[ad_1]
संस्कृति जतन प्रयास अंतर्गत आजी-आजोबा हेतु सानंद न्यास द्वारा आयोजित गोष्ट सांगा प्रतियोगिता का फाइनल सफलतापूर्वक संपन्न हुआ। शुरुआत जाल सभागृह में दीप प्रज्ज्वलित से हुई। इसमें 15 प्रतिभागियों के बीच स्पर्धा आयोजित की गई। बुजुर्गों ने रोचक एवं संदेश
.
कहानी सुनाते हुए।
स्पर्धा में सहभागी सेमी फाइनल के 15 विजेता मधुलिका साकोरीकर, आनंद दाणेकर, हेमांगी मांजरेकर, विनोद क्षिरे, सुनेत्रा अंबर्डेकर, संगीता गोखले, अनुया चासकर, प्रतिभा कुरेकर, शोभना चैतन्य, आशा कोरडे, प्राजक्ता मुद्रिस, पूजा मधुकर, अपर्णा देव, दिपाली दाते, शिशिर खर्डेनवीस ने अपनी-अपनी प्रस्तुति से उपस्थित लोगों से वाहवाही लूटी। स्पर्धा में अंतिम फेरी के प्रथम, द्वितीय व तृतीय स्पर्धकों को वामन हरि पेठे ज्वेलर्स द्वारा सोने की नथ एवं पेडेंट, अनुरूप विवाह मंडळ शाखा इंदौर एवं राधिका बुटिक की छाया येवतीकर प्रायोजित साड़ी से पुरस्कृत किया गया। इसके साथ -साथ प्रसिद्ध रंगकर्मी अच्युत पोतदार द्वारा प्रायोजित पुरस्कार एवं सम्मान-पत्र देने की घोषणा की गई। इस अवसर पर सानंद गोष्ट सांगा प्रतियोगिता में सहायक सभी प्राथमिक, उपांत्य फेरी के निर्णायक, समन्वयक एवं मागदर्शकों का सम्मान भी किया गया। सानंद गोष्ट सांगा प्रतियोगिता की अंतिम फेरी के विजेता प्रथम सुनेत्रा अंबर्डेकर, द्वितीय आनंद दाणेकर, तृतीय प्राजक्ता मुद्रिस थे।
कहानी
साहस के प्रतीक छत्रपति शिवाजी से जुड़ी कहानी को प्रथम पुरस्कार
सुनेत्रा अंबर्डेकर ने कहानी सुनाते हुए कहा कि अफजल खान और शिवाजी महाराज को मिलना था। दोनों को ही एक-एक सिपाही लाने की अनुमति थी। शिवाजी महाराज ने दूरदर्शिता का परिचय देते हुए स्वयं को सुरक्षा के लिए कवच पहना था। खान के सैनिकों ने जैसे ही हमला किया तो कवच के कारण वे बच गए। कहानी से यह सीख मिलती है कि कवच हमारी हिम्मत का साथ देता है।
बड़ी संख्या में श्रोता कहानी सुनते हुए।
सानंद न्यास के अध्यक्ष श्रीनिवास कुटुंबळे एवं मानद सचिव जयंत भिसे ने बताया कि कहानी…. जो हमें कल्पना लोक में ले जाती थी, कहानी…. जो हमारी गर्मियों की छुट्टियों का हिस्सा हुआ करती थी, कहानी…. जिसे सुने बिना हमें नींद नहीं आती थी। कहानी… जिसे सुन हम संस्कारित हुए। आज वही कहानी जैसे सिर्फ एक पुरानी कहानी बन कर रह गई। इंटरनेट से जब से रिश्तेदारी हुई, जैसे बाकी सारे रिश्ते बचे ही ना हो, सबसे बड़े दादाजी ‘गुगल’ हो गए, वो किसी एक बच्चे के नहीं, दुनिया के सारे बच्चों के दादाजी हैं, जिन्हें सारी जानकारी है और पूरा विश्व एक परिवार हो गया। इस ‘बडे परिवार में’ कुछ खो सा गया है… वो है अपनेपन का अहसास। अब जैसे सब यंत्रवत सा हो गया है। इस बड़े परिवार में सुख-सुविधा तो है, नहीं है तो बस एक-दूसरे के लिए समय। खैर समय का पहिया है, घूमता है इस अहसास की कमी को कहीं ना कहीं महसूस किया।
आनंदमयी कहानी सुनाते हुए।
शहर की अग्रणी सांस्कृतिक संस्था ‘सानंद न्यास’ ने और शुरू हो गई ‘आजी, आजोबा के लिये- “सानंद गोष्ट सांगा प्रतियोगिता”। कहानी विधा का लौटकर आना… निश्चित ही उसकी महत्ता दर्शाता है।अपने सामाजिक दायित्व का निर्वाह करते हुए इसी परंपरा को पुर्नजीवित करने के उद्देश्य से यह स्पर्धा का आयोजन गत अनेक वर्षों से निरंतर चल रहा है। इस वर्ष की प्रतियोगिता की अंतिम फेरी (फायनल राउंड) में 15 प्रतिभागियों ने अपनी-अपनी रोचक एवं संदेशप्रद, आनंददायी कहानियां सुनाईं। गत चार माह से स्थानीय स्तर पर किसी की छत पर, किसी मंदिर में, किसी घर के हॉल में हुई। यह स्पर्धा का अंतिम चरण था। भाग लेने वाले सैकड़ों दादा-दादियों की आंखें नम होने के साथ-साथ, यह आशा उनके मन को सुखांत कर गई कि अगले वर्ष पुनः नए उत्साह, नए जोश के साथ इस प्रतियोगिता का धमाकेदार आयोजन किया जाएगा। कई समन्वयकों ने संयोजक- प्रतियोगिता आयोजित करने वालों ने यह दावा किया कि इस प्रतियोगिता को अगले वर्ष 100 स्थानों पर किया जाएगा इसकी जवाबदारी भी ली। सानंद के इस प्रयास की अतिथियों के साथ-साथ श्रोताओं ने प्रशंसा की। इस आयोजन को आजी-आजोबा के साथ माता-पिता जिन्हें आजी आजोबा से कहानियां सुन अपना बचपन याद आ गया ऐसी सराहना मिली, तो सानंद को अपने स्पर्धा आयोजन के उद्देश्य की सार्थकता लगने लगी।
[ad_2]
Source link