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लोकसभा चुनावों के परिणाम जारी होने के बाद अब राज्य सरकार ने राजनीतिक नियुक्तियों की ओर कदम बढ़ा दिए हैं। बीते दो दिनों में एक IAS, एक IPS और दो सेवानिवृत्त न्यायाधीशों को अलग-अलग आयोग व कमेटी में मेंबर व चेयरमैन बनाया है।
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जुलाई में नियुक्तियों का काम रफ्तार पकड़ेगा। राज्य सरकार विभिन्न आयोगों, बोर्ड, निगमों, मंडलों, कमेटियों में राजनीतिक नियुक्तियां करेगी। राजनीतिक नियुक्तियों के लिए सरकार और पार्टी के स्तर पर तीन फाॅर्मूले पर काम किया जाएगा।
राजनीतिक नियुक्तियों का इस्तेमाल हर सरकार व पार्टी अपने राजनीतिक समीकरणों को पूरा करने के लिए करती है, ताकि जिन लोगों को सीधा प्रतिनिधित्व (चुनावी टिकट) नहीं दिया जा सका हो, उन्हें भी सत्ता में प्रतिनिधित्व मिले।
पढ़िए भाजपा सरकार कैसे करेगी तीन फाॅर्मूलों से नियुक्तियां…
भजनलाल सरकार ने राजनीतिक नियुक्तियों की शुरुआत कर दी है। जुलाई में कई बड़ी नियुक्तियां हो सकती हैं।
भाजपा सरकार राजनीतिक नियुक्तियों में वो गलतियां नहीं करना चाहती जो पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार ने की थी। किसी भी ऐसे व्यक्ति को किसी बोर्ड-निगम या आयोग में पद नहीं देना चाहती जो बाद में सरकार के लिए मुसीबत बने।
आरपीएससी में सदस्य बाबूलाल कटारा और माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के चेयरमैन डीपी जारोली की पेपर लीक में भूमिका संदिग्ध मिली थी। कांग्रेस को भारी किरकिरी का सामना करना पड़ा था। बाबूलाल कटारा को जेल जाना पड़ा, वहीं डीपी जारोली को रीट पेपर लीक में तत्कालीन सरकार ने चेयरमैन के पद से हटाया था।
फॉर्मूला 1 : बडे़ आयोग और यूआईटी में विशुद्ध राजनीतिक लोगों को नियुक्ति
राजस्थान में बीस सूत्री कार्यक्रम (बीसूका), महिला आयोग और 14 यूआईटी (नगर विकास न्यास)-प्राधिकरण, राज्य क्रीड़ा परिषद को सबसे महत्वपूर्ण संवैधानिक संस्थाओं में गिना जाता है।
जोधपुर, अजमेर, कोटा, बीकानेर, उदयपुर, भीलवाड़ा, भिवाड़ी, अलवर, सीकर, श्रीगंगानगर, भरतपुर, पाली आदि यूआईटीज में चेयरमैन को कैबिनेट और स्टेट मिनिस्टर का दर्जा भी दिया जाता है। टॉप आयोगों में चेयरमैन को कैबिनेट मंत्री का दर्जा दिया जाता है।
इनमें भाजपा सरकार विशुद्ध राजनीतिक लोगों को पद देना चाहती है। इसके पीछे का कारण यह है कि जिन्हें विधानसभा या लोकसभा चुनावों में टिकट नहीं मिल सका या वह जो चुनाव हार गए, उन्हें समायोजित किया जा सके।
इनके अलावा उन लोगों को भी इनमें प्राथमिकता मिल सकती है, जो पार्टी संगठन में शीर्ष पदों पर लंबे अर्से से कार्यरत हैं।
सूत्रों के अनुसार, पूर्व मंत्री राजेन्द्र राठौड़, पूर्व प्रदेशाध्यक्ष सतीश पूनिया और अरुण चतुर्वेदी, पूर्व मंत्री प्रभुलाल सैनी, रामलाल शर्मा, निर्मल कुमावत, विठ्ठल शंकर अवस्थी, ज्ञानचंद पारख, ज्योति मिर्धा, कैलाश चौधरी जैसे दिग्गज नेता इसके लिए दौड़ में हैं।
भाजपा के उच्च पदाधिकारियों में शामिल मुकेश दाधीच, श्रवण बागड़ी, रक्षा भंडारी, सुशील कटारा, लक्ष्मीकांत भारद्वाज, अंकित चेची, डॉ. अलका गुर्जर, नाहर सिंह जोधा, मोती लाल मीणा, महेन्द्र कुमावत, भूपेन्द्र सैनी, अशोक सैनी आदि को भी राजनीतिक नियुक्तियां मिल सकती हैं।
फॉर्मूला 2 : भर्ती व शिक्षा संबंधी संस्थाओं में नियुक्तियों से पहले विशेष खोजबीन
सरकारी नौकरियों के लिए भर्ती और शिक्षा व्यवस्था को अंजाम देने वाली संस्थाओं जैसे राजस्थान लोक सेवा आयोग, राज्य कर्मचारी चयन बोर्ड, माध्यमिक शिक्षा बोर्ड व विभिन्न विश्वविद्यालयों में सरकार विशेष खोजबीन के बाद ही चेयरमैन, सदस्यों व कुलपतियों की नियुक्तियां करेगी।
इसके लिए नियमों में बदलाव भी संभव है। दरअसल, पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार के समय इन संस्थाओं में भ्रष्टाचार और पेपरलीक के कई मामले सामने आए। 7 परीक्षाओं में 38 लाख 41 हजार युवा प्रभावित हुए थे।
भाजपा ने विधानसभा और लोकसभा चुनावों में कांग्रेस के खिलाफ इसे जमकर भुनाया था। ऐसे में अब भाजपा सरकार इन संस्थाओं में नियुक्तियों से पहले काफी सावधानी बरतना चाहती है।
इसी तरह पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में राजस्थान में करीब 12 विश्वविद्यालयों में कुलपतियों की नियुक्तियां उन प्रोफेसर्स को मिली जो राजस्थान से बाहर के थे। अब संभव है कि राज्य के विवि में ज्यादातर कुलपति राजस्थान की शैक्षणिक पृष्ठभूमि से ही हों।
तत्कालीन कांग्रेस सरकार में सामने आई गड़बड़ियों से सबक लेते हुए भाजपा सरकार ने तय किया है कि भर्ती व शिक्षा संबंधी संस्थाओं में जांच के बाद ही राजनीतिक नियुक्तियां की जाएंगी।
फॉर्मूला 3 : जहां 3 साल का कार्यकाल, वहां पहले नियुक्ति
राजस्थान में लोक सेवा आयोग, सूचना आयोग, यूआईटी, विकास प्राधिकरण, महिला आयोग, बाल आयोग, मानवाधिकार आयोग, माध्यमिक शिक्षा बोर्ड, कर्मचारी चयन आयोग आदि में सदस्यों-चेयरमैन आदि का कार्यकाल तीन का होता है।
सरकार यदि 2024 में इनमें नियुक्तियां कर देती है तो वो अगले विधानसभा चुनावों (2028) से पहले 2027 में एक बार फिर इन बोर्ड-आयोगों में सदस्यों की नियुक्तियां कर सकेगी। इससे ज्यादा लोगों को राजनीतिक नियुक्तियों में समायोजित किया जा सकेगा।
कांग्रेस सरकार (2018-2023) ने ज्यादातर नियुक्तियां 2020, 2021, 2022 और 2023 में की थी। इससे वो सरकार किसी भी बोर्ड निगम में एक से ज्यादा नियुक्तियां नहीं कर पाई थी। प्रदेश की किसी भी यूआईटी में तो कांग्रेस सरकार ने पूरे पांच वर्ष में एक भी नियुक्ति नहीं की थी।
भाजपा सरकार 2024 में ज्यादा नियुक्तियां देकर लगभग दोगुनी संख्या में अपने से जुड़े लोगों को समायोजित कर सकती है। इसलिए ऐसे बोर्ड-निगम (जिनमें सदस्य का कार्यकाल अधिकतम 3 वर्ष तक है) में जल्द ही नियुक्तियां दी जाएंगी।
लोकसभा चुनावों से ठीक पहले इन्हें दी थी राजनीतिक नियुक्तियां
भाजपा सरकार ने लोकसभा चुनाव से ठीक पहले 8 भाजपा पदाधिकारियों (पूर्व विधायक, पूर्व मंत्री, पूर्व सांसद भी शामिल) को राजनीतिक नियुक्तियां दी थीं।
पूर्व सांसद ओंकार सिंह लखावत, जसवंत विश्नोई और सीआर चौधरी को क्रमश: धरोहर प्रोन्नति प्राधिकरण, जीव जंतु कल्याण बोर्ड और किसान आयोग का चेयरमैन बनाया था।
उनके अलावा पूर्व मंत्री प्रेम सिंह बाजौर को सैनिक कल्याण सलाहकार समिति, राजेन्द्र नायक को राज्य एससी वित्त निगम, ओमप्रकाश भडाना को देवनारायण बोर्ड, रामगोपाल सुथार को विश्वकर्मा कौशल विकास बोर्ड व प्रहलाद टाक को यादे माटी कला बोर्ड का चेयरमैन बनाया गया था।
लोकसभा चुनाव के तुरंत बाद इनकी हुई नियुक्ति
लोकसभा चुनाव के परिणाम जारी होने के तुरंत बाद रिटायर्ड जज गंगाराम मूलचंदानी को राज्य मानवाधिकार आयोग का चेयरमैन और रिटायर्ड आईपीएस अशोक गुप्ता को आयोग में सदस्य बनाया गया है।
रिटायर्ड आईएएस अफसर ललित के पंवार को जिलों के पुनर्गठन की समीक्षा करने वाली कमेटी का चेयरमैन बनाया गया है। राज्य सरकार ने एक जांच कमेटी एकल पट्टा मामले (पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार का मामला) में भी गठित की है, जिसका चेयरमैन रिटायर्ड जज आरएस राठौड़ को बनाया गया है।
भाजपा में विधानसभा चुनावों से पहले करीब 16 रिटायर्ड ब्यूरोक्रेट्स ने पार्टी की सदस्यता ग्रहण की थी। इनमें से एक को भी विधानसभा या लोकसभा में किसी भी सीट से टिकट नहीं मिला। अब इन्हें भी उम्मीद है कि किसी बोर्ड-निगम में उन्हें नियुक्तियां मिल सकती हैं।
विधानसभा चुनावों से ठीक पहले 18 रिटायर्ड ब्यूरोक्रेट्स भाजपा में शामिल हुए थे। इनमें से किसी को भी भाजपा ने विधानसभा या लोकसभा के चुनावों में टिकट नहीं दिए।
गहलोत सरकार ने दी थी 25 रिटायर्ड ब्यूरोक्रेट्स को नियुक्तियां
पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार में तत्कालीन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने विभिन्न बोर्ड निगम में लगभग 25 रिटायर्ड ब्यूरोक्रेट्स को नियुक्तियां दी थीं। इनमें राजीव स्वरूप, निरंजन आर्य, डीबी गुप्ता, एनसी गोयल, भूपेन्द्र यादव, एमएल लाठर जैसे टॉप पोस्ट पर रहे आईएएस-आईपीएस अफसर तक शामिल थे।
तब तत्कालीन डिप्टी सीएम रहे सचिन पायलट ने बोर्ड निगमों में राजनीतिक कार्यकर्ताओं को छोड़कर केवल ब्यूरोक्रेट्स को नियुक्तियां देने के लिए अपनी ही सरकार की आलोचना भी की थी।
भाजपा सरकार इससे बचना चाहती है। वह विभिन्न बोर्ड-आयोग, निगम-मंडलों व कमेटियों में केवल ब्यूरोक्रेट्स को तवज्जो देने की बजाय विभिन्न विषयों के विशेषज्ञों, टेक्नोक्रेट्स, ट्रेंड एक्सपट्र्स और राजनीतिक पदाधिकारियों को मौका देना चाहती है।
नियुक्ति में दो बातों का ध्यान रखें : बारेठ
वरिष्ठ पत्रकार नारायण बारेठ का कहना है कि राजनीतिक नियुक्तियां किसे दी जाएं, किसे नहीं…यह फैसला तो अंतिम रूप से सरकार को ही करना होता है, लेकिन किसी भी सरकार को इन नियुक्तियों में दो बातों का पालन जरूर करना चाहिए।
एक तो यह है कि व्यक्ति की पृष्ठभूमि क्या है? क्या वो संबंधित बोर्ड निगम में अपने काम-काज से न्याय भी कर पाएगा या नहीं?
दूसरी बात यह है कि जहां भी संभव हो वहां पर स्पष्ट रूप से सार्वजनिक विज्ञापन दिया जाए कि क्या शैक्षणिक या अनुभव संबंधी योग्यताएं हैं या नहीं? ताकि इच्छुक लोग आवेदन कर सके, उनमें से सरकार जिसे चाहे नियुक्ति दे।
सरकार बताए, किसे क्यों दी नियुक्ति : माथुर
राजनीतिक टिप्पणीकार वेद माथुर का कहना है कि इस देश में चतुर्थ श्रेणी के पदों के लिए भी कोई न कोई योग्यता तय है, लेकिन राजस्थान में विभिन्न बोर्ड-आयोग में नियुक्ति की शर्त व आधार केवल राजनीतिक संबंध ही हैं। इस पर रोक लगनी चाहिए। हर पद पर निष्पक्ष और स्वस्थ प्रतिस्पर्द्धा के आधार पर सरकार को सार्वजनिक रूप से बताना चाहिए कि किसी भी बोर्ड निगम में किसे और क्यों नियुक्त किया जा रहा है। अंतत: हर सरकार जनता और उससे प्राप्त होने वाले करों में से ही इन्हें वेतन व अन्य सुविधाएं देती हैं तो उसे यह जानने का अधिकार भी है कि राजनीतिक नियुक्तियां किसे और क्यों मिल रही है।
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