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कुर्सी पर नजर
उत्तर प्रदेश में इन दिनों सत्ता के गलियारे में बस एक ही चर्चा है कि अफसरशाही का अगला मुखिया कौन होगा? मुखिया के पद पर बैठे साहब का कार्यकाल 30 जून को समाप्त हो रहा है। इसीलिए चर्चाओं का बाजार गर्म है। शासन-सत्ता के गलियारे से जो चर्चाएं तैरकर बाहर आ रही हैं उसमें तरह-तरह की बातें हो रहीं। कुछ का मानना है कि मौजूदा साहब को एक कार्यकाल और मिलेगा। तो कुछ यह मानकर चल रहे हैं कि इस बार नंबर दो की हैसियत वाले साहब इस कुर्सी पर बैठेंगे। उनका काम, उनके द्वारा लिए जाने वाले त्वरित फैसले और निवेश को बढ़ावा देने में जो योगदान दिया है, उस हिसाब से तो उनकी राह खुलती हुई दिखाई दे रही है। खैर यह तो समय बताएगा कि मुखिया की कुर्सी तक कौन पहुंच पाता है, लेकिन चर्चाएं तो चर्चाएं हैं, इसे कौन रोक सकता है। मौजूदा साहब कहां कम हैं उन्होंने भी दिल्ली दरबार में पहुंच बना रखी है। और तो और, अंतिम फैसला तो सेवा विस्तार के लिए केंद्र को ही करना है…।
गफलत में फैसला
एनसीपी के एक नेताजी पूरे चुनाव में सीनियर पवार के साथ थे। लेकिन चुनाव हो गया तो उन्हें नतीजों को लेकर गफलत हो गई। उन्हें लगा कि शायद बाजी हाथ से निकल गई। नतीजों को लेकर पूर्वानुमान पर भरोसा करके उन्होंने नतीजों के पहले पाला बदल लिया। नतीजा आया तो अनुमान फेल हो गया। फिलहाल अब उन्हें विधानसभा चुनाव में बाजी पलटने की उम्मीद है। जहां से आए हैं अब वहां जाने का रास्ता नहीं। फिलहाल अब वे जूनियर पवार की खूबियां बता रहे हैं। आगे कुछ बेहतर हो इस उम्मीद में नेताजी खूब सक्रिय भी हैं।
मुद्दा बड़ा, प्रति छोटी
लोकसभा चुनाव में इंडिया गठबंधन ने संविधान को बड़ा मुद्दा बनाया था। चुनाव के बाद जब विपक्षी सांसदों ने सदस्यता की शपथ ली, तो उस वक्त ज्यादातर सांसदों ने संविधान की छोटी प्रति अपने हाथ में रखी। इसके बाद लाल रंग की संविधान की प्रति की मांग बढ़ गई। इसलिए, कांग्रेस को लगातार संविधान की छोटी प्रति मंगानी पड़ रही है। पार्टी के एक नेता ने कहा कि ज्यादातर विपक्षी सदस्यों को संविधान की छोटी प्रति मिल चुकी है, पर कई सांसद अभी भी मांग कर रहे हैं। विपक्षी सदस्यों के साथ सत्तापक्ष के कई सांसद भी घर पर रखने के लिए संविधान की छोटी प्रति मांग रहे हैं। इसलिए, पार्टी को लगातार छोटी प्रतियां मंगानी पड़ रही है।
अजब संयोग
18वीं लोकसभा की शुरुआत में दोनों सदनों की संयुक्त बैठक में मां-बेटा, पिता-पुत्र, पति-पत्नी एक ही सदन में बैठे नजर आए। संयुक्त बैठक में कांग्रेस नेता सोनिया गांधी उनके बेटे राहुल गांधी, जद(एस) के नेता पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवेगौड़ा और उनके बेटे एचडी कुमारस्वामी, रामगोपाल यादव और उनके बेटे अक्षय यादव, सपा नेता अखिलेश यादव एवं उनकी पत्नी डिंपल यादव, एनसीपी नेता शरद पवार एवं उनकी बेटी सुप्रिया सुले आदि मौजूद थे। हालांकि, पहले भी कई नेता उनके बेटे-बेटी, पति-पत्नी संसद में रह चुके हैं लेकिन इस तरह का इतना अधिक संयोग पहली बार संसद में देखने को मिला।
मजबूती का असर
यह ठीक है कि नई लोकसभा में विपक्ष इस बार मजबूत बनकर उभरा है। इसलिए लोकसभा में उनका आक्रामक होना स्वाभाविक है। लेकिन आश्चर्य यह है कि इसका असर राज्यसभा पर भी दिख रहा है। राज्यसभा में जिस प्रकार से विपक्ष अभिभाषण पर चर्चा के दिन आक्रामक दिखा है, वह इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है। जबकि वास्तविकता यह है कि राज्यसभा में अब विपक्ष कमजोर है तथा एनडीए को बहुमत है। हालांकि जानकारों का कहना है कि यह स्वाभाविक रूप से मनोवैज्ञानिक असर है। लेकिन देखना यह होगा कि यह कितने समय तक कायम रह पाता है।
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