेशान होना पड़ रहा है या फिर निजी अस्पतालों में पैसे देकर इलाज लेने की मजबूरी है। नाकामी का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि विधानसभा में दो बार मामला उठने के बावजूद ना तो अधिकारियों ने इसे शुरू कराने की जद्दोजहद की और ना ही कंपनी ने। ऐसे में सवाल यह कि जब अस्पतालों में यह शुरू ही नहीं की जानी थी तो इसकी खरीद क्यों की गई।
एसएमएस में वेटिंग बढ़ी
जिला अस्पतालों से मरीजों और उनके परिजनों को एसएमएस तक आना पड़ रहा है। पहले जहां मरीजों को एक-दो दिन डायलिसिस के लिए इंतजार करना पड़ता था, लेकिन अब छह-सात दिन की वेटिंग है। उधर, निजी अस्पतालों में एक बार डायलिसिस करने के 4500 रुपए तक लेते हैं। एक मरीज को हर सप्ताह 3 डायलिसिस की जरूरत होती है। ऐसे में एक ही मरीज को सप्ताह के 12500 खर्च करने पड़ते हैं।
2 हजार मरीजों को रोज डायलिसिस की जरूरत
प्रदेश के जिला स्तर पर डायलिसिस की सुविधा हो, इसके लिए सरकार ने 353 मशीनों की खरीद की। धीरे-धीरे जयपुर सहित प्रदेश भर के जिला अस्पतालों तक ये मशीनें पहुंचाई गईं, ताकि उन्हें काम में लिया जाए और मरीजों को राहत दी जा सके। 15 नवम्बर को ऑर्डर दिया गया और सभी जिलों में यह लगनी थी।
जयपुर, भरतपुर, कोटा, अजमेर, बस्सी, सांगानेर, चाकसू सहित अन्य कई जगह इंस्टाल तो हुई, लेकिन काम नहीं आ सकीं। प्रदेश में हर दिन दो हजार से अधिक मरीजों का डायलिसिस होता है। अकेले एसएमएस में रोज 40 से अधिक मरीज डायलिसिस के लिए पहुंचते हैं। इनमें जयपुर के अलावा दौसा, अलवर, अजमेर, कोटा सहित आसपास के जिलों से लोग आते हैं।
एक साल का वारंटी पीरियड तो खत्म हो चुका, अब दो साल बचे डायलिसिस मशीनों का 3 साल का वारंटी पीरियड है, लेकिन एक साल तो ये खुली ही नहीं हैं। हालांकि इसमें भी खेल किया गया है और आरओ का दो साल का और मशीन का तीन साल का वारंटी पीरियड है, यानि कि जैसे ही आरओ खराब होता है तो कंपनी उसे सही करने का पैसा लेगी। मालूम हो कि डायलिसिस मशीनों में आरओ का ही मुख्य रोल होता है।
चिकित्सा मंत्री बोले थे जांच कराएंगे 29 जनवरी को विधानसभा में रालोपा विधायक हनुमान बेनीवाल ने महंगी दर पर मशीन खरीदने का मुद्दा उठाया तो चिकित्सा मंत्री गजेंद्र सिंह खींवसर ने कहा- जांच कराएंगे, जरूरत पड़ी तो एसीबी से ही कराएंगे। 23 जुलाई को विधायक कालीचरण सराफ ने आरोप लगाया कि अधिकारी जो जवाब देते हैं, आप पढ़ देते हैं। मामले पर लीपापोती की जा रही है। फिर खींवसर बोले थे- हम मामले की ऑडिट करेंगे, जांच करेंगे।
“आरएमएससीएल इक्युपमेंट सप्लाई करता है। मशीनों को शुरू करने के लिए स्थानीय स्तर पर चिकित्सा विभाग के अधिकारी जिम्मेदार हैं। हालांकि हमनें सभी को कहा है कि मशीनाें को शुरू किया जाए।” -नेहा गिरी, एमडी, आरएमएससीएल
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