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Ukraine Peace Summit : स्विट्जरलैंड में आयोजित यूक्रेन पीस समिट में भारत ने ऐसी चाल चली कि सभी देखते रह गए. यहां दुनिया के 80 से अधिक देशों ने शांति दस्तावेज पर साइन किए थे, लेकिन भारत समेत 7 देशों ने इस पर साइन नहीं किया. उन्होंने शांति सम्मेलन के साझे बयान पर अपनी सहमति नहीं दी. सम्मेलन के आखिरी दिन 16 जून को जब आधिकारिक बयान आया तो इसमें यूक्रेन की अखंडता की सुरक्षा की बात कही गई. इस बयान पर 80 से ज्यादा देशों ने हस्ताक्षर किए. सम्मेलन में भारत का प्रतिनिधित्व कर रहे भारतीय विदेश सचिव पवन कपूर ने कहा कि यूक्रेन के मामले में एक टिकाऊ समाधान के लिए भारत सभी पक्षों के साथ काम करता रहेगा.
इस मामले में वही विकल्प कारगर होगा, जिसे दोनों पक्ष स्वीकार करेंगे. इसी से टिकाऊ शांति संभव है. इस समिट को यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की ने संबोधित किया था, लेकिन रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को नहीं बुलाया गया. स्विस के अधिकारियों ने कहा है कि रूस भविष्य में शामिल हो सकता है. भारत के साथ सऊदी अरब, दक्षिण अफ्रीका, थाईलैंड, इंडोनेशिया, मेक्सिको और यूएई ने शांति सम्मेलन के फाइनल दस्तावेज पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया. इस सम्मेलन में ब्राजील को पर्यवेक्षक का दर्जा हासिल था और चीन ने इसमें शामिल होने से इनकार कर दिया था.
BBC की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत के सहमत नहीं होने पर थिंक टैंक रैंड कॉर्पोरेशन में इंडो पैसिफिक के विश्लेषक डेरेक ग्रॉसमैन ने लिखा है कि भारत ने कहा कि रूस की सहमति के बिना कोई बयान जारी करना तार्किक नहीं है. भारत का रूस अब भी अच्छा दोस्त है.इंडो-पैसिफिक देशों के हित रूस से अब भी जुड़े हैं. दक्षिण एशिया में भारत एकमात्र देश है, जिसे इस समिट में बुलाया गया था. दक्षिण-पूर्वी एशिया से इंडोनेशिया, फिलीपींस, सिंगापुर और थाईलैंड को बुलाया गया था. जापान और दक्षिण कोरिया उत्तर-पूर्वी एशिया से नुमाइंदगी कर रहे थे. जाहिर है कि चीन और उत्तर कोरिया रूस के साथ हैं.
भारत बैठकों में शामिल तो होता है, पर वोटिंग नहीं करता
द हिन्दू ने जब स्विट्जरलैंड के राजदूत राल्फ हेकनर से पूछा तो उन्होंने कहा कि भारत के असहमत होने के निर्णय के बावजूद यह अच्छा था कि वह इस समिट में शामिल हुआ. भारत के विदेश मंत्रालय की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि इससे पहले भी भारत यूक्रेन संकट के समाधान को लेकर होने वाली बैठकों में शामिल हुआ है. अगस्त 2023 में सऊदी अरब के जेद्दा में बैठक हुई थी और इसमें भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल शामिल हुए थे. जनवरी 2023 में दावोस में डिप्टी एनएसए शामिल हुए थे. भारत यूक्रेन संकट से जुड़ी हर बैठकों में शामिल होता है, लेकिन किसी भी प्रस्ताव को पास करने में अपनी भूमिका से खुद को अलग कर लेता है. भारत का यह रुख यूक्रेन में जंग छिड़ने के बाद से ही है. भारत ने ऐसा संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद, संयुक्त राष्ट्र महासभा, इंटरनेशनल एटॉमिक एनर्जी एजेंसी और ह्यूमन राइट्स काउंसिल में भी किया.
पश्चिम का लक्ष्य शांति का नहीं है
दक्षिण एशिया इंस्टिट्यूट के निदेशक माइकल कुगलमैन ने लिखा है कि शांति सम्मेलन में भारत की ओर से सचिव स्तर के डिप्लोमैट को भेजने की वजह मैं समझ सकता हूं. लेकिन भारत अपने विदेश मंत्री को भी भेजता तो कोई नुकसान नहीं होता. इससे भारत यही संदेश देता कि युद्ध ठीक नहीं है और शांतिपूर्ण समझौता तरूरी है, जिसे भारत हमेशा कहता रहा है. कुगलमैन की इस टिप्पणी पर भारत के पूर्व विदेश सचिव और रूस में भारत के राजदूत रहे कंवल सिब्बल ने एक्स पर लिखा है कि अगर लक्ष्य वाकई शांति का होता तो भारत अपने विदेश मंत्री को भेज सकता था. लेकिन पश्चिम का लक्ष्य शांति नहीं है. पश्चिम यूक्रेन में और हथियार भेज रहा है और रूस के केंद्रीय बैंक की संपत्तियों पर अवैध फैसले ले रहा है. यह असली शांति सम्मेलन नहीं है.
भारत ने क्यों नहीं किया साइन?
भारत और रूस के संबंध ऐतिहासिक हैं. जब भारत में ब्रिटिश हुकूमत थी, तब रूसी साम्राज्य ने 1900 में पहला वाणिज्यिक दूतावास खोला था, लेकिन दोनों देशों के बीच संबंधों में गर्माहट शीत युद्ध के दौरान आई. आजादी के बाद से ही भारत की सहानुभूति सोवियत यूनियन से रही है. ऑब्ज़र्वर रिसर्च फ़ाउंडेशन की पॉलिटिकल साइंटिस्ट पिल्लई राजेश्ववरी ने लिखा है कि शीत युद्ध के बाद भी भारत की सहानुभूति रूस से खत्म नहीं हुई. यूक्रेन युद्ध में भी भारत के रुख में कोई परिवर्तन नहीं आया. भारत जितनी आक्रामकता से पश्चिम के दबाव को खारिज कर रहा है, उसकी बुनियाद क्या है? कई लोगों का मानना है कि भारत का यह रुख नया नहीं है, भले कहने का अंदाज आक्रामक हुआ है. 2003 में जब अमेरिका ने इराक़ पर हमला किया, तब भी भारत का रुख इसी तरह का था. स्टैनली जॉनी ने लिखा है कि यूक्रेन पर हमले में रूस की निंदा नहीं करना और संयुक्त राष्ट्र के निंदा प्रस्ताव में वोटिंग से बाहर रहना मौलिक रूप से भारत के ऐतिहासिक रुख से अलग नहीं है.
साइन नहीं करने की बड़ी वजह
साइन नहीं करने की सबसे बड़ी वजह भारत और रूस की दोस्ती है. भारत शांति तो चाहता है, लेकिन एकतरफा शर्तों पर नहीं, क्योंकि इस समिट में रूस शामिल नहीं था. इस वजह से भारत को यह स्टैंड अपनाना पड़ा. भारत चाहता है कि किसी भी नतीजे पर पहुंचने से पहले रूस और यूक्रेन का एक साथ एक मंच पर होना जरूरी है. ताकि दुनिया दोनों पक्षों की बात सुनकर अपनी राय या सहमति बनाए. रिपोर्ट की मानें तो रूस को इस समिट में नहीं बुलाया गया था. हालांकि, चीन और पाकिस्तान को इसमें शामिल होने का न्योता मिला था, लेकिन पाकिस्तान और चीन दोनों ने शामिल होने से इनकार कर दिया.
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