[ad_1]
कुछ सालों में शहरीकरण के कारण पक्के मकानाें की संख्या तेजी से बढ़ी है। ऐसे में भूकम्प से होने वाले नुकसान को रोकने के लिए जयपुर से अच्छी खबर है। एमएनआईटी ने 3 मंजिला इमारत पर 2 बार भूकम्प का ‘परफॉर्मेंस टेस्ट’ किया है। टेस्ट में इमारत सुरक्षित रही। ए
.
एक्सपर्ट्स ने परीक्षण से पता लगाया कि भूकम्प के झटके से बिल्डिंग का कौन सा हिस्सा सबसे पहले और ज्यादा प्रभावित होगा? बिल्डिंग को टेस्ट करने की यह सुविधा आईआईटी कानपुर व सीएसआईआर- सीबीआरआई रुड़की में भी है। लेेकिन तीन मंजिला इमारत काे जयपुर में ही टेस्ट किया गया।
नेशनल सेंटर फॉर डिजास्टर मिटिगेशन एंड मैनेजमेंट ने एमएनआईटी में नेशनल अर्थक्विक टेस्टिंग फैसिलिटी की स्थापना की है। इनके पास ब्रिज पियर यानी उस वर्टिकल कॉलम को टेस्ट करने की क्षमता है, जिसके सहारे मेट्रो जैसे ब्रिज टिके हैं। खास बात है कि ‘प्री कास्ट मॉमेंट रेजिस्टिंग फ्रेम’ और ‘प्री कास्ट स्ट्रक्चरल वॉल सिस्टम’ दोनों तरह की टेक्नोलॉजी से तैयार बिल्डिंग को एमएनआईटी टेस्ट कर चुका है।
ऐसे किया टेस्ट : 3 मी. मोटी हाई स्ट्रेंथ कॉन्क्रीट से बनी एल शेप की दीवार के बीच किया परीक्षण
पुणे स्थित बीजी शिरके कम्पनी ने ‘प्री कास्ट स्ट्रक्चरल वॉल सिस्टम’ टेक्नोलॉजी से तैयार बिल्डिंग का टेस्ट करवाया। कंस्ट्रक्शन साइट जैसी बिल्डिंग टेस्टिंग सेंटर में तैयार की। फिर टेस्ट फ्लोर पर रखा। नट बोल्ट से बिल्डिंग को कसने के बाद लोडिंग मैकानिज्म (एक्चुएटर) से धक्का दिया।
धक्का देने की स्पीड 50 से 60 मिली मीटर रही । धक्के से बिल्डिंग डैमेज होने लगी। उसी दौरान लेजर व फोटो सेंसर से डैमेज एरिया को मॉनिटर किया गया। एक बिल्डिंग को एक बार ही टेस्ट करने से सटीक रिजल्ट मिल जाते हैं। पूरी प्रक्रिया में ढाई सौ किलो वॉट बिजली इस्तेमाल होती है।
जयपुर की फैंसी बिल्डिंग्स भूकम्प नहीं सह पाएगी
- जयपुर में फैंसी बिल्डिंग यानी तिकोनी, एल, वाय, जेड शेप की बिल्डिंग का चलन बढ़ा है ऐसी बिल्डिंग्स न बनाएं।
- फ्लोटिंग कॉलम और ओपन ग्राउंड स्टोरी जयपुर में ज्यादा बढ़ी है। बिल्डर कॉलम को नीचे तक लेकर नहीं जा रहे। भूकम्प के दौरान बिल्डिंग ज्यादा डैमेज होती है।
- शो रूम या पार्किंग छोड़ने के लिए ओपन ग्राउंड स्टोरी डिजाइन कर रहे हैं।
- कई बिल्डर्स स्ट्रक्चर डिजाइन करते समय दीवारों की बजाए कांच की दीवारें बना रहे हैं।
“सिविल इंजीनियर एक्सपर्ट और बिल्डर्स मिलकर अर्थक्विक सेफ्टी के लिए कम्प्यूटर पर एनालिसिस कर सकते हैं। इससे भूकम्प की स्थिति में बिल्डिंग कैसे व्यवहार करेगी उसका पता चलेगा। लागत 70 लाख होगी।”
-प्रो. एसडी भारती, हेड,नेशनल सेंटर फॉर डिजास्टर मिटिगेशन एंड मैनेजमेंट, एमएनआईटी जयपुर।
[ad_2]
Source link