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लेखन में विराम चिन्हों का अत्यधिक महत्व है, बिना इनके प्रभावशाली लेखन असंभव है। सातवीं शताब्दी तक आते-आते विराम चिन्हों की शुरुआत हो गई थी। प्रिंटिंग प्रेस के आने के बाद जर्मनी, फ्रांस जैसे देशों के विद्वानों ने इसकी शुरुआत की। ट्रैफिक को व्यवस्थित क
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वरिष्ठ लेखक प्रो. योगेंद्रनाथ शुक्ल ने साहित्य मंच “कथा-दर्पण” द्वारा “लघुकथा लेखन में विराम चिन्ह का महत्व” विषय में आधारित गोष्ठी में बतौर मुख्य वक्ता यह बात कही। अध्यक्ष अजय वर्मा ने बताया कि कार्यक्रम में रीवा की साहित्यकार गीता शुक्ला ‘गीत’ को उनके साहित्यिक अवदान के लिए शाल, श्रीफल से सम्मानित किया गया। गीता शुक्ला ने गोष्ठी में अपनी तीन लघुकथाओं का पाठ किया। जिनकी समीक्षा लघुकथाकार भुवनेश दशोत्तर ने की। अतिथियों का परिचय सुधाकर मिश्रा ने दिया। स्वागत सुषमा दशोत्तर और कुमुद दुबे ने किया। आयोजन का संचालन स्वाति श्रोत्री ने किया। अध्यक्ष अजय वर्मा ने आभार माना। इस अवसर पर मंच की त्रैमासिक पत्रिका का विमोचन भी किया गया।
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