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राजस्थान के छोटे से कस्बे मकराना में रहने वाले अजय सिंह, उम्र महज 23 साल। चार साल पहले एक एजुटेक कंपनी ‘लीड्सगुरु’ बनाई। यह कंपनी युवाओं को स्किल डेवलपमेंट की ऑनलाइन ट्रेनिंग देती है। आज यह कंपनी 50 करोड़ की हो गई है। कंपनी में 25 से ज्यादा लोगों की ट
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कैंची-चाकू को धार लगाने वाले पवन कुमार जिंदगी भर किराए के मकान में रहे। कई कष्ट झेले, गरीबी देखी। कभी-कभी दो वक्त की रोटी का भी संकट हो जाता था। लेकिन बेटे को इस लायक बना दिया कि वह अपनी कंपनी खड़ी कर सके।
आज ‘फादर्स डे’ पर पढ़िए पवन कुमार के संघर्ष की कहानी…
दैनिक भास्कर से अपने अनुभव शेयर करते ‘लीड्सगुरु’ कंपनी के सीईओ और फाउंडर अजय सिंह के पिता पवन कुमार।
मकराना के गौड़ाबास बाजार में एक छोटी सी दुकान में दो लोग भी मुश्किल से बैठ नहीं सकते हैं। पवन कुमार इसी दुकान में बैठकर कैंची-चाकू पर धार लगाते हैं। जब हम दुकान पर पहुंचे तो तपती दोपहरी में तापमान कोई 44 डिग्री से ऊपर था। दुकान में एक छोटा सा पंखा चल रहा था।
इन सबके बीच वे कैंचियों पर धार लगा रहे थे। लोहे के पहिए से टकराती कैंची से उठ रही चिंगारियां यहां की गर्मी को और बढ़ा रही थीं, लेकिन पवन कुमार इन सबसे बेपरवाह अपने काम में मशगूल थे। पवन बताते हैं 26 साल से यही काम कर रहा हूं। कमाई इतनी ही होती है कि बमुश्किल घर चला सकूं, इसलिए आज तक खुद की दुकान भी नहीं खरीद पाया।
मकराना में पवन कुमार की 2×4 फीट की दुकान है, जिसमें वो कैंचियों पर धार लगाने का काम करते हैं।
हमने बिना इधर-उधर की बात किए सीधा सवाल पूछा- आपका बेटा अजय 50 करोड़ की कंपनी का मालिक है और इसके बावजूद आप ये काम क्यों करते हैं।
पवन कुमार बोले- मेरा बेटा अजय भी यही कहता है, लेकिन आप देखिए जब ये लोहे का पहिया चलता है तभी कैंची को धार लगती है। ये रुक जाए तो धार भी नहीं लगेगी। ठीक ऐसा ही हमारा जीवन है। इसमें रुकना मतलब जीवन की धार को खत्म करना है। फिर ये तो मेरी जड़ है। मेरा बेटा जो कुछ है, वह मेरी इसी मेहनत को देखकर बना है। मैं इसे कैसे छोड़ दूं।
पवन सिंह बोले- जब मैं महज आठ साल का था तो माता-पिता का स्वर्गवास हो गया। मैं अपने बड़े भाइयों के पास रहा। ज्यादा पढ़ नहीं पाया। 16 साल की उम्र से ही कैंची के धार लगाने का काम शुरू कर दिया। कम उम्र में ही शादी हो गई थी। इसलिए अब परिवार की जिम्मेदारी भी कंधों पर आ गई। कैंचियों पर धार लगाकर मुश्किल छह-सात हजार रुपए कमा पाता था। शादी के बाद एक बेटी भावना हुई और उसके बाद बेटा अजय। भगवान की दया से मेरा काम चल जाता था। बस, मैंने मेहनत करना नहीं छोड़ा।
मेरा सपना था कि बच्चों को अच्छा पढ़ाऊं। कई बार घर चलाने और बच्चोंं की पढ़ाई-लिखाई के लिए पैसे कम पड़ जाते तो मुझे लोगों से कर्जा भी लेना पड़ता था। घर को पत्नी रेखा संभाल लेती थी। बेटी भावना ने कुचामन से ग्रेजुएशन किया। अजय जयपुर जाकर पढ़ना चाहता था तो ग्रेजुएशन के लिए उसे वहां भेज दिया। वहां उसने अपनी राह खुद चुनी। शुरू में उसने मुझे अपने फैसले के बारे में बताया तो मैंने उसे यही कहा कि जो कुछ भी शुरू करो, उसे पूरा जरूर करना। जरा सी असफलता मिलने पर बीच में मत छोड़ना।
पवन कुमार ने कहा कि, बेटे अजय ने मेहनत की और आज वह कामयाब हो रहा है। मैं कई बार उससे मिलने जयपुर जाता हूं। वह मुझे अपनी पूरी टीम से मिलवाता है। सबको बताता है कि मेरे पापा कैंची में धार लगाते हैं। मैं यही चाहता था कि वह भी अपनी जड़ों से जुड़ा रहे।
अजय सिंह अब अपने पिता के सपनों को पूरा कर रहे हैं। हाल ही में वो अपने पिता और बहन भावना के साथ दुबई घूमने गए।
अजय सिंह से जानिए, पिता के संघर्ष की कहानी…
मेरी जितनी छोटी उम्र है, मेरे पिता का संघर्ष उतना ही बड़ा है। मैंने जब से होश संभाला तब से उन्हें जूझते हुए ही देखा। आज भी मुझे जब बचपन याद आता है तो मैं सिहर जाता हूं कि कैसे इतनी दिक्कतों के बीच उन्होंने (पिता पवन सिंह) हमें पढ़ाया। पापा कैंचियों में धार लगाते थे। शुरू में उन्होंने साइकिल पर बाजारों में घूम-घूम कर यह काम किया। इसके बाद एक छोटी सी दुकान किराए पर ले ली। सवेरे वे जल्दी घर से निकल जाते थे और देर रात लौटते थे।
दिन भर वे उस मशीन पर बैठकर धार लगाते। कई बार मैं भी उनके साथ जाता। देखता था कि कैंची और मशीन के आपस में टकराते ही तेज चिंगारियां निकलती थीं। भरी गर्मी में उन चिंगारियों के बीच पापा काम में लगे रहते। कभी हमें यह महसूस नहीं होने दिया कि घर-परिवार में कोई कमी है।
वे हमेशा मुझे और मेरी बहन भावना को यही कहते थे कि तुम्हें केवल पढ़ाई पर फोकस करना है। मैं थोड़ा बड़ा हुआ तो समझ आई कि पापा कितना संघर्ष करते हैं। उनकी महीने की कमाई मुश्किल से 10-11 हजार रुपए थी। मैं 15-16 साल का हो गया था। मकराना के ही स्कूल में पढ़ रहा था।
‘लीड्सगुरु’ के कैंपेनिंग कार्यक्रम में अपनी कंपनी की सक्सेस स्टोरी को सुनाते हुए अजय।
साल 2019 में मैंने सोचा कि साइड जॉब से मैं भी पापा की कुछ मदद करूं। इसलिए पढ़ाई के साथ-साथ मैंने सिम बेचने का काम शुरू कर दिया। पहले महीने मुझे इससे दो हजार रुपए की इनकम हुई। मैं बहुत खुश हुआ। मैंने पापा को यह बात बताई। वे इस बात से खुश हुए कि मैंने उनकी मदद करने की सोची, लेकिन फिर मुझे बैठाकर समझाया। कहा – देखो, मेरा संघर्ष इसलिए नहीं है कि तुम ये छोटे-मोटे काम करो। तुम्हें कुछ बड़ा करना है। यदि अपनी पहचान बनानी है तो कुछ बड़ा सोचो। वे कहते कि जो कुछ करो, वह पूरी मेहनत के साथ करो। उनकी यही बात मेरी जिंदगी की टर्निंग पॉइंट बन गई।
इसके बाद उन्होंने ग्रेजुएशन के लिए मुझे जयपुर भेज दिया। यहां मैंने देखा कि कॉलेज और स्कूल के कई स्टूडेंट ऐसे थे जो केवल किताबी नॉलेज ले रहे थे। स्किल डेवलपमेंट के लिए उनके पास कुछ नहीं था। मैंने देखा कि उनमें कई ऐसे थे, जिनमें टैलेंट था। जैसे – कोई बहुत अच्छा स्पीकर था तो कोई बहुत अच्छा सिंगर। कोई पढ़ाई में तो बहुत इंटेलिजेंट था, लेकिन इंटरव्यू के नाम से ही घबराता था।
अजय सिंह की कंपनी लीड्सगुरु एक एजुटेक साइट है। इसमें ऑनलाइन स्किल कोर्स उपलब्ध हैं।
मैंने तय किया कि इन सभी को एक ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर स्किल बेस्ड एजुकेशन दी जाए। कुछ महीने मैंने पूरा काम समझा। इसके बाद 1 नवंबर 2020 को लीड्सगुरु की शुरुआत की। यह स्किल बेस्ड ऑनलाइन एजुकेशन प्लेटफार्म है। इसमें एक स्टूडेंट बहुत सारे सॉफ्ट और हार्ड स्किल सीखकर अपने करियर में अच्छी जॉब पा सकता है या फिर अपना काम शुरू कर सकता है। आज इस पर डेढ़ लाख से ज्यादा स्टूडेंट का एनरॉलमेंट है। 25 से अधिक लोग मेरे साथ काम करते हैं। चार साल में मैंने 50 करोड़ के टर्न ओवर की कंपनी खड़ी की है। यह सब केवल मेरे पिता के संघर्ष और उनकी सीख के कारण हो पाया है। उनकी मेहनत और संघर्ष ने ही मुझे भी मजबूत बनाया। आज मैं जो कुछ हूं वह केवल मेरे पापा की वजह से हूं।
…और हां, पापा तो आज भी उसी दो बाई चार की दुकान में कैंचियों को धार लगाने का काम करते हैं। मैंने उनसे कई बार कहा कि अब क्यों वे इतनी मेहनत करते हैं, तो कहते हैं, कभी अपनी जड़ों को नहीं भूलना चाहिए। वे कई बार जयपुर आते हैं। मेरे ऑफिस में मेरी टीम से मिलते हैं। बहुत सी बातें बताते हैं और फिर लौटकर वापस मकराना में छोटी-सी कैंची की दुकान में अपने काम में लग जाते हैं।
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