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संजू फिल्म में आपने मुख्य किरदार की नशे की लत को देखा होगा लेकिन इंदौर के इस शख्स की कहानी उससे भी बदतर है। यहां के 33 वर्षीय सब्जी कारोबारी के नशे की लत ने रिहेब सेंटर वालों को भी हैरान कर दिया। शराब, ड्रग्स रोकने के लिए घर में बंद किया तो छिपकियां
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अंतत: तीन महीने पहले उसे प्रशासन से जुड़ी ने उसे सड़क से रेस्क्यू किया और भिक्षुक घर में डाला। यहां इलाज के अलावा योग, मेडिटेशन, हीलिंग और अध्यात्म वह पूरी तरह उबर गया। तीन महीने से जॉब कर रहा है, परिवार भी उसे फिर से अपनाने को तैयार हो गया है।
दैनिक भास्कर ने नशे के लिए जीव-जंतु मारकर खाने वाले इस शख्स सुनल महावर और उनका इलाज कराने वाली संस्था के लोगों से बातचीत की। उनसे जाना कि कैसे लत में पड़े और फिर कैसे उबरकर आए..
मामला इंदौर के सुनील महावर की है। सब्जी मंडी में कारोबार था। यहीं कुछ लोगों से दोस्ती हो गई। 2012 में वह बीड़ी-सिगरेट के बाद शराब की चपेट में आया। धंधा अच्छा चलता था तो महंगे नशे शुरू कर दिए। दुकान के 20 से 25 हजार रुपए जेब में रहते थे। दोस्तों के साथ उड़ाता रहा। नशे के बाद जेब से मोबाइल, रुपए चले जाते, दो बार अपनी बाइक भी कहीं छोड़ दी।
सुनील बताते हैं कि 2012 में मंडी से जुड़े दोस्त की बरात में गया। वहां शराब पी और तभी से शुरुआत हो गई। इसके बाद पावडर, इंजेक्शन जैसे नशे भी शुरू कर दिए। कुछ सीरप भी पीए।
मेरी जिंदगी का सबसे बुरा दिन तब था जब रतलाम रेलवे बोर्ड की परीक्षा (RRB) देने महाराष्ट्र गया। परीक्षा देने के बाद रेलवे स्टेशन आया तो वहां एक बुजुर्ग ने रोका। वह आसपास आ रहे लाेगों को छोटे डिब्बे में कोई पाउडर बेच रहा था। मैंने वह लिया। उसकी लत ऐसी पड़ी कि सिर्फ नशा करने 20 बार महाराष्ट्र गया।
इस बीच एक युवती से शादी कर ली। बाद में छोड़कर चली गई। हालत इतनी खराब हो गई कि मां के जेवर तक बेच दिए। माता-पिता उसकी हालत से हैरान रह गए। उसे इंदौर और सीहोर के रिहेब सेंटर भेजा तो वहां से दोनों बार भागकर आ गया। इतना हिंसक हो गया था कि घरवालों ने कमरे में बंद किया तो नशे के लिए छिपकलियां मारकर भी कभी-कभी खाईं।
जब फिर से रिहेब सेंटर भेजा तो वहां खाना होम डिलीवर से कराया। दोस्त के जरिए टिफन आता तो उसे एक लीटर का कमंडल बुलाता। पॉलीथिन में खाने के नीचे नशे की गोलियां बुलवाने लगा। तीन महीने बाद भी नशे की आदत नहीं छूटी तो परिवार ने रुपयों का अभाव बताकर रिहेब सेंटर से निकलवा दिया। घर से भी बाहर कर दिया।
बरसों बरस यही चलता रहा। 12 मार्च 2024 को इंदौर में चिकमंगलूर चौराहे पर भीख मांग रहा था। प्रशासन से जुड़ी टीम रेस्क्यू करके भिक्षुक घर ले गई। वहां मेरा फिर से इलाज शुरू कर दिया गया।
कॉन्फिडेंस लेवल को बढ़ाया गया
भिखारियों के लिए काम करने वालीं संस्था प्रवेश की अध्यक्ष रुपाली जैन, काउंसलर अंकिता जैन और निधि गौड़ ने बताया सबसे पहले सुनील का कॉन्फिडेंस लेवल लाया गया। म्यूजिकल थैरेपी भी दी गई। अब उसे एक फैक्टरी में जॉब दिलवाया गया है। शुरुआत में प्राथमिक वेतन मिल रहा है। अच्छी बात है कि माता-पिता ने उसे वापस अपनाने को तैयार हैं। अभी उसे कुछ समय और मॉनिटरिंग में रखा जाएगा, फिर परिवार को सोंपा जाएगा।
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