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करीब 10 साल पुराने एकल पट्टा प्रकरण की जांच के लिए सरकार ने हाई कोर्ट के रिटायर्ड न्यायाधीश जस्टिस आरएस राठौड़ की अध्यक्षता में कमेटी का गठन कर दिया हैं। गृह विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव और यूडीएच विभाग के प्रमुख शासन सचिव इस कमेटी के सदस्य होंगे।
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यह कमेटी पूरे प्रकरण की जांच करके राज्य सरकार को अपनी रिपोर्ट सौपेंगी। दरअसल, भजनलाल सरकार ने इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में दायर एसलएपी में 22 मई को जवाब पेश करते हुए कहा था कि एकल पट्टा प्रकरण में कोई मामला नहीं बनता है।
एकल पट्टा प्रकरण में पूरी तरह से नियमों की पालना की गई थी। वहीं, इसमें राज्य सरकार को किसी भी तरह का वित्तीय नुकसान भी नहीं हुआ है। इस पूरे प्रकऱण में विधायक शांति धारीवाल सहित गहलोत सरकार में महत्वपूर्ण पदों पर रहे तीन अधिकारी आरोपी थे। लेकिन कांग्रेस नेता को क्लीन चिट देने से भजनलाल सरकार पर लगातार सियासी दवाब बना हुआ था। जिसके बाद अब सरकार ने इस मामले में कमेटी का गठन कर दिया हैं।
कांग्रेस सरकार के समय गठित कमेटी की निष्पक्षता पर उठाए सवाल
भजनलाल सरकार ने पूरे मामले में जांच कमेटी गठित करते हुए कहा कि पूर्ववर्ती गहलोत सरकार के कार्यकाल में एकल पट्टा प्रकरण में हुई अनियमितताओं पर न्यायालय से प्रकरण वापिस लेने के लिए कमेटी गठित की गई थी।
लेकिन कमेटी में तत्कालीन यूडीएच मंत्री (शांति धारीवाल) के कार्यालय से संबंधित अधिकारियों को शामिल किया गया था। इससे उक्त कमेटी की निष्पक्षता पर सवाल उठे थे। लेकिन पूर्व न्यायाधीश आर.एस.राठौड़ की अध्यक्षता में नव गठित समिति एकल पट्टा प्रकरण की निष्पक्ष जांच कर राज्य सरकार को रिपोर्ट प्रस्तुत करेगी।
क्या है एकल पट्टा प्रकरण
दरअसल, 29 जून 2011 में जयपुर विकास प्राधिकरण (जेडीए) ने गणपति कंस्ट्रक्शन के प्रोपराइटर शैलेंद्र गर्ग के नाम एकल पट्टा जारी किया था। इसकी शिकायत परिवादी रामशरण सिंह ने 2013 में भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो( एसीबी) में की थी। तत्कालीन वसुंधरा सरकार के समय 3 दिसम्बर 2014 को एसीबी ने इस प्रकरण में मामला दर्ज किया।
बाद तत्कालीन एसीएस जीएस संधू, डिप्टी सचिव निष्काम दिवाकर, जोन उपायुक्त ओंकारमल सैनी, शैलेंद्र गर्ग और दो अन्य आरोपियों की गिरफ्तारी हुई थी। इनके खिलाफ एसीबी कोर्ट में चालान पेश किया था। मामला बढ़ने पर विभाग ने 25 मई 2013 को एकल पट्टा निरस्त कर दिया था।
इस मामले में तत्कालीन यूडीएच मंत्री शांति धारीवाल से भी पूछताछ भी की गई थी। प्रदेश में सरकार बदलते ही गहलोत सरकार ने मामलें में तीन क्लोज़र रिपोर्ट कोर्ट में पेश करके सभी को क्लीन चिट दे दी थी।
एसीबी ने कोर्ट से इन आरोपियों के खिलाफ दायर चार्जशीट को वापस लेने की एप्लिकेशन लगाई थी। इसे कोर्ट ने खारिज कर दिया था। लेकिन इनकी अपील पर 17 जनवरी 2023 को हाईकोर्ट ने राज्य सरकार के संधू, दिवाकर और सैनी के खिलाफ केस वापस लेने को सही माना था। इस दौरान मामले में परिवादी रामशरण सिंह की मृत्यु के बाद उनके बेटे सुरेंद्र सिंह ने भी केस वापस लेने की सहमति दी थी।
हाईकोर्ट के फैसले को दी गई थी सुप्रीम कोर्ट में चुनौती
हाईकोर्ट के इस आदेश के खिलाफ आरटीआई एक्टिविस्ट अशोक पाठक ने सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दायर की थी। एसएलपी में कहा गया है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ दर्ज केस की एफआईआर को केवल शिकायतकर्ता के राजीनामे के आधार पर रद्द नहीं किया जा सकता।
यह राज्य सरकार का केस है, जो भ्रष्टाचार के खिलाफ है। ऐसे में राज्य सरकार की ओर से आरोपियों के खिलाफ भ्रष्टाचार केस को वापस लेना जनहित में नहीं है। इससे समाज में गलत संदेश जाएगा। हाईकोर्ट ने मामले में भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप होते हुए भी राज्य सरकार की कार्रवाई को सही माना है, जो गलत है। इसलिए हाईकोर्ट का आदेश रद्द किया जाए। इस एसएलपी में भी सुप्रीम कोर्ट धारीवाल को नोटिस जारी कर चुका है।
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